उत्तराखंड

उत्तराखंड विधानसभ चुनाव 2022 के असल मुद्दे प्रचार से बाहर, कांग्रेस-बीजेपी भी मु्द्दों को भूले

Renuka Sahu
9 Feb 2022 6:02 AM GMT
उत्तराखंड विधानसभ चुनाव 2022 के असल मुद्दे प्रचार से बाहर, कांग्रेस-बीजेपी भी मु्द्दों को भूले
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फाइल फोटो 

विधानसभा चुनाव प्रचार के लिए अब महज चार दिन बाकी हैं। लेकिन प्रचार में कहीं भी राज्य के असल मुद्दों की चर्चा नहीं सुनाई दे रही है।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। विधानसभा चुनाव प्रचार के लिए अब महज चार दिन बाकी हैं। लेकिन प्रचार में कहीं भी राज्य के असल मुद्दों की चर्चा नहीं सुनाई दे रही है। राज्य गठन के बाद से ही उत्तराखंड लगातार स्वास्थ्य, शिक्षा, संचार, यातायात और सड़क जैसी मूलभूत समस्याओं से जूझ रहा है। राज्य का लगभग हर दसवां मतदाता बेरोजगार है।

रोडवेज की बसें पहाड़ पर अब गिनती की रह गई हैं। इन समस्याओं का समाधान कैसे करेंगे, चुनाव में इसकी ज्यादा चर्चा नहीं हो रही है। भाजपा हो या फिर कांग्रेस, प्रचार में आरोप-प्रत्यारोप की नकारात्मक राजनीति करते नजर आ रहे हैं और ज्यादातर हवाई मुद्दे ज्यादा हावी हैं।
बदहाल स्वास्थ्य सेवाएं
राज्य में कमजोर स्वास्थ्य सेवाएं किसी से छिपी नहीं हैं। कोरोनाकाल हो या उससे पहले का समय, प्रदेश में बड़ी संख्या में लोग स्वास्थ्य सेवाओं की कमी से जूझ रहे हैं। तमाम अस्पतालों में डॉक्टर नहीं हैं और यदि हैं भी तो वहां इलाज की पर्याप्त सुविधाएं नहीं हैं। उत्तराखंड में लंबे समय से हेली एम्बुलेंस सेवा की बातें हो रही हैं लेकिन यह सेवा भी अभी तक पूरी तरह धरातल पर नहीं उतर पाई है। इसके बावजूद चुनावों में स्वास्थ्य सेवा प्रमुख मुद्दा नहीं है। इस विषय की ज्यादा चर्चा भी नहीं हो रही।
हर दसवां मतदाता बेरोजगार
राज्य में बेरोजगारी बढ़ती ही जा रही है। आधिकारिक आंकड़ों में ही राज्य में आठ लाख से ज्यादा बेरोजगार हैं। 82 लाख से कुछ ज्यादा मतदाता हैं। इस का हल क्या है,इस पर चर्चा से सियासी दल भाग रहे हैं। भर्ती का विषय भी बहुत गंभीरता से नहीं उठ पा रहा। माध्यमिक स्कूलों में शिक्षकों के करीब 4300 पद खाली हैं। लेकिन शिक्षक भर्ती पर भी ज्यादा चर्चा नहीं है। घोषणा पत्रों में बेरोजगारी दूर करने के हवाई वादे किए जा रहे हैं। भर्ती कहां-कितनी होगी, बजट कहां से आएगा? यह कोई नहीं बताता।
खजाने का हाल खराब
2022 की पहली तिमाही के बाद राज्य को जीएसटी प्रतिपूर्ति बंद हो जाएगी। इससे राज्य को सीधे सीधे छह हजार करोड़ सालाना का नुकसान होने जा रहा है। लेकिन जीएसटी प्रतिपूर्ति को जारी रखने या इसका विकल्प तलाशने की बात कोई भी दल नहीं कर रहा है। खजाने का हाल वैसे ही खराब है। यदि किसी के एजेंडे में यह बात शामिल है भी तो उसे कोई प्रमुखता से जनता के सामने नहीं रख पा रहा है।
पहाड़ से रोडवेज नदारद
रोडवेज 500 करोड़ के घाटे में है। निगम के पास इस समय 1300 के करीब बसों का बेड़ा तो हैं लेकिन ज्यादातर की हालत खराब है और पहाड़ के रूटों पर बड़ी संख्या में आज तक बसों का इंतजार है। लेकिन इस मुद्दे पर भी चुनावों में ज्यादा चर्चा नहीं हो पा रही है। रोडवेज की स्थिति सुधारने के लिए किसी के पास कोई प्लान नहीं है। जिससे आगे भी लोगों को इससे जुड़ी परेशानी झेलनी पड़ना तय है।
पलायन की पीड़ा
राज्य में पलायन एक बड़ी समस्या है। हजारों की संख्या में गांव पलायन की वजह से खाली होने की कगार पर हैं। लेकिन इस समस्या का भी चुनाव प्रचार के दौरान कोई समाधान नहीं दिखाई दे रहा। चुनावी मुद्दों और चुनावी भाषणों में भी पलायन का बहुत गंभीरता से कोई जिक्र नहीं हो रहा। पलायन से बंजर हो रहे गांवों में कैसे दोबारा रौनक लौटेगी इसका स्पष्ट रोडमैप भी किसी के पास नहीं दिखाई दे रहा है।
भाजपा के घोषणा पत्र में इन सभी मुद्दों को प्रमुखता से शामिल किया जा रहा है। पार्टी उत्तराखंड की हर समस्या के समाधान के लिए काम कर रही है। सड़कों की स्थिति में सुधार के साथ ही रिवर्स माइग्रेशन के लिए काम किया जा रहा है। स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत करने की दिशा में भी कदम उठाए गए हैं। आगे और काम होना है।
मनवीर चौहान प्रदेश मीडिया प्रभारी, भाजपा
उत्तराखंड के हर सवाल और हर जरूरत को कांग्रेस के घोषणापत्र में शामिल किया गया है इसीलिए हम लगातार चुनावों में उत्तराखंडियत की बात भी कर रहे हैं। लेकिन भाजपा और अन्य सियासी दल इन मुद्दों से राज्य के लोगों का ध्यान भटका रहे हैं।
मथुरादत्त जोशी प्रदेश संगठन महामंत्री, कांग्रेस

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