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इलाहाबाद न्यूज़: सृजन में अनुवाद शैली का विशिष्ट महत्व रहा है. अनुवाद के माध्यम से जहां भाषाई दूरियों की खांई पटती है, वहीं नवीन जानकारी से पाठक अवगत होते हैं. अनुवाद से कृति वैश्विक फलक पर अपनी जगह बनाती है. लेखक को पहचान मिलती है और सृजन के मार्ग प्रशस्त होते हैं. इसी भाव व्यंजना के साथ साउथ मलाका आजाद नगर के बांग्ला साहित्यकार अरुण कुमार राय ने डॉ. हरिवंश राय बच्चन की कालजयी कृति मधुशाला का बांग्ला भाषा में अनुवाद किया है. इस पुस्तक का नाम भी ‘मधुशाला’ है.
राय ने तीन साल में मधुशाला की सभी रुबाइयों को बांग्ला में अनुवाद किया. रुबाइयों को हिंदी की तरह बांग्ला में गुनगुनाया जा सकता है. अनुवाद के दौरान राय ने निपुणता के साथ मधुशाला के राग-लय के भाव को मूल रूप में रखने का प्रयास किया है. राय का कहना है कि ‘मधुशाला’ की सभी रुबाइयों का बांग्ला में अनुवाद पहली बार किया गया है. पुस्तक का विमोचन 23 जुलाई को साहित्यकारों द्वारा कोलकाता प्रेस क्लब में किया जाएगा. पुस्तक की भूमिका अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की बांग्ला भाषा विभाग की अध्यक्ष अमीना खातून ने लिखी है.
मधुशाला की रुबाई 121 का अनुवाद इस तरह है. सेई हाला, जा शान्तो कोरते पारे, आमार अन्तोरेर ज्वाला. जाहार मोध्ये बिंबितो-प्रोतिबिंबितो, प्रोतिपल, ताहा आमार पेयाला. मोधूशाला नय ताहा जेखाने मोदिरा बिक्री हय, पाई जेखाने उपोहार शुधुई आनोन्देर ताहाई आमार मोधूशाला. रुबाई का मूल रूप हिंदी में इस तरह है. वह हाला, कर शांत सके जो मेरे अंतर की ज्वाला, जिसमे मैं बिंबित-प्रतिबिंबित प्रतिपल, वह मेरा प्याला. मधुशाला वह नही, जहां पर मदिरा बेची जाती है, भेंट जहां मस्ती की मिलती मेरी तो वह मधुशाला.
पुस्तक के बारे में साहित्यकार मुकुल मतवाला का कहना है कि अनुवाद से बांग्ला समाज के लोग पढ़कर आनंदित होंगे. रवींद्र भारती विवि के पूर्व कुलपति चिन्मय गुहा ने कहा कि ‘मधुशाला’ कृति से बांग्ला भाषी भी रूबरू होंगे. इससे बांग्ला साहित्य और समृद्ध होगा. डॉ. हरिवंश राय बच्चन की मधुशाला 1935 में प्रकाशित हुई थी. अरुण कुमार राय की बांग्ला में दो पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं. अरुण रिलायंस इंडस्ट्रीज बड़ौदा में वरिष्ठ लेखा प्रबंधक पद से सेवानिवृत हैं.