नगर निकाय गतिरोध कैंट बोर्डों को अपनाने के लिए तैयार नहीं
नैनीताल: कैंट बोर्ड के सिविल क्षेत्रों को स्थानीय निकायों में शामिल किए जाने को लेकर उत्तराखंड के निकायों ने रुचि नहीं दिखाई है. देहरादून नगर निगम ने तो प्रस्ताव पारित कर, कैंट बोर्ड को शामिल करने के खिलाफ अपनी राय शासन को भेज भी दी है.
उत्तराखंड में क्लेमेंटाउन, गढ़ीकैंट, लढौंर, चकराता, लैंसडौन, रुड़की, अल्मोड़ा, रानीखेत और नैनीताल में कुल नौ छावनी परिषद कार्यरत हैं. केंद्र सरकार छावनी परिषदों के सिविल क्षेत्रों को स्थानीय निकायों के हवाले करने का निर्णय ले चुकी है. इसी क्रम में कैंट बोर्ड मर्जन का प्रस्ताव शहरी विकास विभाग को सौंप चुके हैं. इसी क्रम में विभाग ने संबंधित निकायों से भी इस पर राय मांगी थी, लेकिन निकायों ने इस पर सकारात्मक रुख नहीं अपनाया है. इस कारण इस विवाद सुलझाने के लिए निदेशालय ने मुख्य नगर अधिकारी देहरादून की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय कमेटी बनाने का निर्णय लिया है.
दून, मसूरी, अल्मोड़ा में विरोध
देहरादून नगर निगम में क्लेमेंटाउन और गढ़ी कैंट को शामिल किया जाना है, इस बारे में देहरादून के मेयर सुनील उनियाल गामा ने कहा कि यह प्रस्ताव बोर्ड बैठक में रखा गया था, लेकिन बोर्ड ने इसे अस्वीकार कर दिया है. इन क्षेत्रों को निगम में शामिल करने से पहले लंबित भुगतान, कर्मचारियों मामले को लेकर स्थिति स्पष्ट होनी चाहिए. वहीं मसूरी पालिका अध्यक्ष अनुज गुप्ता ने लंढौर कैंट बोर्ड को शामिल करने का विरोध किया है, इसी प्रकार अल्मोड़ा नगर पालिकाध्यक्ष प्रकाश चंद्र जोशी का भी कहना है कि सरकार ने शर्त लगाई है कि इस पर आने वाला वाला व्यय भार पालिका उठाएगी. अगर व्ययभार शासन उठाता है तो ही पालिका इस प्रस्ताव पर सहमत होगी. चकराता, लैंसडौन पर पेंच कैंट बोर्ड को सिविल क्षेत्र राज्य सरकार के अधीन करने पर असल पेंच चकराता और लैंसडौन के मामले में आ रहा है. यहां आबादी मुख्य रूप से कैंट क्षेत्र में होने से नगर निकाय गठित नहीं किए गए हैं. इस कारण शहरी विकास विभाग यहां मर्जर करने की भी स्थिति में नहीं है.