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उत्तराखंड | राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा कि विविधता में एकता हमारी परंपरा का हिस्सा है. इसलिए मनुष्य को अपनी लघु चेतना का विकास करना चाहिए, ताकि वह अनेकता में एकता के सार को समझ सके और उसे अपना सके। भागवत ने ये उद्गार सोमवार को देवसंस्कृति विश्वविद्यालय, हरिद्वार में जी-20 विषय पर आयोजित दो दिवसीय वसुधैव कुटुम्बकम व्याख्यानमाला के समापन पर व्यक्त किये।
संघ प्रमुख ने कहा कि भारत तेजस का उपासक है और गायत्री परिवार भी इसी तेजस (सूर्य) की पूजा करता है. इस यात्रा में चलने वाला प्रत्येक व्यक्ति और साधक विश्व को बचाने के लिए कार्य कर रहा है। कहा कि विश्व में शांति रहे, इसके लिए सभी को मिलकर काम करना चाहिए। प्राचीन काल में ऋषि-मुनि छोटे-छोटे प्रशिक्षण केन्द्रों के माध्यम से व्यक्तियों को प्रशिक्षित करते थे, ताकि सभी लोग एक परिवार की तरह अपने सहकर्मियों के साथ मिल-जुलकर रहें। हमें भी स्वार्थ नहीं, परिवार के लिए जीना है। कहा कि भारत का उदय विश्व कल्याण के लिए हुआ है, हमें इस मर्म को समझने की जरूरत है। यह भी देव संस्कृति है।
देवसंस्कृति विश्वविद्यालय के प्रतिकुलपति डॉ. चिन्मय पण्ड्या ने कहा कि यह समय अपार सम्भावनाएँ लेकर आया है और परिवर्तन निश्चित है। जवानों जागो, सावधान रहो, तभी भारत को विकसित राष्ट्र बनाया जा सकता है।
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Harrison
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