उत्तराखंड

राज्य मेला, रक्षाबंधन पर होता है अद्भुत पत्थर युद्ध

Admin4
11 July 2022 6:18 PM GMT
राज्य मेला, रक्षाबंधन पर होता है अद्भुत पत्थर युद्ध
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खटीमा: चंपावत जिले के देवीधुरा में मां बाराही मंदिर में लगने वाले देश के प्रसिद्ध बग्वाल मेले (पत्थर मार) को सरकार ने राज्य मेला घोषित कर दिया है, जिसके लिए विधायक खुशाल सिंह अधिकारी, मां बाराही मंदिर कमेटी और क्षेत्रवासियों ने सीएम पुष्कर सिंह धामी का आभार जताया है. वहीं, 8 अगस्त से शुरू होने जा रहे प्रसिद्ध बग्वाल मेले की तैयारी को लेकर चंपावत के जिलाधिकारी नरेंद्र सिंह भंडारी की अध्यक्षता में एक बैठक आयोजित की गई.

चंपावत जिले के प्रसिद्ध देवीधुरा में मां बाराही मंदिर में रक्षाबंधन के दिन होने वाले प्रसिद्ध बग्वाल मेले को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी द्वारा राज्य मेला घोषित करने के बाद से इस साल पहली बार राज्य सरकार के तत्वाधान में मेला आयोजित होगा. बग्वाल मेले को पूर्व की तरह सफलतापूर्वक आयोजित करने के लिए आज जिलाधिकारी चंपावत के नेतृत्व में एक बैठक की गई.

बैठक में क्षेत्रीय विधायक खुशाल सिंह अधिकारी, जिला पंचायत अध्यक्ष ज्योतिराय, मंदिर कमेटी के पदाधिकारी एवं क्षेत्रीय जनता मौजूद रही. बैठक में देश के प्रसिद्ध बग्वाल मेले की तैयारियों को लेकर चर्चा की गई, जिसमें सुरक्षा, परिवहन, विद्युत एवं पेयजल व्यवस्था, शौचालय, कूड़ा निस्तारण और सांस्कृतिक दलों के रहने की व्यवस्था आदि पर चर्चा की गई.

वहीं, जिलाधिकारी नरेंद्र सिंह भंडारी ने बताया कि मेले की व्यवस्था प्रशासन के द्वारा की जाएगी. इस प्रसिद्ध मेले को मंदिर कमेटी क्षेत्रीय जनता के सहयोग से भव्य और दिव्य रूप दिया जाएगा. विधायक खुशाल सिंह अधिकारी ने बताया कि 8 अगस्त को बग्वाल मेले का शुभारंभ होगा. उद्घाटन में सीएम धामी के आने की पूरी संभावना है. 12 अगस्त को प्रसिद्ध बग्वाल खेली जाएगी. मालूम हो इस पत्थर मार मेले को देखने देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु देवीधुरा पहुंचते हैं.

बग्वाल का क्या है इतिहास: टनकपुर से 132 किमी दूर चम्पावत जनपद के पाटी ब्लॉक के देवीधुरा में मां बाराही धाम मंदिर के खोलीखांड दुबाचौड़ में हर साल अषाढ़ी कौतिक (रक्षाबंधन) के दिन बग्वाल होती है. पत्थर से शुरू यह बग्वाल बीते कुछ वर्षों से फल-फूलों से खेली जाती रही है. कई लाख लोगों की मौजूदगी में होने वाली बग्वाल में चार खामों (चम्याल, गहरवाल, लमगड़िया और वालिग) के अलावा सात थोकों के योद्धा फर्रो के साथ हिस्सा लेते हैं.माना जाता है कि देवीधूरा में बग्वाल का यह खेल पौराणिक काल से खेला जा रहा है. कुछ लोग इसे कत्यूर शासन से चला आ रहा पारंपरिक त्योहार मानते हैं, जबकि कुछ अन्य इसे काली कुमाऊं से जोड़ कर देखते हैं. प्रचलित मान्यताओं के अनुसार पौराणिक काल में चार खामों के लोगों द्बारा अपनी आराध्या बाराही देवी को मनाने के लिए नर बलि देने की प्रथा थी. मां बाराही को प्रसन्न करने के लिए चारों खामों के लोगों में से हर साल एक नर बलि दी जाती थी. बताया जाता है कि एक साल चमियाल खाम की एक वृद्धा परिवार की नर बलि की बारी थी. परिवार में वृद्धा और उसका पौत्र ही जीवित थे. माना जाता है कि महिला ने अपने पौत्र की रक्षा के लिए मां बाराही की स्तुति की. मां बाराही ने वृद्धा को दर्शन दिए और कहा जाता है कि देवी ने वृद्धा को मंदिर परिसर में चार खामों के बीच बग्वाल खेलने के निर्देश दिए. तब से बग्वाल की प्रथा शुरू हुई.

बग्वाल बाराही मंदिर के प्रागण खोलीखाण में खेली जाती है. इसे चारों खामों के युवक और बुजुर्ग मिलकर खेलते हैं। लमगड़िया व बालिग खामों के रणबांकुरे एक तरफ जबकि दूसरी ओर गहड़वाल और चमियाल खाम के रणबांकुरे डटे रहते हैं. रक्षाबंधन के दिन सुबह रणबांकुरे सबसे पहले सज-धजकर मंदिर परिसर में आते हैं. देवी की आराधना के साथ शुरू हो जाता है. दोनों ओर के रणबांकुरे पूरी ताकत एवं असीमित संख्या में पत्थर तब तक चलाते हैं, जब तक एक आदमी के बराबर खून न गिर जाए. बताया जाता है कि पुजारी बग्वाल को रोकने का आदेश जब तक जारी नहीं करते तब तक खेल जारी रहता है. इस खेल में कोई किसी का दुश्मन नहीं होता है. पूरे मनोयोग से बग्वाल खेली जाती हैं. यह भी मान्यता है कि इस खेल में कोई भी गंभीर रूप से घायल नहीं होता है. किसी का सिर फूटता है तो किसी का माथा. अंत में सभी लोग गले मिलते हैं. कुछ घायलों को प्राथमिक उपचार दिया जाता है.

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