उत्तराखंड

अब ग्रामीणों को आत्मनिर्भर बना रही यूरोपियन ट्राउट फिश

Bharti sahu
17 Aug 2022 7:58 AM GMT
अब ग्रामीणों को आत्मनिर्भर बना रही यूरोपियन ट्राउट फिश
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कोरोना काल के बाद से कई लोग महानगरों से वापस अपने घरों को लौटे

कोरोना काल के बाद से कई लोग महानगरों से वापस अपने घरों को लौटे. इस दौरान कइयों की नौकरी तो छूटी लेकिन इस दौर ने उन्हें आत्मनिर्भर बनना भी सिखाया. इसको देखते हुए कई ग्रामीणों ने अपना खुद का रोजगार शुरू किया. उत्तराखंड के नैनीताल जिले के रामगढ़ क्षेत्र में किसानों ने यूरोपीय प्रजाति की मछली को अपने व्यवसाय का जरिया बनाया और आज वे अच्छी आमदनी कर रहे हैं.

रामगढ़ के बोराकोट ग्राम सभा में कुछ ग्रामीणों ने ट्राउट मछली को अपना रोजगार बनाया. खासियत यह है कि यह एक यूरोपीय प्रजाति की मछली है. यहां के ग्रामीण पृथ्वी का कहना है कि उन्होंने रेनबो ट्राउट फिश का कारोबार किया है. इसमें सतरंगी धारी होने की वजह से इसे यह नाम दिया गया है. यह मछली सैलमोनिड प्रजाति की है, जो ठंडे पानी में रहना पसंद करती है. जिस वजह से इसे कोल्ड वॉटर फिशरीज की श्रेणी में रखा गया है. साल 1901 में ट्राउट मछली को अंग्रेज यूरोपियन देश नॉर्वे से नैनीताल के भवाली क्षेत्र में लाए थे, जहां कई वर्षों तक इसका व्यवसाय चलता रहा.
कीमत और खासियत के चलते बेहतर विकल्प है यह मछली
इस मछली की खासियत है कि यह ऊंचाई वाले क्षेत्रों में आसानी से रह सकती है. इस मछली के लिए पानी का लेवल भले ही ज्यादा न हो हालांकि यह मछली बहते पानी में रहना पसंद करती है. जाड़ों में पानी काफी ठंडा रहता है लेकिन उसमें भी यह मछली ग्रो कर सकती है. उन्होंने बताया कि यह मछली पहाड़ों में व्यवसाय के लिए काफी अच्छी है. इसका वजन 8 से 9 महीने में 1 किलो तक हो जाता है.
इस मछली की डिमांड दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु जैसे महानगरों में काफी ज्यादा है. इसके अलावा यहां से इसे साउथ इंडिया तक भेजा जाता है. सरकारी रेट की बात करें तो यह मछली करीब 600 से 700₹ किलो तक बिकती है. हालांकि बाजार में इसके दाम 1000 से 1200₹ किलो तक पहुंच जाते हैं. यह काफी मुलायम मछली है, जिसके कांटे भी चबाने में मुलायम होते हैं. इस प्रजाति की मछली में बीमारियां भी बहुत कम होती हैं. पृथ्वी ने बताया कि कोरोना के बाद उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी और ट्राउट मछली को रोजगार का जरिया बनाने की ठानी.


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