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क्यों घुट-घुट जाती हूं।
बंद कमरे में रहती हूं।
दर्द पीड़ा मैं सहती हूं।
फिर भी कुछ नहीं कहती हूं।।
क्यों बंद पिंजरे में रहती हूं।
क्यों नहीं आगे बढ़ पाती हूं।
प्यार सभी को करती हूं।
क्यों बंद पिंजरे में रहती हूं।।
मैं भी उड़ना चाहती हूं।
मैं भी आगे बढ़ना चाहती हूं।
समाज के डर से रुक जाती हूं।
मैं भी आगे बढ़ना चाहती हूं।।
संजना आर्य
चौकसो, गरुड़
बागेश्वर, उत्तराखंड
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