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उत्तराखंड | कुमाऊं में सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं की कलई एक बार फिर खुल गई. घर के बरामदे में गिरकर घायल हुए बच्चे को मंडल के तीन जिलों के अस्पतालों में इलाज नहीं मिल सका. बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं का दावा करने वाले डॉ. सुशीला तिवारी अस्पताल में 30 घंटे से अधिक समय तक भर्ती रहने के बाद भी बच्चे का ऑपरेशन नहीं हो सका. ऐसे में कृष्णा की मौत से पूरी स्वास्थ्य व्यवस्था पर सवाल खड़े हो गए हैं.
बागेश्वर के गरुड़ पाटली स्थित धारा बगड़ तोक निवासी कैलाश चंद्र ने बताया कि को बेटे के घायल होने पर वह सबसे पहले उसे गरुड़ के निजी अस्पताल में ले गए. वहां से कृष्णा को अल्मोड़ा रेफर कर दिया गया. वहां भी इलाज न मिलने पर बच्चे को हल्द्वानी एसटीएच भेजा गया. कृष्णा की मौसी आरती ने बताया कि 5 की रात करीब 9 बजे कृष्णा को लेकर उसके माता-पिता, मामा राहुल और वह खुद एसटीएच पहुंच गए थे. डॉक्टरों ने उसे देखा और भर्ती कर लिया. डॉक्टरों ने छह की दोपहर दो बजे ऑपरेशन की बात कही और बाद में मना कर दिया. इसके बाद सुबह ऑपरेशन का भरोसा दिया लेकिन तब भी पूरा नहीं हुआ. दोपहर में कृष्णा ने ऑपरेशन के इंतजार में दम तोड़ दिया. इसके बाद परिजन बच्चे का शव लेकर गरुड़ के लिए रवाना हो गए. उच्चाधिकारियों से शिकायत करने की बात कही है.
लंबे समय से विभाग पर सवाल बच्चे की मौत के मामले में एनेस्थीसिया विभाग पर सवाल उठ रहे हैं. एसटीएच का एनेस्थीसिया विभाग बीते कई दिनों से चर्चाओं में है. सूत्रों के मुताबिक बीते कुछ दिनों में विभाग के क्लियरेंस से संबंधित कई मामले सामने आ चुके हैं. करीब तीन दिन पहले भी एक व्यक्ति को ऑपरेशन की जरूरत थी. डॉक्टरों ने पूरी तैयारी की, लेकिन क्लियरेंस न मिलने की वजह से ऑपरेशन नहीं हो सका.
30 घंटे तक नहीं मिला एनेस्थीसिया से क्लीयरेंस
ऑपरेशन से पहले एनेस्थीसिया विभाग से क्लीयरेंस लेना पड़ता है. एसटीएच के न्यूरोसर्जरी विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. अभिषेक राज कृष्णा का इलाज कर रहे थे. न्यूरोसर्जन के मुताबिक, बच्चे की हालत गंभीर थी. ऑपरेशन के लिए छह की सुबह 9 बजे एनेस्थीसिया विभाग को सूचना दी गई थी. जानकारी के मुताबिक विभाग की टीम शाम करीब 6 बजे लगभग 9 घंटे बाद पहुंची. वहां पहुंचकर बच्चे को ब्लड चढ़ाने और रिपीट रिपोर्ट विभाग को भेजने के अलावा पेड्रियाट्रिक डॉक्टर को दिखाने को कहा. इस पूरी प्रक्रिया में की पूरी रात गुजर गई.
हेड इंजरी, ब्रेन हेमरेज इस तरह के मामलों में एक से दो घंटे के अंदर आवश्यकता वाले मरीज का ऑपरेशन होना जरूरी होता है. हमने बच्चे को भर्ती कर तुरंत इलाज शुरू कर दिया था और समय से एनेस्थीसिया विभाग को सूचना भी दे दी गई थी. - डॉ. अभिषेक राज, न्यूरोसर्जन
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Harrison
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