हल्द्वानी: अमृत विचार की टीम ने उन प्रभावितों से बात की, जिनके आशियानों अतिक्रमण की तलवार लटक रही थी। हमसे बातचीत में वह राज्य सरकार से कुछ उखड़े नजर आए और सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई से संतुष्ट भी। लोगों के दिल का गुबार फूटा तो कुछ और बातें जुबां पर आईं। आइए जानते हैं क्या कहा उन लोगों ने जिनके सिर से छत छिनने की नौबत आ गई थी।
उम्मीद है कि परिवार और आशियाने सलामत रहेंगे: प्रभावित क्षेत्र में रहने वाले वसीम पुत्र फईम 50 सालों से ज्यादा वक्त से यहां रह रहे हैं और पान की दुकान चला रहे हैं। वसीम का कहना है कि उनका जन्म हल्द्वानी में हुआ। इन्हीं गलियों में उनका बचपन गुजरा और इसी जमीन पर वह परिवार का खर्च उठाने काबिल बने, लेकिन अब परिवार की बसर पर ही संकट खड़ा हो गया। गनीमत है कि सुप्रीम कोर्ट ने हमारे हक में फैसला दिया। उम्मीद है कि हमारे आशियाने और परिवार सलामत रहेंगे।
आखिर अपने घर की हद किसे पता नहीं होता: बनभूलपुरा में 68 साल गुजार चुके सईद आदिल सिद्दीकी ने सरकार की मंशा पर सवाल खड़े किए और कहा कि अगर सरकार साथ देती तो सुप्रीम कोर्ट जाने की नौबत ही नहीं आती। लोग को हाईकोर्ट से ही न्याय मिल जाता। उन्होंने रेलवे पर भी आरोप लगाया और कहा, आज मैं जिस घर में रहता हूं कि उसकी हर एक ईंट और नींव की गहराई का मुझे पता है। फिर रेलवे के जमीन की हद रोज कैसे बढ़ रही है।
कल पूरी हल्द्वानी को अपनी जमीन बता देगा रेलवे: मकसूद अली अंसारी के वालिद वर्ष 1944 में बनभूलपुरा में आकर बसे और अब मकसूद 62 साल के हो चुके हैं। मकसूद का कहना है कि बात 29 एकड़ से 78 एकड़ तक पहुंच गई। रेलवे की जमीन दिन दोगुनी और रात चौगुनी तरक्की कर रहा है। ऐसा न हो कि कल रेलवे 78 एकड़ को 178 एकड़ बता दे और एक दिन हल्द्वानी पर ही दावा करने लगे। गनीमत है कि सुप्रीम कोर्ट ने हमें अपनी बात रखने का मौका दिया है।
आज स्टे मिला है, कल जीत हमारी पक्की है: 58 साल के हो चुके अजहर शाह खान का परिवार 80 साल पहले बनभूलपुरा में आकर बसा था। अजहर का कहना है कि आज इंसाफ की जीत हुई, हमें स्टे मिला और सुप्रीम कोर्ट से कल जीत भी हमारी होगी। हमें न्याय पालिका पर भरोसा है। हमारा पक्ष हाईकोर्ट के समक्ष ठीक से नहीं रखा गया। अब हमें एक बार फिर मौका मिला है। हम पूरे सुबूतों के साथ सुप्रीम कोर्ट के सामने अपनी बात रखेंगे। पट्टों और लीज को दरकिनार नहीं किया जा सकता।