न्यूज़क्रेडिट: अमरउजाला
सुभारती ट्रस्ट के ट्रस्टी की शिकायत पर मनीष वर्मा, उनकी पत्नी व भाई के खिलाफ वर्ष 2012 में मुकदमा दर्ज किया गया था। उन पर आरोप है कि उन्होंने ट्रस्ट को 100 बीघा जमीन बेचने का अनुबंध किया था, लेकिन मौके पर जमीन केवल 33 बीघा ही पाई गई।
25 करोड़ की धोखाधड़ी और जालसाजी के मामले में पूर्व दर्जाधारी मनीष वर्मा, उनकी पत्नी व भाई को न्यायालय ने पांच-पांच साल की सजा सुनाई है। एसीजेएम चतुर्थ अभिषेक श्रीवास्तव की कोर्ट ने दोषियों पर 20-20 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया है। तीनों को न्यायालय परिसर से हिरासत में लेकर सुद्धोवाला जेल भेज दिया गया है।
अभियोजन से मिली जानकारी के अनुसार, मुकदमा 14 मार्च 2012 को मेरठ के जानी थाने में दर्ज हुआ था। धोखाधड़ी सुभारती मेडिकल कॉलेज, मेरठ के प्रोफेसर अतुल भटनागर के साथ हुई थी। उन्होंने पुलिस को बताया था कि कॉलेज में काम करने वाले साहिल ने बताया था कि श्रीश्री 1008 नारायण स्वामी चैरिटेबल ट्रस्ट के अंतर्गत देहरादून में डेंटल कॉलेज और अस्पताल चल रहे हैं। इसके कर्ताधर्ता मनीष वर्मा हैं। उन्हें अस्पताल आदि चलाने का ज्ञान नहीं है। कर्ज भी बहुत हो गया है।
वह वहां पर 100 बीघा जमीन (बने हुए भवन व खाली जमीन) बेचना चाहते हैं। साहिल ने भटनागर को जमीनों के दस्तावेज की फोटो कॉपी उपलब्ध करा दी। साथ ही भटनागर और मनीष वर्मा की बात भी कराई। सौदा 30 करोड़ रुपये में पक्का हो गया। इसके बाद अलग-अलग दिन करीब 25 करोड़ रुपये मनीष वर्मा, उनकी पत्नी नीतू वर्मा और भाई संजीव वर्मा के खातों में जमा करा दी गई। मौके पर पैमाइश कराई गई तो पता चला कि वहां केवल 42 बीघा जमीन ही मौजूद है। बाकी के दस्तावेज फर्जी दिखाए गए।
मेरठ पुलिस ने इस एफआईआर को डालनवाला थाने को ट्रांसफर कर दिया। बाद में पता चला कि यह मामला कैंट थाना क्षेत्र का है तो इसे वहां ट्रांसफर किया गया। पुलिस ने 19 मई 2014 को तीनों आरोपियों के खिलाफ आरोपपत्र दाखिल किया। 29 सितंबर 2021 को ट्रायल शुरू हुआ। करीब एक साल से भी कम समय में न्यायालय में ट्रायल पूरा हो गया। अभियोजन की ओर से सहायक अभियोजन अधिकारी जावेद अहमद और विवेक ठाकुर ने बहस की। अभियोजन ने 10 गवाह पेश किए और 35 दस्तावेजी साक्ष्य भी प्रस्तुत किए।
निर्णय सुरक्षित रखा गया
18 अगस्त 2022 को निर्णय सुरक्षित रखा गया और सोमवार को सजा का एलान कर दिया गया। अदालत ने मुकदमे की धारा 406 (अमानत में खयानत) में सभी को दोषमुक्त कर दिया। धोखाधड़ी और जालसाजी की चार धाराओं में पांच-पांच साल कठोर कारावास और पांच-पांच हजार रुपये जुर्माना यानी तीनों पर कुल 20-20 हजार का जुर्माना लगाया गया। जुर्माना न देने पर एक-एक माह सजा अलग से भुगतनी होगी।
अदालत ने दिए थे सरेंडर करने के आदेश
मनीष वर्मा और उनके परिजन अदालत में पेश नहीं हो रहे थे। इस पर अदालत ने उन्हें पिछले साल सितंबर में सरेंडर करने के आदेश दिए थे। नहीं तो गिरफ्तार करने की चेतावनी दी गई थी। इस पर मनीष वर्मा ने कुछ दिन बाद अदालत ने सरेंडर कर दिया था।
पहले लगाई थी एफआर फिर लगी चार्जशीट
इस मामले में कैंट पुलिस ने पहले एफआर लगा दी थी, लेकिन बाद में खुद ही चार्जशीट दाखिल कर दी थी। इसी को बचाव पक्ष ने आधार भी बनाया। अदालत में दलील दी गई कि पहले एफआर और फिर चार्जशीट लगाई गई। ऐसे में यह मामला संदेह का नजर आता है। जबकि, कोर्ट ने इस मामले में कोई आदेश नहीं दिए थे, लेकिन बचाव पक्ष के इस आधार को न्यायालय ने खारिज कर दिया।