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पानी क्या है, क्या है उसकी जाति?
पूछ गगरी से शीतल जल कैसे कर पाती?
गगरी हूं, मिट्टी पानी से बन जाती।
कुंभकार का पसीना मेहनत रंग लाती।
जल कर आती मैं अवगुणों को मार पाती।
हर प्यासे को शीतल जल ही पिलाती।।
है ज्ञान का मंदिर जहां, जाति कैसे बन जाती?
हुआ मुझसे, अपराध कैसे हुआ?
शरीर छोड़ आत्मा चली जाती।
समझो धर्म की जाति, जात की जाति।
ये इंसान नहीं बन पाती।
छोड़ दो धर्म जाति, गगरी हमें यह समझाती।
प्रजापति कुंभकार की क्या है जाति?
गगरी करती पुकार, उसको जाति में मत तोलो।
वो बिना जाति की मिट्टी बिन जाति का पानी।
लगी मेहनत कुंभकार की, गगरी हूं बन जाती।
अवगुणों के आवी में जलती।
तब जा कर सबको शीतल जल पिलाती।।
चरखा फीचर
अंजली गोस्वामी
चोरसौ, गरुड़
बागेश्वर, उत्तराखंड
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