उत्तराखंड
इस स्थान की हरियाली और सुंदरता ने श्री कृष्ण का मोहा मन
Shantanu Roy
18 Nov 2021 2:18 PM GMT
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आपको आज हम ऐसे मंदर के बारे में बताने जा रहे है जो उत्तराखंड में स्थित है जहां कभी भगवान कृष्ण आए थे। जी हां आज हम बात करने जा रहे है उत्तराखंड में स्थित सेम मुखेम नागराजा मन्दिर की जो स्थित है
जनता से रिश्ता। आपको आज हम ऐसे मंदर के बारे में बताने जा रहे है जो उत्तराखंड में स्थित है जहां कभी भगवान कृष्ण आए थे। जी हां आज हम बात करने जा रहे है उत्तराखंड में स्थित सेम मुखेम नागराजा मन्दिर की जो स्थित है रमोली पट्टी के सेम नामक स्थान। लोगो मानते है कि भगवान श्री कृष्ण कुछ समय के लिए यहां पर आये थे और इस स्थान की हरियाली, पवित्रता और सुंदरता ने भगवान श्री कृष्ण का मन अपने तरफ आकर्षित कर लिया था और भगवान श्री कृष्ण ने यहाँ रहने का फैसला ले लिया।
भगवान ने राजा के पास जगह का रखा प्रस्ताव
हालांकि, भगवान श्री कृष्ण के पास इस स्थान में रहने लायक कोई प्रकार की जगह ही नहीं थी और भगवान श्री कृष्ण ने यहाँ के राजा गांगू रमोला को सात हाथ जगह लेने के लिए प्रस्ताव राजा गांगू रमोला के पास रखा। परन्तु राजा गांगू रमोला यह सोचने लगे कि कोई अनजान व्यक्ति का प्रस्ताव कैसे स्वीकार कर सकता हूँ। तो उन्होंने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया था।
राजा को बताना समझा उचित
कहा जाता है कि भगवान कृष्ण काफी समय तक इस स्थान पर रहे। एक दिन नागवंसी राजा के सपने में भगवान श्री कृष्ण आये और उन्होंने अपने यहाँ रहने के बारे में नागवंशी राजा को बताया। तभी नागवंसी राजा ने अपनी सेना ली और प्रभु के दर्शन करने के लिए वहां पहुंचे। परन्तु राजा रमोला ने नागवंसी राजा और उनकी सेना को अपनी भूमि पर आने से रोक दिया। तो इससे नागवंसी राजा क्रोध में आ गये ओर उन्होंने राजा रमोला पर आक्रमण करने की सोची लेकिन उन्होंने राजा रमोला को प्रभु के बारे में बताना उचित समझा, उन्होंने सारी बात प्रभु श्री कृष्ण के बारे में राजा रमोला को बताया।
तब से जाने जाते है नागराजा के रूप में
तब से राजा रमोला को प्रभु श्री कृष्ण के रूप को देखकर अपने हरकतों पर लज्जा सी आयी और राजा रमोला ने हाथ जोड़कर प्रभु से क्षमा याचना मांगी और प्रभु ने राजा रमोला को प्रेमपूर्वक माफ कर दिया। तब से प्रभु वहाँ पर नागवंशियों के राजा नागराजा के रूप में जाने जाने लगे।
आज भी होती है पत्थर की पूजा
तभी से कुछ समय पश्चात् भगवान श्री कृष्ण ने वहाँ के मंदिर में सदैव के लिए एक बड़े से पत्थर के रूप में विराजमान होना तय किया और अपने पवित्र परमधाम को चले गये ओर इसी पत्थर की आज भी नागराजा के रूप में पूजा की जाती है। श्रद्धालुओं की आस्था कहती है कि प्रभु श्री कृष्ण का एक अंश अभी भी इसी पत्थर में विराजमान है ओर करोड़ो व्यक्तियों की मनोकामना भी पूरी होती हुयी यह बात को सिद्ध करती है।
हर तीसरे साल निकलती है यात्रा
वहीं, यहां के स्थानीय निवासी बताते है कि आज भी कभी कभी मन्दिर मे घोडे की चलने की आवाज सुनाई देती है। हर तीसरे साल यहाँ पर नागराजा की विशाल यात्रा निकलती है। जिसमे उत्तराखंड के हर जिले के निवासी इस यात्रा का हिस्सा बनते है।
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