उत्तराखंड
20 फीट ऊंचा त्रिशूल साथ लकड़ी के शिवलिंग की होती है पूजा
Shantanu Roy
21 Nov 2021 11:58 AM GMT
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उत्तराखंड में जैसा कि हम सभी जानते है कि इसे देवों की नगरी कही जाती है। तो ऐसे में यह जगह-जगह तमाम भगवानों के मंदिर स्थापित पाए जाते है लेकिन इसके पीछे कोई ना कोई राज छुपा रहता है।
जनता से रिश्ता। उत्तराखंड में जैसा कि हम सभी जानते है कि इसे देवों की नगरी कही जाती है। तो ऐसे में यह जगह-जगह तमाम भगवानों के मंदिर स्थापित पाए जाते है लेकिन इसके पीछे कोई ना कोई राज छुपा रहता है। आज हम बात करने जा रहे है उत्तराखंड में ऐसी ही एक जगह के बारे में जो भवाली में स्थित प्राचीन जाबर महादेव शिव मंदिर की। कहा जाता है कि यहां के स्थानीय लोगों को यह साक्षात शिवलिंग मिला था। जहां शिवलिंग की रक्षा करते हुए नाग देवता दिखाई दिए थे।
मंदिर में स्थापित है करीब 20 फीट ऊंचा त्रिशूल
वहीं, बाद में यहां एक और शिवलिंग स्थापित की गई जो लकड़ी का बना हुआ है। आपको बता दें कि यहां करीब 20 फीट ऊंचा भी त्रिशूल है। जिसकी खास बात यह है कि यह त्रिशूल पूरे नैनीताल जिले में स्थित शिव मंदिरों में सबसे बड़ा त्रिशूल कहलाता है।
जाबर महादेव के नाम से जानते है मंदिर को
बता दें कि नैनीताल के भवाली सेनेटोरियम के गेट से लगभग 4 किलोमीटर तक का एक पैदल मार्ग बना रास्ता मंदिर की ओर जाता है। जहां मंदिर तक पहुंचने के लिए एक घने जंगल से होकर जाना पड़ता है। जहां लड़िया कांटा पहाड़ी के तलहटी में चीड़ के पेड़ों से घिरे जंगल के बीच में एक जावर नामक जगह पर यह मंदिर स्थापित है। जिसे अब जाबर कहकर पुकारते है और इस मंदिर को जाबर महादेव मंदिर के नाम से जानते है।
अध्यक्ष दिनेश जोशी ने कहीं ये बात
वहीं, इस मंदिर के कमेटी के अध्यक्ष दिनेश जोशी का कहना है कि काफी समय पहले इस जगह पर खुदाई का काम शुरू हुआ था। जहां खुदाई के दौरान यहां एक शिवलिंग के आकार का पत्थर दिखाई पड़ा था। जिसको एक सांप लपेटे हुए था। तभी तुरंत वहां खुदाई का काम रोक दिया गया और उस शिवलिंग को उठाकर एक सुरक्षित स्थान पर रख दिया गया।
1968 में स्थापित की गई शिवलिंग
वो बताते है कि सन् 1968 में वहां एक और शिवलिंग की स्थापना करते हुए स्थानीय लोगों ने मिलकर एक मंदिर का निर्माण किया। यह स्थापित शिवलिंग पदम की लकड़ी से बनाया गया है। जहां कई वर्षों से धूप-छांव, पानी, दूध चढ़ाने के बावजूद भी यह लकड़ी का शिवलिंग बिल्कुल वैसा ही अपने स्वरूप में आज भी स्थित है।
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