देहरादून। शासन की लेट लतीफी के कारण परिवहन विभाग के अहम मसले काफी समय से लंबित चल रहे हैं। इनमें प्रवर्तन सिपाहियों और मिनिस्टीरियल कर्मियों की सेवा नियमावली शामिल है। इससे इन दोनों ही संवर्गों में कर्मचारियों की पदोन्नति नहीं हो पा रही है.
सरकार व शासन इस समय लगातार सभी विभागों में पदोन्नति की प्रक्रिया में तेजी लाने के निर्देश दे रहा है। बावजूद इसके परिवहन विभाग के प्रस्ताव शासन से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं। परिवहन विभाग में पदोन्नति का पहला अहम मसला प्रवर्तन सिपाहियों का है। इनकी सेवा नियमावली एक साल से शासन में ही अटकी हुई है। यह पत्रावली कार्मिक व वित्त विभाग के बीच ही है। यह स्थिति तब है जब कैबिनेट एक साल पहले इस संवर्ग के ढांचे को मंजूरी दे चुकी है। इससे प्रवर्तन सिपाहियों की पदोन्नति का इंतजार तो लंबा हो ही रहा है, कई पात्र कार्मिक पदोन्नति के इंतजार में सेवानिवृत्ति के कगार पर भी आ गए हैं।इस नियमावली में कैबिनेट द्वारा स्वीकृत प्रविधान के अनुसार प्रवर्तन सिपाही से प्रवर्तन पर्यवेक्षक पद पर पहली पदोन्नति भर्ती के छह साल बाद करने और पांच साल अथवा 11 साल की सेवा पर वरिष्ठ प्रवर्तन पर्यवेक्षक पद पर पदोन्नति देने की व्यवस्था है। इसमें आरक्षण के साथ ही सेवा शर्तों की व्याख्या भी की गई लेकिन वित्तीय भार का हवाला देते हुए वित्त से इसे स्वीकृति नहीं मिल पा रही है।
वहीं दूसरा अहम मसला मिनिस्टीरियल कर्मियों का है। परिवहन विभाग में मिनिस्टीरियल संवर्ग के ढांचे का पुनर्गठन पिछले वर्ष जून में हुआ था। कैबिनेट की मंजूरी के बाद इस संबंध में शासनादेश जारी हुआ तो इसमें वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी के 14 पद दर्शाए गए, जबकि विभाग में पहले इसके 26 पद सृजित थे। यह खामी सामने आते ही परिवहन मुख्यालय ने इसमें संशोधन का अनुरोध करते हुए शासन को प्रस्ताव भेजा, जो लंबित है। शासनादेश के अनुसार विभाग में अभी भी वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी के 14 पद ही दर्शाए जा रहे हैं। नतीजतन, पदोन्नति के पात्र प्रशासनिक अधिकारी, मुख्य सहायक, वरिष्ठ सहायक आदि की पदोन्नति नहीं हो पा रही है। इस मामले में तत्कालीन परिवहन मंत्री यशपाल आर्य ने उचित कार्यवाही का आश्वासन दिया था। उनके पद छोडऩे के बाद यह मसला फिर से अटक गया है।