देहरादून न्यूज़: पहाड़ों पर कनेक्टिविटी को टनल परियोजनाओं का निर्माण सड़कों की तुलना में सस्ता पड़ता है. टनल बनाने से पर्यावरण को भी अपेक्षाकृत कम नुकसान होता है.
डीआईटी यूनिवर्सिटी में इंटरनेशनल टनल टेक्नोलॉजी वर्कशॉप की शुरुआत हुई. इसका उद्घाटन केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने वर्चुअल माध्यम से किया. वर्कशॉप में एलटी नोक के डायरेक्टर(तकनीकी) श्वेताभ सिंह ने कहा कि सड़कें बनाने पर एक बार में खर्च कम आता है. पर लंबी अवधि में देखा जाए तो सड़क के रखरखाव और हर साल होने वाले खर्च का आकलन करें तो यह टनल परियोजना से बहुत ज्यादा हो जाता है. साथ ही टनल लंबे समय चलती है जिससे पर्यावरण को भी कम नुकसान होता है. पर्यावरण की दृष्टि से पर्वतीय क्षेत्रों में टनल का निर्माण ज्यादा मुफीद है. सिंह ने बताया, विश्व में टनल निर्माण में तमाम नई तकनीकें प्रयोग हो रही हैं. न्यू ऑस्ट्रियन टनल मैथड एनीटियम का उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि इस तकनीक में टनल क्षेत्र के बराबर ही जमीन काटी जाती है. यदि हार्ड रॉक आ जाए तो केमिकल और बहुत कम विस्फोटकों का प्रयोग किया जाता है.
सरकार को सौंपी जाएगी रिपोर्ट कार्यशाला के आयोजक और इंडियन रोड कांग्रेस के महासचिव एसके निर्मल ने बताया कि दो दिन तक चलने वाली वर्कशॉप में मिलने वाली विशेषज्ञों के सुझावों की रिपोर्ट राज्य सरकार और केंद्रीय सड़क परिवहन राजमार्ग मंत्रालय को सौंपी जाएगी. उन्होंने कहा कि कार्यशाला का मकसद देश में आधुनिक तकनीक का प्रयोग सुनिश्चित कराना है. लोनिवि के अधिशासी अभियंता जितेंद्र त्रिपाठी ने बताया कि कार्यशाला में विभिन्न टनल तकनीकी से जुड़े 36 विशेषज्ञ प्रस्तुति देंगे.
केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने कहा कि देश में टनल परियोजनाओं से ऑल वेदर कनेक्टिविटी आसान हुई है. इससे कई ऐसे हिमालयी क्षेत्र आपस में जुड़ पाए हैं जो महीनों तक बर्फ की वजह से कटे रहते थे. कनेक्टिविटी बढ़ने से रोजगार के अवसर भी बढ़ रहे हैं. कार्यक्रम में केंद्रीय सड़क परिवहन राज्यमंत्री जनरल वीके सिंह ने कहा कि टनल परियोजनाओं का निर्माण पर्यावरण की दृष्टि से अच्छा है. उत्तराखंड के पीडब्ल्यूडी मंत्री सतपाल महाराज ने कहा कि राज्य में आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल कर छोटी टनल परियोजनाएं बनाई जाएं. वर्कशॉप में प्रमुख सचिव आरके सुधांशु ने भी विचार व्यक्त किए.