देहरादून: दून अस्पताल के शौचालय में नवजात बच्ची का शव देखकर हर किसी का दिल दहल गया। हर किसी के मन में यही सवाल था कि आखिर कोई अपनी छोटी सी जान के साथ ऐसा कैसे कर सकता है. समाज में जहां ऐसे अमानवीय लोग हैं वहीं एक ऐसा वर्ग भी है जो संतान सुख के लिए तरसता है।
हम बात कर रहे हैं उन शादीशुदा जोड़ों की जो प्राकृतिक रूप से माता-पिता नहीं बन सकते और बच्चा गोद लेने के लिए सालों से कतार में लगे हैं। देहरादून के शिशु निकेतन से कई अनाथ और बेसहारा बच्चों को गोद लिया गया है। 2016 से अब तक ऑनलाइन प्रक्रिया के माध्यम से कुल 91 बच्चों को गोद लिया गया है।
इन बच्चों को CARA (सेंट्रल एडॉप्शन रिसोर्स अथॉरिटी) की वेबसाइट के जरिए गोद लिया जाता है। इन बच्चों को गोद लेने के लिए आवेदकों को वर्षों तक इंतजार करना पड़ता है। एक ओर, परिवार द्वारा बच्चों को अनाथ छोड़ दिया जाता है, दूसरी ओर, कई जोड़े एक-एक बच्चे को गोद लेने के लिए आवेदन करते हैं। ये निःसंतान दंपत्ति बच्चे को लिंग के आधार पर नहीं बल्कि सिर्फ स्नेह और प्यार के आधार पर मानते हैं.
CARA वेबसाइट पर पंजीकृत: विभिन्न स्थानों पर पाए जाने वाले बच्चों को बाल विकास समिति में लाया जाता है। इसके बाद इन बच्चों को शिशु निकेतन भेज दिया जाता है. यहां सभी बच्चों का अच्छे से पालन-पोषण किया जाता है और उनकी शिक्षा तथा अन्य जरूरतों का ख्याल रखा जाता है। अगर बच्चों के परिजन नहीं मिलते तो दो माह बाद उनका पंजीकरण सीएआरए की वेबसाइट पर कर दिया जाता है। जहां बच्चे की फोटो और अन्य जानकारी भी अपलोड की जाती है.
गोद लेने की प्रक्रिया - गोद लेने के इच्छुक जोड़ों को CARA वेबसाइट पर जाना होगा और फॉर्म भरकर अपना पंजीकरण कराना होगा। इसके बाद उन्हें 30 दिनों के भीतर मानदंडों के अनुसार आवश्यक दस्तावेज अपलोड करने होंगे और आगे की निर्धारित प्रक्रिया पूरी करनी होगी। इस संबंध में उन्हें विस्तृत जानकारी CARA की आधिकारिक वेबसाइट पर मिल जाएगी.
जिला प्रोबेशन अधिकारी मीना बिष्ट का कहना है कि शिशु निकेतन में फिलहाल 11 बच्चे हैं। जो क्षेत्र के सरकारी एवं निजी विद्यालयों में पढ़ाई जाती है। 2016 में प्रक्रिया ऑनलाइन होने के बाद से यहां से कुल 91 बच्चों को गोद लिया गया है। ये बच्चे न सिर्फ भारत में बल्कि विदेश में रहने वाले कपल्स की जिंदगी में भी खुशियां फैला रहे हैं।