उत्तराखंड

रक्षाबंधन पर ही क्यों खुलता है वंशी नारायण जी का मंदिर... क्या है इसके पीछे की कहानी...जानिए

Bhumika Sahu
14 Aug 2022 4:37 AM GMT
रक्षाबंधन पर ही क्यों खुलता है वंशी नारायण जी का मंदिर... क्या है इसके पीछे की कहानी...जानिए
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रक्षाबंधन पर ही क्यों खुलता है वंशी नारायण जी का मंदिर

हल्द्वानी, देवभूमि उत्तराखंड में तमाम मंदिर हैं जिनके पीछे तमाम किस्से,कहानियां और किवदंतियां प्रचलित हैं ऐसे ही एक मंदिर के बारे में आपको बताएंगे जिसके कपाट केवल रक्षाबंधन के दिन ही खुलते हैं। और हां एक आश्चर्यजनक बात और है इस मंदिर में पुजारी का कार्य ब्राह्मण जाति के नहीं बल्कि ठाकुर जाति के लोग करते हैं।

है न दिलचस्प कहानी…! चलिए बताते हैं आपको इस मंदिर के बारे में.. ये है वंशी नारायण मंदिर, जो कि समुद्रतल से लगभग 12 हजार से भी अधिक फीट की ऊंचाई पर मौजूद यह मंदिर उत्तराखंड की चमोली जिले के जोशीमठ विकासखंड की उर्गम घाटी में है।
इस मंदिर को लेकर कहा जाता है कि रक्षाबंधन के दिन सूर्योदय के साथ खुलता है और सूर्यास्त होते ही मंदिर के कपाट अगले 364 दिन के लिए बंद कर दिए जाते हैं। लेकिन जैसे ही मंदिर का द्वार खुलता है वैसे ही महिलाएं भगवान को राखी बंधना शुरू कर देती हैं और बड़े धूम-धाम के साथ पूजा करती हैं।
एक पौराणिक कथा के मुताबिक वंशीनारायण मंदिर में मनुष्य को सिर्फ एक दिन पूजा का अधिकार दिए जाने की भी रोचक कहानी है. कहते हैं कि एक बार भगवान नारायण को राजा बलि के आग्रह पर पाताल लोक में द्वारपाल की जिम्मेदारी संभालनी पड़ी, तब माता लक्ष्मी उन्हें (भगवान नारायण) ढूंढते हुए देवर्षि नारद के पास वंशीनारायण मंदिर पहुंचीं और उनसे भगवान नारायण का पता पूछा। नारद ने माता लक्ष्मी को भगवान के पाताल लोक में द्वारपाल बनने का पूरा वृतांत सुनाया और उन्हें मुक्त कराने की युक्ति भी बताई।
देवर्षि ने कहा कि आप राजा बलि के हाथों में रक्षासूत्र बांधकर उनसे भगवान को मांग लें लेकिन, पाताल लोक का मार्ग ज्ञात न होने पर माता लक्ष्मी ने नारद से भी साथ चलने को कहा तब नारद माता लक्ष्मी के साथ पाताल लोक गए और भगवान को मुक्त कराकर ले आए, मान्यता है कि सिर्फ यही एक दिन ऐसा था, जब देवर्षि वंशीनारायण मंदिर में पूजा नहीं कर पाए इस दिन उर्गम घाटी के कलकोठ गांव के जाख पुजारी ने भगवान वंशीनारायण की पूजा की तब से यह परंपरा चली आ रही है।
माना जाता है कि इसे छठी सदी में बनाया गया था। एक अन्य लोक मान्यता है कि इस मंदिर में भगवान नारद जी ने 364 दिन भगवान विष्णु की पूजा करते और एक दिन के लिए चले जाते थे ताकि लोग पूजा कर सकें। स्थानीय लोग श्रावन पूर्णिमा पर भगवान नारायण का श्रृंगार भी करते हैं। रक्षाबंधन के दिन गांव के प्रत्येक घर से भगवान नारायण के लिए मक्खन आता है जो कि मुख्य प्रसाद माना जाता है।
वंशीनारायण मंदिर के कपाट खुलने के अवसर पर कलकोठ गांव के हर घर से भगवान नारायण के भोग के लिए मक्खन आता है, भगवान का भोग इसी मक्खन से तैयार किया जाता है। साथ ही भगवान वंशीनारायण की फुलवारी में कई दुर्लभ प्रजाति के फूल खिलते हैं, जिन्हें सिर्फ श्रावण पूर्णिमा यानी रक्षाबंधन पर्व पर तोड़ा जाता है, इन फूलों से भगवान नारायण का श्रृंगार किया जाता है इसके बाद श्रद्धालु व स्थानीय ग्रामीण व युवतियां भगवान वंशीनारायण को रक्षासूत्र बांधती हैं।
यहां तक पहुंचने के लिए आपको बदरीनाथ हाइवे पर हेलंग से उर्गम घाटी तक 8 किमी की दूरी वाहन से तय करने के बाद आगे का 12 किमी का रास्ता पैदल तय करना होता है। हरे भरे मखमली घास के गलीचे के बीच से गुजरते हुए आप मंदिर तक पहुंच सकते हैं और यहां पहुंचते ही आपकी पूरी थकान काफूर हो जाती है। दस फीट ऊंचे इस मंदिर में भगवान विष्णु की चतुर्भुज पाषाण मूर्ति विराजमान है खास बात यह कि इस मूर्ति में भगवान नारायण व भगवान शिव, दोनों के ही दर्शन होते हैं।


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