उत्तराखंड
वैज्ञानिकों ने निर्माण कार्यों को लेकर दी चेतावनी, हेमकुंड साहिब का सात किमी रास्ता जोखिमभरा
Renuka Sahu
26 Jun 2022 5:51 AM GMT
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फाइल फोटो
उत्तराखंड के चमोली जिले में आस्था के केंद्र हेमकुंड साहिब का पैदल अटलाकोडी मार्ग हिमस्खलन के लिए अत्यंत संवेदनशील है.
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। उत्तराखंड के चमोली जिले में आस्था के केंद्र हेमकुंड साहिब का पैदल अटलाकोडी मार्ग हिमस्खलन के लिए अत्यंत संवेदनशील है। वैज्ञानिकों ने इस पूरे मार्ग पर किसी भी तरह का निर्माण कार्यों नहीं करने को आगाह किया है। उनका कहना है कि सड़क, भवन या अन्य किसी तरह के निर्माण कार्य इस इलाके की संवेदनशीलता को कई गुना बढ़ा देंगे। इसके बजाय रोपवे उचित विकल्प है।
वाडिया हिमालय भू-विज्ञान संस्थान के निदेशक डा. कालाचांद साईं और डा. मनीष मेहता के शोध में यह खुलासा हुआ है। शोध के मुताबिक, उत्तराखंड का चमोली जिला आपदा के लिहाज से संवेदनशील है, जहां कुल 58 हिमस्खलन वाले खतरनाक जोन चिह्नित किए गए हैं। शोध के मुताबिक, हेमकुंड साहिब और घांघरिया के बीच लक्ष्मणगंगा जलग्रहण क्षेत्र में अटलाकोडी ट्रैक हिमस्खलन के खतरों का जोखिम है। हेमकुंड साहिब सिखों का पवित्र धार्मिक स्थल है, जहां सालाना पांच लाख से अधिक तीर्थ यात्री घांघरिया से हेमकुंड के बीच सात किलोमीटर की दूरी पैदल तय करते हैं। ये तीर्थ यात्री जान जोखिम में डालकर यात्रा कर रहे हैं। अटलाकोडी एक घने बुनियादी ढांचे घांघरिया रनआउट जोन के ऊपर बना है, जो असुरक्षित है। पूरा मार्ग हिमस्खलन जोन को कवर करता है। स्थानीय लोग इसे पगडंडी के अभिशाप के रुप में भी जानते हैं, जहां हर साल हिमस्खलन की छोटी बड़ी घटनाएं हो रही हैं। वाडिया संस्थान के वैज्ञानिकों ने इस क्षेत्र की मैपिंग कर पाया कि हिमस्खलन ने 747910 वर्ग मीटर के औसत क्षेत्र को प्रभावित किया है। वाडियो के वैज्ञानिकों का यह शोध जियोलॉजीकल सोसाइटी ऑफ इंडिया जर्नल में प्रमुखता से प्रकाशित हुआ है।
तीव्र ढलान और संकरा मार्ग चुनौती
देहरादून। अटलाकोडी में इस साल 18 अप्रैल को हुए हिमस्खलन में घांघरिया (3120 मीटर) और हेमकुंड साहिब गुरुद्वारा (4200 मीटर) के बीच ट्रैक रूट जोन और ट्रेल को व्यापक नुकसान पहुंचा। लक्ष्मणगंगा जलग्रहण मार्ग पर 30 डिग्री ढलान पर हिमस्खलन क्षेत्र की लंबाई चार किलोमीटर और चौड़ाई 150 मीटर पाई गई है। इन इलाकों में हिमस्खलन थर्मोडायनामिक परिवर्तनों के परिणाम स्वरूप ट्रिगर हो रहे हैं। तापमान, हवा का वेग और तीव्र ढाल इस परिस्थिति के लिए जिम्मेदार है। ढलान जितना अधिक होगा, हिमस्खलन की संभावना उतनी अधिक होगी। खासकर गर्मियों के समय की शुरुआत में ऐसी घटनाओं की संभावना अधिक रहती है।
अटलाकोडी ट्रैक पर अब तक की बड़ी घटनाएं
-अक्तूबर 1998 में हिमस्खलन के कारण 27 तीर्थ यात्री बर्फ में दबकर मारे गए थे।
-23 जून 2008 को भी आठ तीर्थयात्रियों की मौत हुई, 12 अन्य घायल हुए थे।
-21 अप्रैल 2022 को अटलाकोडी मार्ग पर हिमस्खलन का एक वीडियो सोशल मीडिया पर आया।
हेमकुंड साहिब में राज्य सरकार को सुरक्षित यात्रा के लिए ठोस निर्णय लेने होंगे। बेहद संवेदनशील होने की वजह से इस क्षेत्र में भवन निर्माण, बड़ी संरचनाएं या पहाड़ से छेड़छाड़ घातक साबित हो सकता है। लिहाजा हेमकुंड यात्रा मार्ग पर किसी भौतिक संरचना के मुकाबले रोपवे जैसे प्रोजेक्ट ही बेहतर विकल्प हैं।
-डा. कालाचांद साईं, निदेशक वाडिया हिमालय भू-विज्ञान संस्थान
अतिसंवेदनशील हिमालय
देहरादून। वैज्ञानिकों के मुताबिक, उच्च हिमालयी क्षेत्रों में हिमस्खलन की घटना से पार नहीं पाया जा सकता। हिमालय ध्रुवीय क्षेत्रों के बाद पृथ्वी पर बर्फ के प्रमुख भंडारों में से एक है। हिमालय में पर्वतीय क्षेत्र का दस प्रतिशत सदैव बर्फ से ढका रहता है, जो सर्दियों में बढ़कर 30 प्रतिशत हो जाता है। इससे बर्फ भरे ढलान पर हिमस्खलन की घटनाएं और खतरे कई गुना बढ़ जाते हैं। हिमस्खलन के लिए समुद्र से आने वाला वायु प्रवाह और जलवायु परिवर्तन अनुकुल परिस्थितियां बनाता है, उच्च हिमालय क्षेत्र में बढ़ रही मानवीय गतिविधियां भी इसके लिए जिम्मेदार हैं। तीर्थयात्रा, पर्यटन और हिमालयी क्षेत्र के बेहद करीब बसावट व अनियोजित विकास भी संवेदनशीलता को बढ़ा रहे हैं। हाल में राज्य सरकार ने हेमकुंड साहिब के लिए 12.5 किमी लंबी रोपवे परियोजना का अनुमोदन किया है। इसमें फूलों की घाटी की 27.4 हेक्टेयर वनभूमि उपयोग में लाई जाएगी।
हेलीपैड बनाना भी घातक
देहरादून। उच्च हिमालयी क्षेत्रों में तीर्थ यात्रा को सुगम बनाने के लिए जिस तरह से हैली सेवाओं को अहमियत दी जा रही है, उससे भी पर्यावरण और वन्य जीवों की दिनचर्या बुरी तरह प्रभावित हो रही है। मौजूदा समय में गोविंदघाट से घांघरिया के बीच हेली सेवा संचालित होती है। हेमकुंड साहिब क्षेत्र में भी हेलीपैड बनाने की योजना है, जिसका विरोध हो रहा है। पर्यावरणविद् पद्मभूषण डा. अनिल जोशी के मुताबिक, अतिसंवेदनशील क्षेत्रों में लगातार उड़ान भर रहे हेलीकॉप्टर, उनका शोर हिमालय की जैव विविधता के लिए घातक है। यात्रियों या हैली कंपनियों के फायदे के लिए हिमालय को दांव पर नहीं लगाया जा सकता।
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