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पश्चिम बंगाल
राजनीति का फॉर्मूला: बंगाल के बाहर TMC को नहीं मिलेगी जीत, 'AAP' से लेना चाहिए सबक
Deepa Sahu
29 Nov 2021 2:06 PM GMT
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राजनीति में कोई शॉर्टकट नहीं होता है और ना ही जीत का कोई फॉर्मूला होता है.
नई दिल्ली: राजनीति में कोई शॉर्टकट नहीं होता है और ना ही जीत का कोई फॉर्मूला होता है. लेकिन अक्सर जीत हासिल करने वाले दल अपनी जीत को एक फॉर्मूले के तौर पर देखते हैं और इस शॉर्टकट को अपनाने की गलती करते है. त्रिपुरा निकाय चुनाव को भले ही तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) नैतिक जीत बता रही हो और यह दावा कर रही हो कि इतने कम समय में विपक्ष की जगह पर आना उनके लिए जीत से कम नही है. लेकिन भाजपा के क्लीन स्वीप के बाद टीएमसी के लिए यह सच्चाई का सामना करने जैसा है कि राष्ट्रीय स्तर की महत्वाकांक्षा पाले हुए दल को अपने राजनीतिक गढ़ से बाहर निकल कर बहुत कुछ करना होगा.
वैसे इसमें कोई दो राय नहीं है कि टीएमसी के थिंक टैंक ने कभी नहीं सोचा होगा कि उन्हें निकाय चुनाव में जीत हासिल होगी. ऐसे में नए राज्य में अपनी जमीन स्थापित करने के लिहाज से यह काफी है. टीएमसी ने 2024 के चुनाव में कांग्रेस को साफ करने का लक्ष्य रखा है जो भाजपा के सामने मुख्य विपक्षी दल है. शायद वह इसी मानसिकता के साथ दूसरे राज्यों में प्रवेश कर रही है.
सिर्फ शोर मचाने से कुछ नहीं होगा हासिल
टीएमसी को यह भी समझने की ज़रूरत है कि चुनाव में सफलता महज शोर शराबा करने और प्रचार करके जनता का ध्यान बटोरने या ऐसे दल जो खुद गर्त में जा रहे हैं उन पर ताकत झोंकने से हासिल नहीं होती है.
त्रिपुरा, गोवा या फिर मेघालय किसी भी राज्य को ले लें, संगठन निर्माण और जमीनी स्तर पर गंभीर रूप से काम करने का कोई विकल्प नहीं होता है. इसके अलावा मुश्किल से ही कोई दल अपने गढ़ के बाहर जीता होगा. वहीं भाजपा को मिल रही लगातार सफलता के पीछे अगर कोई बात है तो वह महज संगठन खड़ा करना और जमीनी स्तर पर काम करना ही है. आम आदमी पार्टी को ही ले लें, 2014 के चुनाव से ही दल पंजाब में जमीन बनाने की कोशिश में लगा हुआ है. इसे अच्छी सफलता भी मिली, लेकिन 2019 के आम चुनाव में इन्हें राज्य में बुरी तरह शिकस्त मिली.
आप को भी दिल्ली के बाहर नहीं मिली सफलता
टीएमसी और आप एक ही थान से कटे हुए कपड़े हैं, ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल दोनों ने ही अपनी लड़ाई सड़क से शुरू की है और संसद तक पहुंचे हैं. लेकिन केजरीवाल का जादू दिल्ली के बाहर अभी तक असर नहीं दिखा पाया है. जबकि आप 7 साल से दिल्ली के बाहर ज़मीन तलाश रही है. हो सकता है इस बार उनके राजनीतिक प्रयासों का असर उन्हें गोवा और पंजाब में देखने को मिले. ऐसे में अगर टीएमसी यह दावा करती है कि वह गोवा में जीत हासिल करेंगे तो उन्हें एक बार आप से सीख लेनी चाहिए.
कांग्रेस को नीचा दिखाने से खुद का ही होगा घाटा
टीएमसी के नेताओं का लगातार कांग्रेस को नीचा दिखाना, उन्हें कहीं नहीं पहुंचाता है. कांग्रेस आज भी भारत भर में एक मजबूत दल है जो राष्ट्रीय स्तर पर 20 फीसद वोट साझा करता है और 2018 में भाजपा से तीन राज्य जीत चुका है. संगठन के स्तर पर वह कई राज्यों में बहुत मजबूत स्थिति रखते हैं, खासकर हिंदीभाषी राज्यों में कांग्रेस अभी भी पैठ रखता है. भारत की सबसे पुरानी पार्टी के साथ बयानबाजी के स्तर पर जीत हासिल नहीं की जा सकती है. वह किसी भी मायने में 2024 के चुनाव में भाजपा के सामने टीएमसी से बेहतर स्थिति रखती है.
पार्टी ने इन खिलाड़ियों पर खेला दांव
टीएमसी ने हाल ही में तीन खिलाड़ियों, कीर्ति आज़ाद, अशोक तंवर या पवन वर्मा पर दांव खेला है, वे अपने राज्य में बहुत लाभ दिला सकते हैं. इसमें आज़ाद ने 7 साल पहले बिहार में चुनाव जीता था और तब से अब तक तीन बार पार्टी बदल चुके हैं. वर्मा जेडी-यू की तरफ से राज्य सभा सांसद थे जिन्हें नितीश कुमार ने प्रशांत किशोर के साथ पार्टी से निष्कासित कर दिया था.
Deepa Sahu
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