ऋषिकेश न्यूज़: गुरुकुल कांगड़ी विवि में श्रीमद्भगवत गीता में योग परम्परा विषय पर आयोजित राष्ट्रीय सम्मेलन में मुख्य अतिथि जूना पीठाधीश्वर अवधेशानंद गिरी ने कहा कि अध्यात्म का अर्थ स्वाभाव में स्थित होना होता है. किसी भी प्रकार की कृत्रिमता हमें स्वाभाव से दूर ले जाती है. श्रीमद्भगवत गीता का निरंतर स्वाध्याय, चिंतन-मनन हमें निज स्वाभाव के समीप लेकर आता है. यही महर्षि पतंजलि ने अपने योगसूत्र में कही है. श्रीमद्भगवत गीता योग शास्त्रत्त् है, यह योग परम्परा का संवाहक ग्रन्थ है.
विशिष्ट अतिथि गुरुकुल कांगड़ी विवि के पूर्व डीन प्रो. ईश्वर भारद्वाज ने कहा कि गीता का स्वाध्याय दैनिक जीवन में प्रत्येक योगाभ्यासी को करना चाहिए. तभी जीवन में आने वाली कठिनाइयों एवं बुराइयों से बचे रहना संभव है. कहा कि श्रीमद्भगवत गीता को संविधान में राष्ट्रग्रन्थ घोषित कराने तथा इसकी शिक्षाओं को सामान्य शिक्षा पद्धति में सम्मिलित कराने के उद्देश्य से विश्व गीता प्रतिष्ठानम् सम्पूर्ण विश्व में गीता ज्ञान के प्रचार-प्रसार के कार्य कर रहा है. प्रो. जवाहर लाल द्विवेदी ने विचार रखे. योग विज्ञान विभाग के अध्यक्ष प्रो. सुरेन्द्र कुमार ने कहा कि श्रीमद्भगवत गीता महान ग्रन्थ ने लाखों लोगों में प्राण फूंके हैं. कितने ही अवसाद, तनाव से ग्रस्त मनुष्यों को उबारा है. अत संजीवनी की भातिं इस ग्रन्थ को जितने लोगों तक पहुचाया जाये उतना कम है.
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्रो. सोमदेव शतांशु ने कहा कि श्रीमद्भगवत गीता ज्ञानयोग, कर्म योग और भक्तियोग का प्रमुख ग्रन्थ है. बिना मार्गदर्शक के भी इसके स्वाध्याय से हम ज्ञान का प्रकाश पा सकते हैं. इस अवसर पर प्रो. राजेश्वर मिश्र, डॉ. विष्णु तिवारी, प्रो. विनय विद्यालंकार, प्रो. अरुण कुमार, प्रो. एमएम तिवारी, प्रो. नवनीत आदि मौजूद थे.
350 से अधिक प्रतिभागी हुए शामिल
कार्यक्रम संयोजक डॉ. ऊधम सिंह ने कहा कि इस राष्ट्रीय सम्मेलन में मध्य प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, उत्तरप्रदेश, हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर आदि राज्यों से 350 से भी अधिक प्रतिभागी सम्मिलित हुए हैं. 80 से अधिक शोध पत्र का वाचन विभिन्न विश्वविद्यालयों से आये हुए प्रतिभागियों के द्वारा प्रस्तुत किये गए.