प्रदेश में तदर्थ से नियमित हुए शिक्षकों पर रिकवरी का खतरा
देहरादून: प्रदेश के 2500 से ज्यादा सेवारत और रिटायर शिक्षकों पर तदर्थ सेवा के दौरान मिले इंक्रीमेंट और तदर्थ सेवा को शामिल करते हुए मिले पेंशन लाभ पर रिकवरी का खतरा आ गया।शासन के आदेश पर शिक्षा विभाग ने तदर्थ विनियमित शिक्षकों को मिले वित्तीय लाभ का ब्योरा जुटाना शुरू कर दिया। रिकवरी होने की दशा में शिक्षकों को आठ से 10 लाख रुपये तक लौटाने पड़ सकते हैं। शिक्षा विभाग की कवायद से शिक्षकों में खलबली का माहौल है।
शिक्षक बिफरे, रिकवरी के विरोध में जाएंगे हाईकोर्ट राजकीय तदर्थ विनियमितीकृत शिक्षक समिति के मुख्य संयोजक वीरेंद्र दत्त बिजल्वाण ने कहा कि सरकार और विभाग मनमाने तरीके ने नियम लागू कर रहा है। इसके दायरे में वर्ष 1990 से 93 के दौरान तदर्थ रूप से नियुक्त सभी शिक्षक आ जाएंगे। शासन ने तदर्थ सेवाओं के संबंध में आदेश यूपी के वर्ष 1983 के जीओ के आधार पर किया है। वह जीओ तीसरे वेतन आयोग पर आधारित है और उसी वेतनमान तक लागू था। उसके बाद कई जीओ हो चुके हैं। वर्ष 1996 में लागू वेतनमान मे वेतन आयोग ने चयन/ प्रोन्नत वेतनमान मे केवल संतोषजनक सेवाओं को शामिल किया। वर्ष 2024 में सरकार और विभाग 1983 के आधार पर कार्रवाई करना चाह रहे हैं। यह हास्यास्पद है। इसका कड़ा विरोध किया जाएगा।
तदर्थ रूप से नियुक्त शिक्षकों की सेवा और वित्तीय लाभ लागू करने के बाबत कुछ समय पहले माध्यमिक शिक्षा निदेशालय ने सरकार से दिशानिर्देश मांगे थे। शिक्षा विभाग में वर्ष 1990 के बाद नियुक्त तदर्थ शिक्षकों की संख्या 2500 से भी ज्यादा है। इनमें कुछ सेवारत हैं और कुछ रिटायर भी हो चुके हैं। शासन ने स्पष्ट किया कि नियमित सेवा वही अवधि मानी जाएगी जिस दिन से शिक्षक-कर्मचारी ने अपने कैडर में सीनियरटी पाई हो। साथ ही तदर्थ सेवा अवधि को पेंशन की गणना में शामिल नहीं किया जाएगा। इस आदेश के आधार पर माध्यमिक शिक्षा निदेशक महावीर सिंह बिष्ट ने सभी सीईओ को कार्यवाही करने के आदेश दिए हैं। सीईओ ने इस आधार पर शिक्षकों का ब्योरा और उन्हें मिले लाभ का ब्योरा जुटाना शुरू कर दिया है। तदर्थ सेवाओं को लेकर किया गया आदेश सरासर गलत है। वर्ष 1990 से 93 के दौरान तदर्थ रूप से भर्ती हुए अधिकाशं शिक्षक रिटायर भी हो चुके हैं। यदि इस आदेश के आधार पर शिक्षकों को परेशान किया गया तो संघ कडा विरोध करेगा।