इस वर्ष सावन माह की शुरुआत चार जुलाई से हो रही है। खास बात यह है कि इस बार सावन पूरे 59 दिन के हैं। मान्यता है कि पूरे सावन मास में भगवान शिव देवभूमि के शिव मंदिर में विराजमान होते हैं और यहीं से संसार चलाते हैं।
जी हां, हम बात कर रहे हैं हरिद्वार स्थित भगवान शिव की ससुराल कही जाने वाली राजा दक्ष की नगरी कनखल की। यहां दक्षेश्वर महादेव मंदिर में पूरे सावन देशभर से भक्त जलाभिषेक के लिए पहुंचते हैं।
भगवान शिव को जल अत्यंत प्रिय
मान्यता है कि इस दौरान भगवान विष्णु के शयन में जाने के कारण तीनों लोकों की देखभाल भगवान शिव यहीं रहकर करते हैं। यह भी मान्यता है कि भगवान शिव को जल अत्यंत प्रिय है। सावन में दक्षेश्वर महादेव मंदिर में शिव जलाभिषेक करने से भक्त को उनकी कृपा दृष्टि प्राप्त होती है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार राजा दक्ष प्रजापति माता सती के पिता थे। सती भगवान शिव की प्रथम पत्नी थीं। राजा दक्ष ने कनखल में ही भव्य यज्ञ का आयोजन किया था। जिसमें सभी देवी देवताओं, ऋषियों ओर संतों को आमंत्रित किया था, लेकिन भगवान शिव को नहीं बुलाया गया। इस घटना से आहत सती ने अपमानित महसूस कर यहीं यज्ञ की अग्नि में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए थे।
जब गंगा तट पर भक्तों की परीक्षा लेने बैठे शिव पार्वती
वहीं शिवपुराण में उल्लेख है कि भगवान शिव और पार्वती हरिद्वार में गंगा के तट पर भक्तों की परीक्षा लेने के मकसद से बैठे थे। मां पार्वती सुंदर स्त्री के रूप में तो भोले ने कोढ़ी का रूप धारण किया। मां पार्वती की सुंदरता देख लोगों ने पूछा कि आप इस कोढ़ी के साथ क्यों हैं? तब उन्होंने बताया कि वह ऐसे व्यक्ति की तलाश कर रही हैं, जिसमें एक हजार अश्वमेध यज्ञ करने की शक्ति हो। वह यदि मेरे पति को छू देंगे, तो इनकी बीमारी ठीक हो जाएगी।
तभी शिव वेषधारी एक ब्राह्मण ने यह बात सुनी और उसने तुरंत ही कोढ़ी के रूप में पार्वती के साथ विराजमान भगवान शिव को स्पर्श किया। इससे उनका कोढ़ ठीक हो गया। तब पार्वती ने उनसे पूछा कि आपने इतने अश्वमेध यज्ञ कैसे किए? इस पर ब्राह्मण ने बताया कि वह कई वर्षों से सावन मास में हरिद्वार स्थित गंगा के तट से गंगाजल लेकर शिवरात्रि पर शिव का जलाभिषेक करते आ रहे हैं।
मान्यता है कि सावन में हरिद्वार के गंगा जल से शिव जलाभिषेक करने से 1000 अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है। इसलिए मैं कई वर्षों से हरिद्वार आ रहा हूं। इसीलिए मैंने आपके पति को स्पर्श किया और उनका कोढ़ ठीक हो गया। ब्राह्मण की बात सुन शिव और पार्वती ने उन्हें दर्शन और आशीर्वाद दिया। मान्यता यह भी है कि तभी से सावन मास में हरिद्वार से गंगाजल लेकर बाबा का जलाभिषेक करने को कांवड़ यात्रा की शुरुआत हुई।