उत्तराखंड के इस गांव में नब्बे सालों बाद भी नहीं पहुंची बिजली, पानी, स्कूल और शौचालय
देहरादून: आज आजादी के 75 बर्षों के बाद भी उत्तराखंड में कई ऐसे गांव हैं जहां लोगों को मूलभूत सुविधाओं से वंचित रहना पड़ रहा है, ऐसी ही कहानी है हरिद्वार जिले के ज्वालापुर विधानसभा के हजारा टोंगिया गांव (Hazara Tongia Village In Haridwar) की, हरिद्वार जिला के बहादराबाद ब्लाक निवासी युवा किरणपाल, सवाल उठाते हैं। उनके पास सरकार से करने के लिए, बहुत सारे सवाल हैं। वो किसी एक राजनीतिक दल की सरकार से खफा नहीं हैं, उनके लिए तो किसी ने भी कुछ नहीं किया। चाहे वो भाजपा हो या फिर कांग्रेस की सरकारें।
लगभग छह सौ की आबादी की तकलीफों पर बात करने से पहले, हमें इसका जानना होगा। इस जगह का नाम है हजारा टोंगिया। उत्तराखंड में कई गांव ऐसे हैं, जो टोंगिया व्यवस्था का हिस्सा रहे हैं। हजारा टोंगिया को वन क्षेत्र से बाहर लाने के लिए वर्षों से संघर्ष कर रहे किरणपाल ने बताया की उनके पूर्वजों ने जंगलों की परवरिश करने में पचास साल से भी ज्यादा का वक्त गुजार दिया है, पर उन्हें क्या पता था कि उनकी पीढ़ियां इन्हीं जंगलों के बीच घिरकर वर्षों तकलीफें झेलेंगी। किरणपाल, जहां परिवार के साथ रहते हैं, वो जगह न तो ग्राम पंचायत का हिस्सा है और न ही किसी शहरी निकाय का। यहां लगभग सवा सौ परिवार हैं, पर उनके लिए अपना मुखिया चुनने की मनाही है। कुल मिलाकर, वो उस व्यवस्था से बाहर हैं, जो पंचायत राज के नाम से पूरे देश में जानी जाती है। किरणपाल ने बताया न तो, ढंग से यहाँ पानी मिल पाया और न ही, बिजली की कोई व्यवस्था है। पूरे देश में घर-घर शौचालय बन रहे, पर हम नहीं बना सकते।
क्षेत्रवासी बताते हैं, यहां आने के लिए कोई सड़क भी नहीं है। नदी पार करके पहुंचना होता है। बरसात में नदियां उफान पर होती हैं, तो आवागमन बाधित हो जाता है। बिजली के नाम पर, सौर ऊर्जा के पैनल व बैटरियां हैं। पानी के लिए यह हैंडपंप का उपयोग करते हैं, अस्वस्थ व्यक्ति को किसी परेशानी में बुग्गावाला स्थित स्वास्थ्य केंद्र तक नहीं ले जा सकते। बच्चे भी स्कूल नहीं जा पाते। बताया गया कि, यहां रहने वालों के जन्म-मृत्यु प्रमाणपत्र रेंज दफ्तर से बनते हैं। परिवार रजिस्टर भी उन्हीं के पास है। आय, निवास के प्रमाण पत्र नहीं बन पाते। सरकार की अटल आवास योजना यहां लागू नहीं हो सकती, हालांकि पेंशन और राशन योजना का लाभ इन्हें मिलता है।
किरणपाल बताते हैं की वर्ष 1932 में ब्रिटिश शासनकाल में हिमालयी क्षेत्रों में प्लांटेशन के लिए अलग-अलग क्षेत्रों से श्रमिकों को लाया गया था। इन श्रमिकों में उनके पूर्वज भी थे, जिनको इस क्षेत्र में पौधे लगाने और पेड़ बनने तक परवरिश की जिम्मेदारी दी गई थी। जंगल बनाने के लिए प्लांटेशन की व्यवस्था को टोंगिया नाम से पहचान मिली। यह जगह हजारा टोंगिया के नाम से जाना गया। यहाँ के लोग बताते हैं, अंग्रेजों ने उनके पूर्वजों को यहीं बसा दिया था। उनको प्रति परिवार लगभग 12-12 बीघा भूमि दी गई थी, जिस पर खेती करते आ रहे हैं। वर्ष 1980 तक उन लोगों ने प्लांटेशन किया। उसके बाद यह वन क्षेत्र राजाजी राष्ट्रीय पार्क के अधीन आ गया। उनका कहना है कि वर्तमान में धौलखंड रेंज में आने वाला हजारा टोंगिया क्षेत्र टाइगर रिजर्व का हिस्सा है। यहां मानवीय गतिविधियों की मनाही है, प्रतिबंधों के चलते यह लोग अपने घरों की मरम्मत भी नहीं करा सकते। उन्हें नहीं लगता, कुछ माह बाद तक उनका घर रहने लायक रहेगा भी या नहीं।
इन सभी लोगों का कहना है हम सभी पुनर्वास चाहते हैं, हमें यहां रिजर्व एरिया में नहीं रहना। यहां हमारे लिए किसी भी सरकारी योजना का लाभ नहीं है। यहां के लोग लोकसभा, विधानसभा के वोटर तो हैं, पर किसी ग्राम पंचायत का हिस्सा नहीं हैं। हरिद्वार जिला के हजारा टोंगिया में परिवारों को बच्चों की चिंता है, वो कहते हैं हम तो बिना सुविधाएं जिंदगी बिता रहे हैं, पर बच्चों का भविष्य क्या होगा। अपने बच्चों के भविष्य के लिए इन लोगों ने अब प्रधानमंत्री से गुहार लगाई है।