उत्तराखंड

जोखिम घटाने के लिए तैयार होगा ड्राफ्ट, 2700 हेक्टेयर जंगल

Admin4
18 Aug 2022 10:23 AM GMT
जोखिम घटाने के लिए तैयार होगा ड्राफ्ट, 2700 हेक्टेयर जंगल
x

न्यूज़क्रेडिट: अमरउजाला

इस साल 2186 वनाग्नि की घटनाएं हुईं। इनमें दो लोगों की मौत हुई, जबकि सात लोग घायल हुए। बीते छह सालों में वनाग्नि की घटनाओं में सात लोगों की मौत हुई, जबकि 33 लोग घायल हुए।

उत्तराखंड में बीते छह सालों में 19 हजार 594 वनाग्नि की घटनाओं में 16 हजार 231 हेक्टेयर जंगल जल गया। इस तरह से हर साल 2700 हेक्टर जंगल खाक हो रहा है, जो एक बड़ी त्रासदी का संकेत है। उत्तराखंड में 2021 में पिछले 12 वर्षों में सर्वाधिक 2813 वनाग्नि की घटनाएं दर्ज की गईं थीं। 2022 में इनमें कमी आई है। इस साल 2186 वनाग्नि की घटनाएं हुईं। इनमें दो लोगों की मौत हुई, जबकि सात लोग घायल हुए। बीते छह सालों में वनाग्नि की घटनाओं में सात लोगों की मौत हुई, जबकि 33 लोग घायल हुए। वहीं 35 करोड़ 97 लाख तीन हजार 644 रुपये के नुकसान का आकलन किया गया। मुख्य वन संरक्षक निशांत वर्मा ने बताया कि जिन वर्षों में बारिश कम हुई, उन वर्षों में आग की घटनाएं भी बढ़ी हैं।

छह वर्षों में वनाग्नि की घटनाएं

वष घटनाएं नुकसान (हे.)

2017 805 1244.64

2018 2150 4480.04

2019 2158 2981.55

2020 135 172.69

2021 2780 3947.13

2022 2186 3425.05

जंगलों में आग का जोखिम घटाने के लिए तैयार होगा ड्राफ्ट

जलवायु परिवर्तन के चलते दुनियाभर में जंगलों की आग के आंकड़े लगातार बढ़ रहे हैं। आग के प्रभावों का अध्ययन करने और आग की अधिक घटनाओं के जोखिम को कम करने के तरीके खोजने की आवश्यकता है। हिमालयी क्षेत्र में अधिकतर मामलों में मनुष्य ही इस आग का कारक बनते हैं तो समाधान भी स्थानीय समुदायों के साथ मिलकर निकाला जा सकता है। ये बातें सेंटर फॉर इकोलॉजी डेवलपमेंट एंड रिसर्च की ओर से आयोजित कार्यशाला में निकलकर सामने आईं।

वन विभाग के मुख्यालय में बुधवार को पश्चिमी हिमालय में जंगल की आग के कारणों और परिणामों पर विशेषज्ञों ने लंबी चर्चा की। इस कार्यशाला में निकले सुझावों का 'जंगल की आग पर उत्तराखंड घोषणा' का ड्राफ्ट तैयार कर सरकार को सौंपा जाएगा। ताकि वनाग्नि को नियंत्रित करने में मदद मिल सके। सीडर के कार्यकारी निदेशक डॉ. राजेश थडानी ने परियोजना की पृष्ठभूमि के बारे में अवगत कराया। कार्यशाला के संयोजक डॉ. विशाल सिंह ने कहा कि समुदायों को शामिल करके, पारंपरिक ज्ञान का लाभ उठाकर और सार्थक सहयोग से वनाग्नि की घटनाओं का कम किया जा सकता है। कार्यशाला का संचालन एसडीसी फाउंडेशन के अध्यक्ष अनूप नौटियाल ने किया।

इन्होंने दिए व्याख्यान

यूएसएआईडी, भारत का प्रतिनिधित्व करने वाले सौमित्री दास, हिमाचल प्रदेश के संरक्षणवादी और शोधकर्ता डॉ. राजन कोटरू, पद्मश्री अनूप शाह, वन नीति विशेषज्ञ विनोद पांडे, इसरो के तहत भारत में प्राइमर अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के वैज्ञानिक डॉ. अरिजीत रॉय, चिपको आंदोलन का हिस्सा रहे विजय जरदारी, महिपाल सिंह रावत, डीपी थपलियाल, पूरन बर्थवाल, गौरी शंकर राणा ने भी व्याख्यान दिए। सत्रों की अध्यक्षता एसटीएस लेप्चा, डॉ. मालविका चौहान और प्रो. एसपी सती ने की।

जंगल की आग के बारे में बुनियादी समझ की भी कमी है। पाइन एक स्वदेशी वृक्ष प्रजाति है, जो कई पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएं प्रदान करता है। इसे आग लगने के लिए जिम्मेदार ठहराना ठीक नहीं है।

-प्रो. एसपी सिंह, प्रसिद्ध हिमालयी वन पारिस्थितिकीविद्

संसाधनों पर अत्यधिक दबाव और जलवायु परिवर्तन के कारण लंबे समय तक शुष्क रहने से भविष्य में जंगल में आग लगना स्वाभाविक है। इसे आपदाओं के व्यापक संदर्भ में समझने की जरूरत है।

- प्रो. शेखर पाठक, इतिहासकार

Admin4

Admin4

    Next Story