उत्तराखंड

उत्तराखंड में विकास की रफ्तार में पिछड़ गया पहाड़

Admin Delhi 1
6 July 2023 8:26 AM GMT
उत्तराखंड में विकास की रफ्तार में पिछड़ गया पहाड़
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देहरादून न्यूज़: सामारिक दृष्टि से महत्वपूर्ण, चीन व नेपाल सीमा से सटा हुआ उत्तराखंड राज्य अस्तित्व में आने के 23 साल बाद भी विकास की दशा और दिशा में अपेक्षा के अनुसार रफ्तार नहीं पकड़ पाया है. राज्य के पर्वतीय जिले उपेक्षित हैं और मैदानी क्षेत्रों में ही अधिकतम विकास हुए हैं.’ उत्तराखंड के समग्र विकास को लेकर वैज्ञानिक डॉ.जेएस रावत अपने शोध पत्र में यह दावा किया है.

डा.जेएस रावत का शोध पत्र इंटरनेशनल जर्नल ऑफ साइंस एंड रिसर्च (आईजेएसआर) में प्रकाशित हुआ है. उन्होंने ‘विजन एंड एक्शन प्रोग्राम फॉर ऑल राउंड सोशियो इकोनॉमिक डेवलेपमेंट ऑफ हिली एंड माउंटेन स्टेट उत्तराखंड’ विषय पर राज्य के विकास की अवधारणा को लेकर कई महत्वपूर्ण सुझाव दिए हैं. शोध कहता है कि 1947 से 2000 तक 53 साल तक राज्य सामाजिक व आर्थिक दृष्टि से अत्यंत पिछड़ा रहा.

बड़े संघर्षों से हासिल राज्य में अब पहाड़ बनाम मैदान के विकास का द्वंद्व चल रहा है. यही वजह है कि अब तक राज्य की स्थायी राजधानी तक तय नहीं हुई.

आय के आंकड़ों से तस्दीक: उत्तराखंड अर्थ एवं संख्या निदेशालय ने 2021-22 के जिलावार प्रति व्यक्ति आय के जो आंकड़े जारी किए हैं. उनमें पहाड़ और मैदानी जिलों में विकास के ग्राफ का अंतर पता चलता है. वर्ष 2021-22 में राज्य की प्रति व्यक्ति आय 205840 रुपये आंकी गई. हरिद्वार प्रति व्यक्ति आय में सबसे ऊपर है, जबकि रुद्रप्रयाग सबसे पीछे था. हरिद्वार जिले की प्रति व्यक्ति आय 362688, और रुद्रप्रयाग की 93160 थी.

यहां रह गई कमी: प्रदेश का 60 प्रतिशत से अधिक पहाड़ी और पर्वतीय क्षेत्र है, जिसमें नदियां, घाटियां, वन भूमि और बर्फ से ढके ऊंचे पहाड़ शामिल हैं. इसकी अधिकांश जमीन सरकारी संरक्षण में है. स्थानीय निवासियों के पास केवल बस्ती, कृषि और बागवानी के घरेलू उपयोग के लिए 40 प्रतिशत से भी कम भूमि है. राज्य के महत्वपूर्ण संस्थान, विभाग व उद्योग, यहां तक कि निजी क्षेत्र के उद्योग भी सेलाकुई, देहरादून, हरिद्वार, रुड़की, हल्द्वानी, ऊधमसिंहनगर में हैं. लिहाजा पर्वतीय जिलों से लोगों को छोटी-मोटी नौकरी और उच्च अध्ययन से जुड़ी नौकरियों के लिए मैदानी क्षेत्रों में आना पड़ता है.

पलायन रोकने को सुझाव:

●पहाड़ों में एक ही जगह शिक्षा केन्द्र हों, जहां पर्यटन, होटल प्रबंधन की व्यावसायिक शिक्षा मिले.

● प्रत्येक जिले में हिल स्टेशन, पर्यटन स्थल, आदर्श गांव, बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं हों.

●जंगल के भीतर खुली अप्रयुक्त भूमि लोगों को बागवानी, कृषि के लिए पट्टे पर दें

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