उत्तराखंड

भारत की संस्कृति स्वयं में ही प्रकृति की संस्कृति है : राज्यपाल

Shantanu Roy
8 Oct 2022 6:50 PM GMT
भारत की संस्कृति स्वयं में ही प्रकृति की संस्कृति है : राज्यपाल
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देहरादून। राज्यपाल ने कहा कि भारत की संस्कृति स्वयं में ही प्रकृति की संस्कृति है। भारत में प्रकृति और संस्कृति का समन्वय है और यह समन्वय भारत की महान संत परम्परा के कारण ही है। इसलिए प्रकृति संरक्षण हमारी प्राथमिकता में होनी चाहिए। शनिवार को राजभवन में राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (सेनि) ने अहिंसा विश्व भारती और विश्व शांति केन्द्र के संस्थापक आचार्य डॉ.लोकेश के 40वें दीक्षा दिवस पर अहिंसा भारती की ओर से 'प्रकृति व संस्कृति के संरक्षण में संतों का योगदान' विषय पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन अवसर पर बोल रहे थे। इस दौरान राज्यपाल ने अहिंसा विश्व भारती की 'एंबेसडर ऑफ पीस' पुस्तक और विश्व शांति केन्द्र की विवरणिका का अनावरण भी किया। राज्यपाल ने अहिंसा विश्व भारती की ओर से स्वामी रामदेव को 'अन्तरराष्ट्रीय अहिंसा पुरस्कार-2022' से भी सम्मानित किया।
राज्यपाल ने कहा कि भारत की संस्कृति स्वयं में ही प्रकृति की संस्कृति है। जहां ईश्वर के अवतारों में भी प्रकृति का साथ होता है। भारतीय संस्कृति में प्रकृति की सदैव पूजा की जाती है। महान महापुरुषों ने प्रकृति और पर्यावरण के संरक्षण का संदेश दिया है जिसे हमें आत्मसात करना चाहिए। उन्होंने कहा कि यह शुभ अवसर है कि राजभवन में डॉ लोकेश के दीक्षा दिवस पर समारोह आयोजित किया गया। जिन्होंने अपना पूरा जीवन प्रकृति और संस्कृति के लिए लगा दिया। राज्यपाल ने कहा कि हमें अपना अस्तित्व बचाने के लिए प्रकृति और संस्कृति के संरक्षण एवं संवर्द्धन की जिम्मेदारी लेनी होगी। जलवायु परिवर्तन, ग्लोबल वार्मिंग जैसी समस्याओं से निजात पाने के लिए प्रकृति संरक्षण पर ध्यान देना जरूरी है, इसके लिए जन चेतना और लोगों का जागरूक होना आवश्यक है। प्रकृति संरक्षण हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए।
उन्होंने कहा कि संत देश के असली नायक हैं। संतों ने अपने ज्ञान के बल पर त्याग और तपस्या के बल पर समाज को एक नयी दिशा प्रदान की है। भारत की स्वतंत्रता आंदोलनों में भी संतों ने समाज का मार्गदर्शन किया है। राज्यपाल ने आशा व्यक्त की कि अहिंसा विश्व भारती के माध्यम से पूरी दुनिया में प्रकृति व संस्कृति की रक्षा के साथ-साथ अहिंसा, शांति और सद्भावना का संदेश प्रसारित होगा। योग गुरु स्वामी रामदेव,परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती और महामंडलेश्वर स्वामी अद्वैतानंद ने अपने-अपने विचार रखते हुए कहा कि विश्व शांति व सद्भावना स्थापित करने के लिए आचार्य लोकेश के समर्पण और उनकी निष्ठा प्रशंसनीय है। उन्होंने कहा कि प्रकृति व संस्कृति के संरक्षण के लिए अहिंसा विश्व भारती की ओर से किए जा रहे कार्यों को देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी सराहा जा रहा है। सभी ने प्रकृति संरक्षण के लिए लोगों से आगे आने का आह्वान किया। आचार्य डॉ.लोकेश ने कहा कि भारतीय संस्कृति प्राचीनतम एवं महान संस्कृति है,सर्वधर्म समभाव जिसका मूल मंत्र है,भारतीय होने के नाते अपने देश की महान संस्कृति और वसुधैव कुटुंबकम के संदेश को विश्व भर में फैलाना गौरव का विषय है। संगोष्ठी में महामण्डलेश्वर स्वामी अद्वैतानंद, अमेरिका में अहिंसा विश्व भारती के अध्यक्ष अनिल मोंगा,सौरव बोरा,राष्ट्रीय सैनिक संस्था के अध्यक्ष कर्नल टी.पी.त्यागी,सतीश अग्रवाल,संजय मित्तल सहित अनेक गण्यमान्य लोग मौजूद रहे।
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