
न्यूज़क्रेडिट: आजतक
शहादत के 38 साल बाद पिता का पार्थिव शरीर घर पहुंचा लेकिन बेटियां उनका चेहरा नहीं देख सकीं। पति की राह ताक रहीं पत्नी भी एकटक ताबूत को देखती रहीं। जिन नाती-नातिन ने नाना की बहादुरी के किस्से सुने थे पार्थिव शरीर पहुंचने पर उन्होंने तिरंगा चूमकर नाना को सेल्यूट किया।
38 साल से पिता को देखने के लिए तरस रहीं आंखों से आंसू बहते जा रहे थे। जब शवयात्रा चित्रशिलाघाट के लिए रवाना हुई तो शहीद की बेटी कविता और बबीता ने पिता को मुखाग्नि देने की इच्छा जताई। कुछ महिलाओं के साथ शहीद की बेटियां बस से चित्रशिलाघाट पहुंचीं और विधि-विधान पूरा होने के बाद दोनों बहनों ने छलकती आंखों और कांपते हाथों से पिता को मुखाग्नि देकर उन्हें अंतिम विदाई दी। उनके बाद शहीद के छोटे भाई और भतीजों ने मुखाग्नि देकर शहीद को नमन किया।
देश की रक्षा के लिए गए लांसनायक चंद्रशेखर हर्बोला की वापसी 38 साल बाद हुई लेकिन इस तरह उनकी घर वापसी की उम्मीद न थी। 38 साल से पिता का इंतजार कर रहीं कविता, बबीता और पति की राह ताक रही पत्नी शांति देवी का इंतजार 17 अगस्त की सुबह 12:47 बजे पूरा हुआ।
सेना बैंड के धुन और भारत माता के जयकारे के साथ जब शहीद का पार्थिव शरीर घर पहुंचा तो उनकी बेटियां खुद को रोक न सकीं। ताबूत में बंद पिता के पार्थिव शरीर को वे देख तो नहीं पाईं लेकिन ताबूत से लिपटकर पिता की मौजूदगी को महसूस करते हुए रोने लगीं। वहीं शांति देवी की निगाहें तो पति के ताबूत पर ऐसे टिकी थीं मानो उनकी दुनिया वहीं थम गई हो।
श्रेया, दीया और अदिति ने नाना के ताबूत से लिपटे तिरंगे को चूम कर उन्हें नमन किया तो वहीं शहीद के नाती विवान और सिद्धेश ने सेल्यूट कर नाना को अंतिम विदाई दी। शहीद के पार्थिव शरीर को चित्रशिला घाट पर भी कपड़े से बाहर नहीं निकाला गया।
मुखाग्नि देने तक परिजन और शहीद के साथी व परिचित एक बार चेहरा दिखाने की जिद करते रहे लेकिन आखिरी बार भी शहीद के वास्तविक अंतिम दर्शन किसी को न हो सके। चित्रशिलाघाट पर शहीद के पार्थिव शरीर पर लिपटे तिरंगे को सम्मानपूर्वक उतारकर शहीद की छोटी बेटी बबीता को सौंपा गया।
जिस तिरंगे में लिपटकर पिता का पार्थिव शरीर घर पहुंचा उसे हाथ में लेते हुए बबीता के आंसू भी तिरंगे पर ऐसे गिरे जैसे आंसुओं के सहारे पिता को स्पर्श कर रही हों। इसके बाद सैन्य अधिकारियों ने सैन्य सम्मान के साथ लास्ट पोज और राउज के बाद तीन राउंड फायरिंग कर शहीद को सलामी दी और उसके बाद पार्थिव शरीर का दाह संस्कार किया गया।
