इन दिनों लंपी बीमारी को लेकर पूरे देश में कहर मचा रखा है। इस विषाणुजनित बीमारी का संक्रमण दर काफी तेज है। इस वायरस के बारे में कहा जा रहा है कि इस बीमारी का आगमन विदेश से भारत में हुआ है। वर्ष 2019 में उड़ीसा में पहली बार इस बीमारी का प्रकोप हुआ था। उसके बाद इस वायरस ने पिछले कुछ वर्षों में भारत के लगभग सभी राज्यों को चपेट में ले लिया है, जिसमें ताजा मामले उत्तराखंड, राजस्थान, गुजरात, पंजाब और हरियाणा सहित 10 राज्यों में सामने आये हैं, जिनमें गायों में अधिक मृत्यु दर देखी गई है, जो कि किसान और पशुपालकों के लिए बेहद चिंता का विषय है।
बहरहाल इस बीच अच्छी खबर यह है कि इस बीमारी में आईवीआरआई मुक्तेश्वर द्वारा निर्मित गोट पॉक्स (बकरी चेचक) वैक्सीन काफी कारगर साबित हो रही है। भारत सरकार के पशुपालन और डेयरी विभाग ने लम्पी स्किन बीमारी से बचाव के लिए सभी राज्यों को एडवाइजरी भी जारी की है, जिसमें इस रोग के आपातकालीन रोकथाम के लिए आईवीआरआई मुक्तेश्वर द्वारा निर्मित गोट पॉक्स (बकरी चेचक) वैक्सीन का प्रयोग सभी प्रभावित राज्यों में किया जा रहा है।
वैज्ञानिक डॉ अमित कुमार और डॉ करम नेगी का कहना है कि गोट पॉक्स (बकरी चेचक) वायरस लम्पी स्किन वायरस से काफी मिलता जुलता है और इसकी वैक्सीन सुरक्षित और प्रभावी है। बताया कि इसी तरीके से मनुष्यों की स्माल पॉक्स (चेचक) बीमारी का उन्मूलन मिलते-जुलते टीके वैक्सिनिया से किया गया था।
यह बीमारी संक्रमित पशुओं के संपर्क में आने तथा काटने वाले मक्खी मच्छरों और किल्नियों से फैलती है। इस रोग से 50% तक पशु प्रभावित हो सकते हैं तथा मृत्यु दर सामान्यतया 10% तक होती है। यह बीमारी मनुष्यों में नहीं फैलती है और प्रभावित पशु का दूध उबालने के बाद पूर्णतया सुरक्षित है। आपको बता दें इससे पूर्व आईवीआरआई मुक्तेश्वर में हिसार के वैज्ञानिकों के साथ मिलकर सजातीय लम्पी स्किन विषाणु आधारित स्वदेशी टीके लम्पी प्रोवैक का भी सफल परीक्षण भी किया गया है।
संस्थान के संयुक्त निदेशक डॉ ए के मोहंती के निर्देशन में संस्थान के वैज्ञानिक डॉ अमित कुमार, डॉ सिद्दार्थ गौतम, डॉ करम चंद और डॉ अमोल गुरव लंपी स्किन वायरस पर शोध कार्य में जुटे हुए हैं और इन वैज्ञानिकों का कहना है कि जल्द ही इस बीमारी का रामबाण टीका विकसित कर लिया जाएगा जो बेहद प्रभावी होगा।
इन सावधानियों से काफी हद तक किया जा सकता है बचाव
आईवीआरआई मुक्तेश्वर के वैज्ञानिकों का कहना है कि यह अत्यधिक संक्रामक रोग है और टीकाकरण ही एकमात्र बचाव का उपाय है। पशुओं को मक्खियों और मच्छरों से बचाने के लिए गौशाला में जाली या मच्छरदानी का प्रयोग करना चाहिए किलनियों से बचाने के लिए पशुओं पर परजीवीनाशकों का प्रयोग करना चाहिए। पशुओं के बाड़े में फिनायल या चूने का छिडकाव करें, मेला, मंडी और प्रदर्शनियों में पशु को न ले जाएं, अगर आस-पास किसी पशु में लम्पी स्किन बीमारी के लक्षण दिखते हैं तो तुरंत इसकी सूचना नजदीकी पशु-चिकित्सक को दें। रोग होने की स्थिति में संक्रमित पशु को एक जगह बांधकर रखें और उसे स्वस्थ पशुओं के संपर्क में न आने दें। बुखार एवं दर्द की दवा, एंटीबायोटिक और एंटीसेप्टिक मरहम या लोशन द्वारा लक्षण अनुसार उपचार करें तथा पशु को तरल व मुलायम आहार दें।
क्या है लंपी स्किन बीमारी के लक्षण
पशुओं को तेज बुखार आना, पशुओं के पूरे शरीर पर गांठे और फोड़े, लसीका ग्रंथियों में सूजन, पशुओं के पैरों में सूजन आना, नाक और आंखों से पानी बहना, भूख में कमी, दूध उत्पादन में कमी आदि शामिल हैं. इस वायरस के संक्रमण की वजह से मवेशियों में शारीरिक अक्षमता, बांझपन, गर्भपात आदि समस्याएं हो सकती हैं।
न्यूज़क्रेडिट: amritvichar