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सुप्रीम कोर्ट इसे क्यों बदलना चाहता है

Teja
23 March 2023 5:11 AM GMT
सुप्रीम कोर्ट इसे क्यों बदलना चाहता है
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इंडिया : सजा-ए-मौत और फांसी, भारत में ये दोनों शब्द एक-दूसरे के पर्यायवाची हो गए हैं। जिस भी शख्स को मौत की सजा होती है, उसे फांसी के फंदे पर लटकाया जाता है। सुप्रीम कोर्ट इस दर्दनाक तरीके को बदलना चाहता है | कोर्ट ने मंगलवार को सरकार से पूछा कि क्या फांसी के बजाय मौत की सजा देने का कोई दूसरा तरीका हो सकता है, जो लटकाने वाले तरीके से कम दर्दनाक हो। कोर्ट ने अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमन को एक एक्सपर्ट कमेटी बनाकर इस बारे में अध्ययन और जानकारी इकट्‌ठा करने के लिए कहा है।

सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर ये मांग की गई है कि गरिमापूर्ण मृत्यु के अधिकार को मौलिक अधिकार का दर्जा दिया जाए। याचिकाकर्ता का कहना है कि फांसी एक बेहद तकलीफदेह और दर्द देने वाला और लंबा तरीका है और इसकी जगह थोड़े समय में मौत की सजा देने के तरीके अपनाए जाएं। याचिकाकर्ताओं ने दलील दी है कि फांसी की सजा पाने वाले व्यक्ति को मृत घोषित करने में 40 मिनट तक का समय लगता है। वहीं गोली मारने में कुछ मिनट और जहरीले इंजेक्शन से ये काम 5 से 9 मिनट में पूरा हो जाता है।

भारत के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने याचिकाकर्ता की इस दलील से सहमति जताई है कि फांसी की सजा अमानवीय और बेहद क्रूर है। इस कारण पीठ ने सरकार से भी राय मांगी है। मई को इस मामले पर सुनवाई होगी। सुप्रीम कोर्ट ने संकेत दिया है कि बात आगे बढ़ी तो फांसी का विकल्प खोजने के लिए एक्सपर्ट की कमेटी बनाई जाएगी जो ज्यादा आसान मौत देने का वैज्ञानिक तरीका सुझाएगी।

चीफ जस्टिस डॉ. चंद्रचूड़ ने कहा कि हमें NLU, AIIMS समेत कुछ बड़े अस्पतालों के साइंटिफिक डेटा की जरूरत है। फांसी लगने के बाद मौत होने में कितना समय लगता है। फांसी से कितना दर्द होता है, फांसी के लिए किस तरह के संसाधनों की जरूरत होती है। कोर्ट ने पूछा कि क्या यह अभी भी सबसे अच्छा तरीका है? साइंस और टेक्नोलॉजी के आज के ज्ञान के आधार पर और क्या बेहतर मानवीय तरीके हो सकते हैं। यदि कोई अच्छा तरीका मिलता है तो हम उसे मौत की सजा देने के लिए अपना लेंगे।

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