उत्तराखंड

Uttarakhand: इंजीनियरिंग छोड़ अपने गांव लौटे भास्कर, गो-पालन और फ्रूट प्रोसेसिंग से हो रही है कमाई`

Deepa Sahu
6 May 2022 7:32 AM GMT
Uttarakhand: इंजीनियरिंग छोड़ अपने गांव लौटे भास्कर, गो-पालन और फ्रूट प्रोसेसिंग से हो रही है कमाई`
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युवाओं के दिल में कुछ करने की चाहत हो तो कुछ भी नामुमकिन नहीं है।

बागेश्वर: युवाओं के दिल में कुछ करने की चाहत हो तो कुछ भी नामुमकिन नहीं है। शहरों में नौकरी करके दिन रात पसीने बहाने से बेहतर है अपनी जन्मभूमि में, अपने लोगों के बीच पहाड़ों में रहकर काम करना। स्वरोजगार के कई जरिए हैं, बस जरूरत है सबसे अच्छा जरिया चुनने की, जिससे घर भी चले और शहरों की ओर भी न जाना पड़े।

उत्तराखंड के युवाओं के अंदर भी देवभूमि में रहकर कुछ करने का जज्बा है जो कि पिछले 2 सालों में काफी अधिक बढ़ा है। आज हम फिर स्वरोजगार की एक जबरदस्त सक्सेस स्टोरी आपके लिए लेकर आए हैं जिन्होंने इंजीनियर की नौकरी छोड़ कर गांव की ओर रुख किया और आज वे बुरांश, संतरा और माल्टा का जूस का व्यापार कर शानदार कमाई कर रहे हैं। हम बात कर रहे हैं बागेश्वर जिले के जौलकांडे के भास्कर की। उन्होंने इंजीनियरिंग की नौकरी छोड़ कर गांव में संतरा, माल्टा और बुरांश के जूस बनाने का काम शुरू किया है। इस काम में उन्हें सफलता भी मिल रही है। उन्होंने लॉकडाउन के बाद इंजीनियरिग की नौकरी छोड़कर गांव में ही गो-पालन के साथ फ्रूट प्रोसेसिग का कार्य प्रारंभ किया।
वे माल्टा और संतरे के जूस के बाद बुरांश का जूस की बिक्री कर रहे हैं। साथ ही विभिन्न फलों के आचार भी उपलब्ध करा रहे हैं। दरअसल कोरोना लाक डाउन के प्रथम चरण में देहरादून की कंपनी में इंजीनियरिग का कार्य कर रहे जौलकांडे निवासी भास्कर की कंपनी का काम बंद हो गया। जिस पर वह अपने पैतृक गांव आ गए। यहां आकर उन्होंने फूलों की खेती की। दो गाय पालकर दूध व्यवसाय शुरू किया। साथ ही प्रायोगिक तौर पर नींबू, अदरक, हरी मिर्च, आंवला आदि का आचार बनाया। साथ ही संतरे व माल्टा का जूस भी तैयार किया। जिसमें उन्हें सफलता मिली। भास्कर बताते हैं कि उन्होंने कंपनी स्थापित कर लाइसेंस ले लिया है। अब उनका प्रयास है कि इसमें कई युवाओं को रोजगार दिया जा सके। विगत माह उन्होंने 213 लीटर माल्टा व संतरे का जूस बनाया। जिसे गांव समेत आसपास के लोगों व परिचितों ने खरीद लिया। इन दिनों वे बुरांश का जूस बनाने का कार्य कर रहे हैं। उनका लक्ष्य है कि इस बार लगभग पांच सौ लीटर बुरांश जूस का उत्पादन किया जाएगा। उन्होंने बताया कि अब तक उन्होंने इस कार्य के लिए मशीनों का प्रयोग नहीं किया है। वे जूस और आचार प्राकृतिक तरीके से बना रहे हैं।


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