उत्तराखंड

उत्तराखंड में आपदा! जलवायु परिवर्तन के कारण 10 सालों में डेढ़ से तीन गुना रफ्तार से पिघले ग्लेशियर

Renuka Sahu
13 March 2022 4:36 AM GMT
उत्तराखंड में आपदा! जलवायु परिवर्तन के कारण 10 सालों में डेढ़ से तीन गुना रफ्तार से पिघले ग्लेशियर
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फाइल फोटो 

हिमालय पर जितना हिमपात हो रहा है, उससे कहीं अधिक बर्फ पिघल रही है।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। हिमालय पर जितना हिमपात हो रहा है, उससे कहीं अधिक बर्फ पिघल रही है। जलवायु परिवर्तन के कारण ग्लेशियरों के पिघलने की रफ्तार दस वर्षों में डेढ़ से तीन गुना तक जा पहुंची है। वैज्ञानिक पिछले सौ साल के आंकड़ों का विश्लेषण कर इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि ग्लेशियर के पिघलने की यही रफ्तार रही तो कुछ ही वर्षों में कई ग्लेशियर पूरी तरह खत्म हो जाएंगे।

देहरादून स्थित वाडिया संस्थान के वैज्ञानिकों ने लद्दाख में ग्लेशियरों में आ रहे बदलावों के ये साक्ष्य जुटाए हैं। उनका शोध रीजनल इनवायरमेंटल चेंज पत्रिका में प्रकाशित हुआ है। शोध बताता है कि हिमालय के सभी ग्लेशियरों में बर्फ पड़ने और पिघलने का संतुलन निगेटिव पाया गया।
मतलब, सर्दियों में हिमालय में बर्फ कम गिर रही है और गर्मियों में पिघलने की दर ज्यादा है। शोध के अनुसार, वर्ष 2009 में ग्लेशियरों के पिघलने की रफ्तार 15 मीटर प्रति वर्ष तक थी, इसके बाद यह बढ़कर 21 से 51 मीटर प्रतिवर्ष तक जा पहुंची है। इससे चार दशक में कुछ ग्लेशियरों ने चौथाई हिस्सा खो दिया।
कई नुकसान संभव
-ग्लेशियर पिघलने से बन रही झीलें, इनके फटने से बाढ़ तबाही मचाएगी
-जल विद्युत परियोजनाओं को नुकसान होगा और दीर्घकाल में उत्पादन घटेगा
-जलस्रोत रिचार्ज न होने से संकट बढे़गा, फसलों के उत्पादन पर असर
-पर्यावरण संतुलन बिगड़ने से नुकसान
भारत, चीन, नेपाल, भूटान जैसे देशों के करोड़ों लोग सिंचाई, पीने के पानी,बिजली के लिए ग्लेशियरों पर निर्भर हैं। ये पिघले तो क्षेत्र का जल-तंत्र व आबादी प्रभावित होगी।
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