रुड़की: जोशीमठ में हो रहे भू धंसाव की जांच को वैसे तो तमाम केंद्रीय संस्थानों के वैज्ञानिक अपने-अपने पैमानों पर कर रहे हैं, लेकिन आईआईटी रुड़की के पास एक ऐसी मशीन है जो इसके लिए सबसे कारगर हो सकती है। अब सरकार इस मशीन से भी हाइड्रो जियोलॉजिकल अध्ययन के बारे में विचार कर रही है।
आईआईआरएस, वाडिया इंस्टीट्यूट सहित भूगर्भ की जांच पड़ताल करने वाले वैज्ञानिकों के पास अभी तक 40 से 60 लाख कीमत की ईएमआर या ईआरपी मशीनें हैं। आईआईटी रुड़की के हाइड्रोलॉजिकल विभाग के पास इन मशीनों के साथ ही करीब दो करोड़ कीमत की अत्याधुनिक ग्राउंड मैगनेटिक रेजोनेंस (जीएमआर) मशीन भी है। इस मशीन को जमीन के 200 मीटर तक भूगर्भीय हलचलों का पता लगाने में सबसे माहिर माना जाता है।
सरकार ने आईआईटी रुड़की को दी जिम्मेदारी
राज्य सरकार ने जोशीमठ की भूगर्भीय जांच की जिम्मेदारी आईआईटी रुड़की को सौंपी है। सचिव आपदा प्रबंधन डॉ. रंजीत सिन्हा का कहना है कि वैसे तो आईआईटी के वैज्ञानिक जोशीमठ का अध्ययन करने में जुटे हैं, लेकिन जीएमआर जैसी अत्याधुनिक तकनीक से भी जांच करने के बारे में आईआईटी के वैज्ञानिकों से बात की जाएगी।
भीलवाड़ा की दरारों की हुई थी जांच
राजस्थान के भीलवाड़ा के पुर गांव में वर्ष 2019 में जोशीमठ जैसी दरारें आईं थीं। राजस्थान सरकार ने आईआईटी रुड़की को जिम्मा सौंपा था। आईआईटी के हाइड्रोलॉजी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. बीके यादव ने जीएमआर मशीन से पुरे गांव का हाइड्रो जियोलॉजिकल बिहैवियर अध्ययन किया था। इसी आधार पर उन्होंने दरारों की वजह बताते हुए सरकार को रिपोर्ट सौंपी थी।
हर हलचल सबसे बेहतर बताती है जीएमआर
जमीन के भीतर होने वाली हर भूगर्भीय हलचल को जीएमआर उपकरण से ज्यादा सटीक से देखा जा सकता है। डॉ. बीके यादव का कहना है कि यह अब तक की सबसे नई तकनीक है। इसकी सटीकता की दर भी अन्य तकनीकों के मुकाबले बेहतर है।
कैसे काम करती है जीएमआर
आईआईटी के वैज्ञानिकों के मुताबिक, जीएमआर जमीन के भीतर मैगनेटिक तरंगों पर काम करती है। जीएमआर से सरफेस न्यूक्लियर मैगनेटिक रेजोनेंस (एसएनएमआर) सर्वेक्षण होता है। खास बात यह है कि अन्य तकनीकों के मुकाबले यह तकनीक बेहद कम स्थान में काम कर सकती है। यह हाइड्रो जियोलॉजिक अध्ययन कर रिपोर्ट तैयार करती है।