पश्चिम बंगाल

पारो का प्रेम और देवदास बनने की कहानी, टूटे दिल की कसक ने शरत चंद्र को बना दिया बड़ा साहित्यकार

SANTOSI TANDI
14 Sep 2023 11:10 AM GMT
पारो का प्रेम और देवदास बनने की कहानी, टूटे दिल की कसक ने शरत चंद्र को बना दिया बड़ा साहित्यकार
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शरत चंद्र को बना दिया बड़ा साहित्यकार
वो पारो थी, जिसने बचपन में ही दिल तो चुराया, लेकिन तोड़ भी दिया. यह विरह वेदना ऐसी थी कि मासूम से शरत को बर्दाश्त करना भी मुश्किल हो गया. फिर क्या था, शरत चंद्र ने उठाई कलम और फिर लिख दिया पूरा उपान्यास. आज यह उपान्यास ना केवल 18 भाषाओं में प्रकाशित होकर खूब ख्याति अर्जित कर चुका है, बल्कि इस उपान्यास पर आधारित कई भाषाओं में फिल्में भी बन चुकी है. इसमें एक फिल्म देवदास सुपर डुपर हिट रही है. जी हां, हम बात कर रहे हैं उस मशहूर साहित्यकार शरत चंद्र चट्टोपाध्याय की, जिन्होंने खुद अपनी प्रेम कहानी को उपान्यास का रूप दिया.
आज हिन्दी दिवस है. मौका है मौसम है और दस्तूर भी यही है कि आज शरत चंद्र को याद किया जाए. बांग्ला साहित्य के महान साहित्यकार शरत चंद्र का ननिहाल बिहार के भागलपुर में है. वैसे तो उनका जन्म पश्चिम बंगाल के हुगली जिले में देवानंदपुर गांव में 15 सितंबर 1876 को हुआ था. लेकिन जन्म के कुछ दिन बाद ही वह अपने नानी गांव भागलपुर आ गए थे. यहां गंगा किनारे माणिक सरकार मुहल्ले की मुख्य सड़क पर उनके परनाना का पुश्तैनी मकान है. इसी मकान में कथा शिल्पी शरत चंद्र चट्टोपाध्याय का बचपन गुजरा. इसी मकान में उनकी कलम को धार मिली और देवदास जैसी कालजयी रचना को उन्होंने साकार किया.
मूल रूप से बांग्ला भाषा में लिखी उनकी यह रचना 18 भाषाओं में प्रकाशित हुई. इस पर कई फिल्में भी अलग अलग भाषाओं में बन चुकी हैं. शरत चंद्र की अधिकांश कृतियां गंवई शैली में हैं और इनमें उन्होंने गांव के लोगों के संघर्ष को दर्शाने की कोशिश की है. जहां तक देवदास की बात है तो, यह कहानी उनके बचपन में ही शुरू हो गई थी. दरअसल भागलपुर के दुर्गा चरण प्राथमिक विद्यालय में पढ़ाई के दौरान ही शरत चंद्र इसी गांव की रहने वाली पारो नाम की लड़की पर फिदा हो गए थे. उनकी बेनाह मुहब्बत का दौर कॉलेज तक चला, लेकिन पारों के परिवार को यह मंजूर नहीं था. इसलिए पढ़ाई के बहाने पारो को दूसरे शहर भेज दिया गया. यहीं पर शरत चंद्र का दिल टूटा और देवदास की भूमिका तैयार हो गई.
भागलपुर में है ननिहाल
. उनके ममेरे भाई के बेटे और साहित्य प्रेमी शांतनु गांगुली से उनके जीवन के बारे में जानने की कोशिश की. उन्होंने बताया कि शरतचंद की सबसे लोकप्रिय कहानी देवदास की रचना ना केवल भागलपुर पर आधारित है, बल्कि यह कहानी लिखी भी यही गई थी. उनकी श्रीकांत, परिणीता, स्वामी, बड़ी बहू आदि अन्य लोकप्रिय कहानियां भी यहीं पर लिखी गई थीं. शांतनु गांगुली के मुताबिक माणिक सरकार घाट स्थित यह हवेली करीब 200 साल पुरानी है और इसमें पांचवीं पीढी रह रही है. इसी हवेली में शरत चंद्र का बचपन और आधी जवानी गुजरी है.
शांतनु के मुताबिक शरत चंद्र की प्रारंभिक शिक्षा दुर्गा चरण प्राथमिक विद्यालय से हुई थी. इंटरमीडिएट की पढ़ाई टीएनबी कॉलेजिएट में हुई और फिर वह यहां से बंगाल चले गए थे. उन्हें गंगा नदी से बेहद प्यार था. इसलिए बंगाल लौटने के बाद भी वह अक्सर पत्र लिखकर गंगा के बारे में पूछते रहते थे. शांतनु के भाई उज्जवल कुमार कहते हैं कि शरत चंद्र का जीवन काफी अनुशासित था. उन्होंने जब अपनी पहली किताब मंदिरा लिखी थी तो उसे अपने नाम से प्रकाशित करवाने में वह संकोच कर रहे थे. आखिर में यह किताब उज्जवल गांगुली के दादा सुरेंद्र के नाम से ही प्रकाशित हुई. छठीं कक्षा पास करने पर उन्हें ईश्वर चंद्र विद्यासागर ने उन्हें पुरस्कृत किया था. नानी कुसुम कामिनी ही उनकी पहली साहित्यिक गुरु थी.
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