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योगी सरकार 17 ओबीसी जातियों को एससी की सूची में शामिल करने के लिए फिर कराएगी सर्वे
लखनऊ: उत्तर प्रदेश की 17 ओबीसी जातियों को एससी की सूची में शामिल करने की सियासी मुहिम ने एक नया मोड़ ले लिया है। अब इस बारे में एक बार फिर राज्य सरकार सर्वे करवाएगी। सर्वे के आंकड़ों का विधिवत विश्लेषण कर ठोस आधार तैयार करके ही प्रस्ताव तैयार होगा और फिर उसे संसद की मंजूरी के लिए भेजा जाएगा। यह जानकारी समाज कल्याण विभाग के उच्च पदस्थ सूत्रों ने दी है। इन सूत्रों के अनुसार पिछले दिनों मुख्यमंत्री के निर्देश पर प्रदेश के मत्स्य विकास मंत्री डा. संजय निषाद समाज कल्याण राज्य मंत्री स्वतंत्र प्रभार असीम अरुण से मिले थे और इस बाबत प्रस्ताव का ड्राफ्ट तैयार किये जाने पर चर्चा की थी।
डा. निषाद ने तो बाकायदा प्रेस कान्फ्रेंस बुलाकर यहां तक कह दिया था कि उनकी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से बात हुई है और सम्भावना है कि विधान मण्डल के मानसून सत्र में इस बारे में प्रस्ताव पारित करवाकर केन्द्र को भेजा जाएगा। मगर 'हिन्दुस्तान' की पड़ताल में यह तथ्य सामने आया कि मौजूदा सत्र में इस बारे में सरकार शायद ही कोई प्रस्ताव लाए। भाजपा संगठन और सरकार दोनों ही इस मुद्दे पर फूंक फूंक कर कदम उठा रहे हैं। यह जातियां हैं-निषाद, केवट, मल्लाह, बिंद, कहार, कश्यप, धीमर, रैकवार, तुरैहा, बाथम, भर, राजभर, धीवर, प्रजापति, कुम्हार, मांझाी और मछुआ। इन जातियों को अनुसूचित जाति की सूची में शामिल करने के लिए प्रदेश सरकार बहुत ठोस संवैधानिक तथ्य जुटा रही है ताकि इस बार इस प्रस्ताव को अदालत में भी चुनौती न दी जा सके। दरअसल, संविधान का का अनुच्छेद-341 साफ तौर पर कहता है कि अनुसूचित जातियां आदेश 1950 और यथा संशोधित 1976 के तहत जारी हो चुकी अधिसूचना में कोई भी नाम जोड़ना या घटाना ही नहीं उसकी किसी भी तरह की व्याख्या भी सिर्फ संसद ही कर सकती है।
इस अनुच्छेद के अनुसार अधिसूचना राष्ट्रपति जारी करते हैं। इसके बाद एक बार जारी हो जाने पर इसमें किसी तरह का बदलाव या स्पष्टीकरण का अधिकार राष्ट्रपति के पास भी नहीं है।