हरिद्वार न्यूज़: केंद्र सरकार ने समलैंगिकों के विवाह को मान्यता देने के लिए दायर की गई याचिकाओं का विरोध किया है. सरकार ने कहा कि विवाह की परिकल्पना में महिला और पुरुष ही रखे गए हैं.
केंद्र ने उच्चतम न्यायालय में दायर शपथपत्र में कहा, सामाजिक, सांस्कृतिक और कानूनी रूप से विपरीत लिंग वाले दो व्यक्तियों की शादी ही विवाह की परिकल्पना में सोची गई है. इस परिकल्पना को न्यायिक हस्तक्षेपों से हल्का नहीं किया जाना चाहिए. सभी व्यक्तिगत कानून और कानूनी विधान विवाह को विपरीत लिंग वाले लोगों के बीच के संबंध को ही मान्यता देते हैं. जब इस मामले में स्पष्ट विधायी प्रावधान हैं, तो ऐसे में न्यायिक हस्तक्षेप से कानून को पुनर्लिखित करना ठीक नहीं है. कानून में स्पष्ट रूप से लिंग आधारित/विशेष की भाषा प्रयुक्त की गई है, पुरुष और महिला शब्द इस्तेमाल किए गए हैं तो अदालत इसे अलग अर्थ नहीं दे सकती.
परिवार की परिकल्पना में उचित नहीं सरकार ने कहा, एक ही लिंग के लोगों की शादी की परिकल्पना भारत में संभव नहीं है. देश में परिवार की परिकल्पना पति और पत्नी और विवाह के बाद हुए बच्चों से है. यह सही है कि नवतेज सिंह जौहर मामले में उच्चतम न्यायालय ने समलैंगिक संबंधों को गैरआपराधिक बना दिया है लेकिन ऐसे संबंधों को विवाह में बदलने के अधिकार का दावा नहीं किया जा सकता.
विदेशी फैसले देश में लागू न हों सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के जरिये पेश शपथपत्र में कानून मंत्रालय में संयुक्त सचिव केआर साजी कुमार ने कहा, उच्चतम न्यायालय को अमेरिका समेत विदेशी फैसलों को देश में लागू नहीं करना चाहिए. महिला और पुरुष को ही विवाह की अनुमति देना ठीक है. समलैंगिक यह नहीं कहते कि यह उनके बराबरी के अधिकार का उल्लंघन है. इसके अलावा यह अनुच्छेद 15(1) का उल्लंघन भी नहीं है क्योंकि यह लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं है. याचिकाओं में हिन्दू मैरिज एक्ट, विशेष विवाह कानून, विदेशी विवाह कानून, पारसी मैरिज एक्ट, ईसाई विवाह और तलाक कानून के प्रावधानों को चुनौती दी गई है.
समलैंगिक यौन संबंध अपराध नहीं
उच्चतम न्यायालय की पांच सदस्यीय बेंच ने छह सितंबर 2018 को ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए देश में वयस्कों के बीच आपसी सहमति से निजी स्थान पर बनने वाले समलैंगिक या विपरीत लिंग के लोगों के बीच यौन संबंध को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया था.
पिछले साल अमेरिका में मिली मान्यता
अमेरिका में समलैंगिक विवाह को पिछले साल दिसंबर मेंकानूनी मान्यता मिली. राष्ट्रपति जो बाइडन ने अमेरिकी संसद की ओर से मंजूरी देने के बाद विवाह समानता की रक्षा के लिए विधेयक पर हस्ताक्षर किए. अमेरिका में पहले समलैंगिक विवाह पर रोक नहीं थी लेकिन 2015 में देश के उच्चतम न्यायालय ने इसपर रोक लगा दी थी.
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