उत्तराखंड

इतिहासकार अजय सिंह रावत की किताब के कुछ अंशों को लेकर विवाद गहराया

Ritisha Jaiswal
6 Aug 2022 1:52 PM GMT
इतिहासकार अजय सिंह रावत की किताब के कुछ अंशों को लेकर विवाद गहराया
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थारू और बुक्सा जनजाति के इतिहास को लेकर विवाद खड़ा हो गया है. इतिहास की एक किताब से विवाद बढ़ रहा है,

थारू और बुक्सा जनजाति के इतिहास को लेकर विवाद खड़ा हो गया है. इतिहास की एक किताब से विवाद बढ़ रहा है, जिसे लिखा है कुमाऊं यूनिवर्सिटी के पूर्व प्रोफेसर और मशहूर इतिहासकार प्रो. अजय सिंह रावत ने. रावत की किताब का नाम 'उत्तराखंड का समग्र राजनीतिक इतिहास' है. इस किताब के एक पन्ने पर तराई के आदिवासी थारू नाम से एक शीर्षक है, जिसमें उन्होंने इतिहासकार एचआर नेविल के कथन का जिक्र किया है. रावत के इन शब्दों पर इन जनजातियों के प्रतिनिधियों ने आपत्ति दर्ज करवाते हुए एफआईआर तक करवा दी है. उनका आरोप है कि तथ्य तोड़ मरोड़कर पेश किए गए हैं.

रावत की किताब में लिखा है कि तराई अंचल में प्रचलित धारणा के अनुसार तेरहवीं-चौदहवीं सदी में राजस्थान में आक्रमणकारियों ने धावे बोले. उनके सामने राजपूतों की हार हुई. रानियों ने आतताईयों के चंगुल में फंस जाने के बजाय अपने विश्वस्त सेवकों के साथ वहां से भाग जाने में ही भला देखा. तराई के सघन वनों में उन्हें शरण मिल गई. अपने अनुचरों से पैदा उनकी संतान ही ये आदिवासी हैं. रावत ने इतिहासकार नेविल को कोट करते हुए लिखा है कि 'रानियों के साथ भागकर आए चमार सेवकों की संतान थारू हैं और लुहारों को संतान बुक्सा.'
क्या है इन जनजातियों का दावा?
रावत ने नेविल की जिस बात का जिक्र किताब में किया है, विवाद इन्हीं पंक्तियों से जुड़ा है क्योंकि थारुओं में मान्यता है कि वो राजस्थान के सिसौदिया राजपूतों के वंशज हैं और जयमल सिंह, फतेह सिंह और तारण सिंह उनके पूर्वज थे. जबकि तराई के गदरपुर, बाजपुर, काशीपुर और रामनगर में रहने वाले बुक्सा जनजाति के लोग मानते हैं कि वो राजस्थान के किसी राजपूत राजा के वंशज हैं.
थारू समाज से जुड़े श्याम सिंह के मुताबिक रावत ने समाज की भावनाओं को ठेस पहुंचाई है और इन जातियों के इतिहास को तोड़.मरोड़कर पेश किया है. इन आरापेां के साथ थारू परिषद के अध्यक्ष दान सिंह राणा ने रावत के खिलाफ एससी-एसटी एक्ट के तहत खटीमा थाने में मुकदमा दर्ज कराया है.
यूनिवर्सिटी ने किया किनारा, रावत ने दी सफाई
गौरतलब है कि विवादित अंश वाली यही किताब साल 2011 से पहले उत्तराखंड ओपन यूनिवर्सिटी में इतिहास के सिलेबस का हिस्सा हुआ करती थी. इसकी जगह यूनिवर्सिटी पिछले 11 सालों से नया सिलेबस पढ़ा रही है. उत्तराखंड ओपन यूनिवर्सिटी में स्कूल ऑफ सोशल साइन्स के डायरेक्टर प्रोफेसर गिरिजा प्रसाद पांडे के मुताबिक रावत की लिखी न तो कोई किताब यूनिवर्सिटी के सिलेबस में शामिल है और न ही रावत यूनिवर्सिटी की सिलेबस कमेटी में हैं.
रावत ने भी पूरे मामले में सफाई दी है. न्यूज18 से बात करते हुए उनहोंने कहा कि उनका मकसद किसी की भावना को ठेस पहुंचाना नहीं क्योंकि आप जब इतिहास लिखते हैं तो पुराने इतिहासकारों की किताबों का अध्ययन करते ही हैं. "मैंने नेविल का ही, जिक्र किया है, इसमें मेरी टिप्पणी शामिल नहीं है." इसके बावजूद रावत ने कहा 'मैंने अपनी किताब से विवादित अंश हटा दिए हैं, जिससे किसी की भावना को ठेस न पहुंचे.' एफआईआर पर रावत ने कहा कि यह जानकारी उन्हें मीडिया से मिली ओर इसके पहले ही वह विवादित अंश हटा चुके.


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