विशेषज्ञों व वन अधिकारियों ने हिंसक वन्यजीवों से संघर्ष बचाव की दी जानकारी
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हल्द्वानी: मानव वन्यजीव टकराव की घटनाओं को कम करने के लिए वानिकी प्रशिक्षण अकादमी में आयोजित कार्यशाला के दूसरे दिन विशेषज्ञों व वन अधिकारियों ने हिंसक वन्यजीवों से संघर्ष बचाव की जानकारी दी। बुधवार को एफटीआई सभागार में हुई कार्यशाला के दूसरे तितली ट्रस्ट के संजय सोंधी ने महाराष्ट्र के मॉडल की तर्ज पर लिविंग विद लेपर्ड के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि टकराव की किसी घटना पर वन्यजीव को पकड़कर अन्यत्र छोड़ने से घटनाओं में कमी नहीं होगी। इसका वैज्ञानिक निस्तारण की जरूरत है। संघर्ष को कम या खत्म करने के लिए आमजन को जागरूक होना होगा। जैसे जंगल के आसपास या वन्यजीव प्रभावित क्षेत्रों में घरों के आसपास झाड़ी काटकर साफ-सफाई बनाए। घर का बचा हुआ भोजन, मल मूत्र जंगलों में नहीं फेंके। इसकी महक से वन्यजीव आकर्षित होते हैं और आबादी की ओर रूख करते हैं।
घरों के बाहर शौच करने से परहेज करें। उन्होंने कहा कि वन विभाग को भी सतर्कता बढ़ानी होगी। वन विभाग के डिवीजन या सर्किल स्तर पर एक आधुनिक उपकरणों से युक्त रैपिड रिस्पांड टीम हो जो किसी भी घटना पर तुरंत ही कार्रवाई करे और इंसान और जानवर दोनों को बचाए। इसके लिए सूचना तंत्र का मजबूत होना जरूरी है, यह तभी संभव है जब जनसहभागिता बढ़ेगी। इसके लिए वन स्टाफ को व्यवहार में बदलाव लाना होगा।
टिहरी व पिथौरागढ़ वन डिवीजनों में मानव वन्यजीव टकराव करने वाले वन अधिकारी कोको रोज और देवेंद्र पुंडीर ने अपने अनुभव साझा किए। उन्होंने बताया कि जनसहभागिता को बढ़ाकर सूचना तंत्र मजबूत कर और वन्यजीवों को जंगलों के दायरे में सिमटाने की कोशिश की। इस तरह संघर्ष की घटनाओं में कमी आई। इस दौरान एफटीआई निदेशक डॉ. तेजस्विनी पाटिल, उप निदेशक डॉ. अभिलाषा सिंह, रेंजर अंजनी, मदन बिष्ट आदि मौजूद थे।