उत्तराखंड

चाह नहीं है अब मुझको

Admin Delhi 1
10 Sep 2022 6:42 AM GMT
चाह नहीं है अब मुझको
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चाह नहीं है अब मुझको, कहलाऊँ मैं सीता जैसी।

अब तो बस उड़ना चाहती हूं, बिल्कुल कल्पना जैसी।।

फिर क्यों बनूं मैं द्रौपदी जैसी।

कहां बचा है कोई अब कृष्ण जैसा।।

अब तो बस लड़ना चाहूं, लड़ाई मैरी कॉम जैसी।।

चाह नहीं हैं अब मुझको, उपमा मिले गाय जैसी।

अब तो मैं बन के दिखाऊं, शान से किरण बेदी जैसी।।

फिर क्यों बनूं सावित्री जैसी, कौन बचा है सत्यवान अब।

अब तो बस लिखना चाहूँ, विचार सरोजिनी नायडू जैसी।।

चाह नही है अब मुझको, जेवर से मैं लद जाऊं।

अब तो बस जीना चाहूँ, आत्मनिर्भर स्वावलंबी जिंदगी ऐसी।।

चरखा फीचर

पायल रावल

चोरसौ, गरुड़

बागेश्वर, उत्तराखंड

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