पश्चिम बंगाल

पश्चिम बंगाल : ममता बनर्जी बनेंगी चांसलर या राज्यपाल के हाथ में अभी भी कुछ है? विशेषज्ञों ने अलग-अलग राय दी

Shiddhant Shriwas
16 Jun 2022 7:59 AM GMT
पश्चिम बंगाल : ममता बनर्जी बनेंगी चांसलर या राज्यपाल के हाथ में अभी भी कुछ है? विशेषज्ञों ने अलग-अलग राय दी
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पश्चिम बंगाल में मुख्यमंत्री और राज्यपाल के बीच का विवाद एक नए मोड़ पर पहुंच गया है। बंगाल सरकार ने राज्यपाल जगदीप धनखड़ को विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति पद तक से हटाने पर मुहर लगा दी। सोमवार को ही बंगाल विधानसभा में एक विधेयक को पारित किया गया, जिसमें राज्यपाल से यूनिवर्सिटी के चांसलर पद से हटाने और सीएम ममता बनर्जी को इस पद पर बिठाने का प्रावधान है।

बंगाल सरकार के बाद तमिलनाडु और महाराष्ट्र में भी राज्यपाल से इस तरह की शक्तियों को छीनने की सुगबुगाहट हो रही है। इस पूरे मसले पर अब तक विशेषज्ञों ने अलग-अलग राय दी है। आखिर ममता बनर्जी सरकार का यह विधेयक कितना कारगर साबित होगा? राज्यपाल के पास ही जाने वाले इस विधेयक पर आगे क्या कार्यवाही हो सकती है और धनखड़ से इस पद को छीना जाना क्या कानून तौर पर सही है?

क्या है पश्चिम बंगाल में सीएम-राज्यपाल के बीच खींचतान की वजह?

पश्चिम बंगाल में राज्यपाल की कुलाधिपति के तौर पर ताकत को लेकर विवाद कोलकाता की विश्व भारती यूनिवर्सिटी में छात्रों को बर्खास्त करने के मामले से शुरू हुआ। दरअसल, इस घटनाक्रम के बाद विश्वविद्यालय प्रशासन और छात्र संगठन आमने-सामने आ गए थे। इस मुद्दे में तब तृणमूल कांग्रेस सरकार भी कूदी थी और उसने कुलपति विद्युत चक्रवर्ती पर सवाल उठाए। इस मुद्दे पर तब बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने कुलपति का पक्ष लिया था और टीएमसी से यूनिवर्सिटी को राजनीति में न घसीटने की बात कही थी। इसके बाद राज्यपाल और सत्तासीन टीएमसी के बीच विवाद बढ़ा।

दोनों पक्षों के बीच एक बार फिर इस विवाद में चिंगारी पिछले साल दिसंबर में भड़की, जब धनखड़ ने विश्वविद्यालयों में कुलपतियों की नियुक्ति में अनियमितता के आरोप लगाए और कार्रवाई के संकेत दिए। राज्यपाल ने आरोप लगाया था कि राज्य के 24 यूनिवर्सिटी में कुलपतियों की नियुक्ति गलत तरह से हुई है।

इन 24 विश्वविद्यालयों की सूची में जाधवपुर यूनिवर्सिटी, प्रेसिडेंसी यूनिवर्सिटी और अन्य संस्थान भी शामिल थे। यह सभी संस्थान बंगाल में छात्र राजनीति का केंद्र रही हैं। धनखड़ के इस बयान के बाद टीएमसी ने उनका विरोध शुरू कर दिया और इस मामले में प्रधानमंत्री से लेकर राष्ट्रपति तक को चिट्ठियां लिख दीं। अब बात राज्यपाल को कुलाधिपति पद से हटाने तक पर आ गई।

धनखड़ के पास अब क्या विकल्प?

पश्चिम बंगाल विधानसभा की तरफ से विधेयक पास होने के बाद अब इसे मंजूरी के लिए राज्यपाल जगदीप धनखड़ के पास भेजा जाएगा। यानी धनखड़ को खुद को हटाने के प्रस्ताव पर मुहर लगानी होगी। ऐसे में राज्यपाल के पास कुछ विकल्प होंगे...

1. राज्यपाल के पास एक विकल्प यह रहेगा कि वे इस विधेयक को पुनर्विचार के लिए फिर से विधानसभा को लौटा सकते हैं।

2. लेकिन अगर एक बार फिर विधानसभा ने इस विधेयक को संशोधित कर या बिना संशोधन के मंजूर कर दिया और फिर राज्यपाल के पास भेजा तो धनखड़ के पास इसे मंजूर करने के अलावा कोई विकल्प नहीं होगा।

3. राज्यपाल धनखड़ के पास इस विधेयक को टालने का एक विकल्प और रहेगा। यह विकल्प होगा विधेयक को विचार के लिए राष्ट्रपति के पास भेजने का। राष्ट्रपति अपनी शक्तियों के जरिए एक बार फिर राज्यपाल को इस विधेयक को विधानसभा में पुनर्विचार के लिए लौटाने का आदेश दे सकते हैं।

4. अगर एक बार फिर विधानसभा ने इस विधेयक को संशोधन या बिना संशोधन किए भेजा तो इसे फिर राष्ट्रपति के पास ही भेजा जाएगा। हालांकि, राष्ट्रपति अपनी विशेष ताकतों के जरिए इसे बिना मंजूरी के लिए अनिश्चितकाल के लिए अपने पास रख सकते हैं।

दरअसल, ऐसे मामलों में संविधान के तहत राष्ट्रपति के निर्णयों को लेकर कोई समयसीमा निर्धारित नहीं की गई है। यानी राष्ट्रपति के पास विधेयक का जाना राज्यपाल को इस पद पर बनाए रखने के लिए काफी होगा।

कुलाधिपति के तौर पर राज्यपाल की ताकत क्या?

कुलाधिपति के तौर पर एक राज्यपाल राज्य द्वारा संचालित विश्वविद्यालयों में कुलपति की नियुक्ति कर सकते हैं। इतना ही नहीं किसी भी राज्य में कुलाधिपति के पास यूनिवर्सिटी की फैसले लेने वाली संस्था या आधिकारिक परिषद के फैसले को पलटने की भी ताकत होती है। राज्यपाल इन संस्थाओं में नियुक्तियों का भी अधिकार रखता है। इसके अलावा राज्यपाल विश्वविद्यालयों के दीक्षांत समारोह की भी अध्यक्षता करते हैं।

जिन राज्यों में राज्यपाल का सरकार से विवाद, वहां कुलाधिपति पद को लेकर क्या हुआ?

अब तक किसी भी राज्य में राज्यपाल से कुलाधिपति पद छीन कर मुख्यमंत्रियों को दिए जाने का मामला सामने नहीं आया है। हालांकि, इससे जुड़ी कोशिशें पहले भी कई बार हो चुकी हैं। इसी साल अप्रैल में तमिलनाडु में दो विधेयक पारित हुए थे, जिनमें राज्यपाल से राज्य के 13 विश्वविद्यालयों में कुलपति नियुक्त करने की ताकत को स्थानांतरित करने को मंजूरी दी गई थी। हालांकि, राज्यपाल की तरफ से इसे मंजूरी नहीं मिली।

पिछले साल दिसंबर में महाराष्ट्र विधानसभा ने भी एक विधेयक पारित कर महाराष्ट्र पब्लिक यूनिवर्सिटी एक्ट, 2016 में संशोधन कराया था। इसका मकसद राज्यपाल से कुलपतियों की नियुक्ति की ताकत को सीमित करना था। जहां पहले कानून के तहत राज्य सरकार कुलपति की नियुक्ति में कोई राय नहीं दे सकती थी, वहीं महाविकास अघाड़ी की तरफ से लाए गए संशोधन के जरिए सरकार की राज्यपाल को कुलपति के चुनाव के लिए दो नाम देती और राज्यपाल के लिए इन्हीं में से एक का नाम चुनना अनिवार्य होता।

लेफ्ट पार्टी के शासन वाले केरल में सरकार और राज्यपाल के बीच टकराव कन्नूर विश्वविद्यालय में हुई कुलपति की नियुक्ति को लेकर उभरा। तब राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने आरोप लगाया था कि सरकार ने वीसी की नियुक्ति बिना उनकी मर्जी के कर दी। इसी तरह ओडिशा में भी नवीन पटनायक सरकार ने राज्य के विश्वविद्यालयों में नियुक्ति का अधिकार लेने की कोशिश की। लेकिन यूजीसी ने राज्य के इस फैसले को चुनौती दे दी।

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