उत्तर प्रदेश

क्या अब नहीं बढ़ेंगी बिजली दरें, आठ महीने चली रार के बाद ठंडी पड़ी आयातित कोयले की गर्मी

Admin4
21 Aug 2022 7:13 AM GMT
क्या अब नहीं बढ़ेंगी बिजली दरें, आठ महीने चली रार के बाद ठंडी पड़ी आयातित कोयले की गर्मी
x

न्यूज़क्रेडिट: अमरउजाला

Coal Crisis In India: केंद्र सरकार चाहती थी कि राज्य 10 फीसदी कोयला आयात करें। इसी को लेकर कभी हां तो कभी ना में उलझी रही सरकार ने आखिरकार राहत की सांस ली है। बिजली दरें बढ़ने की आशंका टल गई है।

आयातित कोयले की खरीद को लेकर करीब आठ महीने तक केंद्र और राज्यों के बीच रार छिड़ी रही। इस दौरान केंद्र ने आयातित कोयला खरीदने के लिए राज्यों पर हर तरह का दबाव बनाने में कोई कसर बाकी नहीं रखी। प्रदेश में तो आयातित कोयले की खरीद का मामला लगातार गर्माया रहा। इससे बिजली दरों के बढ़ने की आशंका को देखते हुए राज्य सरकार ने पहले तो साफ इनकार कर दिया, लेकिन जब दबाव ज्यादा बढ़ा तो दो महीने के लिए आयातित कोयला खरीदने को मंजूरी दे दी गई। मामले के ज्यादा तूल पकड़ने पर केंद्रीय विद्युत मंत्रालय ने कदम पीछे खींचते हुए आयातित कोयले की खरीद का मामला राज्य सरकारों पर छोड़ दिया। इसके बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने हाल ही में केंद्र सरकार को पत्र भेजकर आयातित कोयला खरीदने के लिए दी गई सहमति वापस ले ली। आठ महीने बाद अब जाकर आयातित कोयले की गर्मी ठंडी पड़ी।

अप्रैल के बाद तकरार तेज हुई

दरअसल, घरेलू कोयले की कमी का हवाला देते हुए 7 दिसंबर 2021 को केंद्रीय विद्युत मंत्रालय ने राज्यों को 10 प्रतिशत कोयला आयात करने की सलाह दी थी। राज्यों की ओर से इसके लिए कोई पहल न होने पर 28 अप्रैल 2022 को विद्युत मंत्रालय ने राज्यों को कोयला आयात के लिए समयबद्ध निर्देश भेजते हुए इसकी प्रक्रिया तुरंत शुरू करने को कहा। यही नहीं, कोयला आयात न करने पर घरेलू कोयले के आवंटन में कटौती की चेतावनी भी दे दी गई। इसी के बाद आयातित कोयले को लेकर केंद्र और राज्यों के बीच तकरार तेज हुई जो हाल ही में विद्युत मंत्रालय के कदम पीछे खींचने के बाद खत्म हुई। इसमें बड़ी भूमिका उपभोक्ता और बिजली अभियंता और कर्मचारी संगठनों की भी रही, जो देश में घरेलू कोयले की पर्याप्त उपलब्धता का दावा करते हुए आंकड़ों के जरिये विरोध में आवाज उठाते रहे। विरोध इसे लेकर था कि जब देश में 3000 रुपये प्रति टन की कीमत वाला घरेलू कोयला पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है तो 20,000 रुपये टन की कीमत वाला आयातित कोयला खरीदने का क्या औचित्य है? इसका बोझ दरों में वृद्धि के रूप में आम उपभोक्ताओं पर पड़ेगा।

टेंडर से पहले नियामक आयोग का दखल

केंद्रीय विद्युत मंत्रालय ने राज्यों को 19 अप्रैल से आयातित कोयले की खरीद के लिए टेंडर की प्रक्रिया शुरू करने का फरमान भेजा था। इससे पहले राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद ने राज्य विद्युत नियामक आयोग में याचिका दायर कर दी। आयोग ने विद्युत उत्पादन निगम से जवाब-तलब कर दिया तो टेंडर की प्रक्रिया में पेंच फंस गया। केंद्र के निर्देश पर विद्युत उत्पादन निगम 22.5 लाख टन आयातित कोयला खरीदने के लिए टेंडर की प्रक्रिया में जुटा था। नियामक आयोग ने उपभोक्ता परिषद की याचिका और समाचार पत्रों में प्रकाशित खबरों का संज्ञान लेते हुए विद्युत उत्पादन निगम को नोटिस जारी कर कई बिंदुओं पर जवाब-तलब कर लिया। यही नहीं, आयोग ने स्पष्ट चेतावनी भी दे दी कि आयातित कोयले की खरीद पर आने वाले अतिरिक्त खर्च को उत्पादन निगम के वार्षिक राजस्व आवश्यकता (एआरआर) प्रस्ताव का हिस्सा नहीं मानेगा।

निजी बिजली उत्पादकों का दबाव

आयातित कोयले की खरीद की एक बड़ी वजह निजी उत्पादकों की ओर से दबाव बनाया जाना भी रहा। दरअसल, निजी क्षेत्र की 18,310 मेगावाट क्षमता की 13 ऐसी इकाइयां हैं, जो आयातित कोयले पर आधारित हैं। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कोयले का दाम बढ़ते ही निजी उत्पादकों को इन इकाइयों को बंद करके विद्युत क्रय अनुबंध (पीपीए) में बदलाव का दबाव बनाना शुरू कर दिया ताकि महंगी दर पर बिजली बेचने का रास्ता साफ हो सके। यूपी के बाहर खास तौर पर गुजरात के कुछ निजी उत्पादकों के पीपीए में बदलाव किया गया है, जिसके बाद इन इकाइयों ने उत्पादन शुरू कर दिया। यही नहीं, कुछ निजी उत्पादकों ने पीपीए की शर्तों को दरकिनार करते हुए अपनी इकाइयों में बदलाव करके घरेलू कोयले से बिजली उत्पादन शुरू दिया।

दरें बढ़ने की आशंका थी

केंद्र सरकार की ओर टेंडर के लिए 31 मई तक की समयसीमा तय करते हुए लगातार दबाव डाला जा रहा था। इस बीच मई के पहले सप्ताह में राज्य विद्युत उत्पादन निगम ने राज्य सरकार से टेंडर की अनुमति यह जानकारी देते हुए मांगी कि आयातित कोयले से बिजली दरों में एक रुपये प्रति यूनिट तक की वृद्धि हो सकती है। आयातित कोयले की खरीद से बिजलीघरों पर 11 हजार करोड़ रुपये का बोझ पड़ने की बात कही गई थी। इसी दरम्यान प्रदेश के निजी उत्पादकों ने भी दरें बढ़वाने के लिए पीपीए में संशोधन के लिए लामबंदी तेज कर दी।

निजी उत्पादकों को मिला महंगी बिजली बेचने का विकल्प

मई के पहले सप्ताह में ही विद्युत मंत्रालय के संयुक्त सचिव घनश्याम प्रसाद ने विद्युत अधिनियम के प्रावधानों का हवाला देते हुए आयातित कोयले पर आधारित सभी इकाइयों को पूरी क्षमता पर चलाने का एक नया फरमान जारी किया। इस आदेश में कहा था कि इन बिजलीघरों से जिस राज्य का पीपीए है, अगर वह बिजली नहीं खरीदता है तो उत्पादक अपनी महंगी बिजली पावर एक्सचेंज में बेच सकता है। इसका मुनाफा उत्पादक और पीपीए वाले राज्य के बीच बराबर बंटेगा।

केंद्र की राज्यों को चेतावनी

केंद्रीय विद्युत मंत्रालय की ओर से 18 मई को राज्यों को फिर चेतावनी देते हुए कहा गया कि 31 मई तक जो ताप बिजलीघर कोयला आयात करने का आदेश नहीं करेंगे और 15 जून तक घरेलू कोयले के साथ आयातित कोयले की ब्लेंडिंग (मिश्रण) प्रारंभ नहीं करेंगे, उन्हें इसके बाद 10 प्रतिशत के बजाय 15 प्रतिशत कोयला 31 अक्तूबर तक आयात करना होगा। इतना ही नहीं केंद्र सरकार ने यह भी चेतावनी दी कि 1 जून के बाद घरेलू कोयले के आवंटन में भी ऐसे ताप बिजली घरों को 5 प्रतिशत कम कोयला दिया जाएगा, जिन्होंने आयातित कोयले का आदेश नहीं किया है।

ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन (एआईपीईएफ) ने भारत सरकार से कोयला आयात की जिम्मेदारी लेने का अनुरोध करते हुए कहा कि राज्यों को कोल इंडिया की दर पर आयातित कोयला उपलब्ध कराया जाए। फेडरेशन का कहना था कि विद्युत अधिनियम 2003 की धारा 11 के अनुसार भारत सरकार राज्यों को इस संबंध में निर्देश नहीं दे सकती है। राज्य सरकार ने भी केंद्र की चेतावनी को नजरंदाज करते हुए टेंडर की प्रक्रिया को फिलहाल ठंडे बस्ते में डाल दिया।

कोयला आयात न करने का फैसला

मई के तीसरे सप्ताह में राज्य सरकार ने प्रदेश के बिजलीघरों के लिए कोयला आयात न करने का फैसला कर लिया। बिजलीघरों पर 11 हजार करोड़ रुपये का अतिरिक्त व्ययभार पड़ने तथा उपभोक्ताओं की दरों में 85 पैसे से लेकर एक रुपये प्रति यूनिट तक की वृद्धि होने की आशंका के मद्देनजर शासन स्तर पर गहन विचार-विमर्श के बाद जनहित में केंद्र सरकार के दबाव को दरकिनार करते हुए सार्वजनिक क्षेत्र व निजी उत्पादकों द्वारा कोयले का आयात न करने का फैसला किया गया। ऊर्जा विभाग के विशेष सचिव अनिल कुमार की ओर से 23 मई को उत्पादन निगम के प्रबंध निदेशक को पत्र भेजकर इसकी जानकारी भी दे दी गई।

कोल इंडिया को दिया गया आयातित कोयले की आपूर्ति का जिम्मा

राज्य सरकार के इनकार के बाद मई के अंतिम सप्ताह में केंद्र ने सीधे राज्यों को आयातित कोयले की आपूर्ति का फैसला किया है। केंद्रीय विद्युत मंत्रालय ने नया आदेश जारी करके राज्यों से आयातित कोयले की खरीद के लिए पूर्व में जारी टेंडरों को निरस्त करने का निर्देश देते हुए कहा कि अब कोल इंडिया लिमिटेड द्वारा सभी राज्यों के लिए विदेशी कोयले की खरीद करके आपूर्ति की जाएगी। सभी राज्यों से 31 मई तक यह बताने को कहा गया कि उन्हें कितने कोयले की आवश्यकता है?

फिर दी गई बिजलीघरों के कोयला आवंटन में भारी कटौती की चेतावनी

केंद्रीय विद्युत मंत्रालय के अनुसचिव एस. मजूमदार की ओर से 1 जून को सभी राज्यों के ऊर्जा विभाग के अपर मुख्य सचिव व प्रमुख सचिव, सभी राज्यों की बिजली उत्पादन कंपनियों और निजी बिजली उत्पादकों को भेजे गए पत्र में कहा गया कि राज्यों के जिन बिजलीघरों ने 3 जून तक कोयला आयात करने के टेंडर की प्रक्रिया प्रारंभ नहीं की है अथवा आयातित कोयले के लिए कोल इंडिया को इंडेंट नही दिया है, उनके घरेलू कोयले के आवंटन में 7 जून से 30 प्रतिशत कटौती करते हुए 70 प्रतिशत कोयला ही दिया जाएगा। पत्र में कहा गया है कि कोयला आयात न करने पर ऐसे बिजलीघरों के घरेलू कोयला आवंटन में कटौती बढ़ाते हुए 15 जून से 60 प्रतिशत कोयले का ही आवंटन किया जाएगा। इसके खिलाफ उपभोक्ता परिषद की ओर से नियामक आयोग में याचिका भी दायर की गई।

दो महीने के लिए 5.5 लाख मीट्रिक टन आयातित कोयला खरीदने को मंजूरी

कई महीने से चल रही जद्दोजहद के बाद 12 जुलाई को राज्य सरकार ने प्रदेश के ताप बिजलीघरों के लिए अगस्त और सितंबर में 5.5 लाख मीट्रिक टन आयातित कोयले की खरीद को हरी झंडी दे दी। आयातित कोयले की खरीद के प्रस्ताव को कैबिनेट बाई सर्कुलेशन मंजूरी दी गई। आयातित कोयले से बिजली की उत्पादन लागत में होने वाली वृद्धि की भरपाई के लिए राज्य सरकार पावर कार्पोरेशन को 1098 करोड़ रुपये सब्सिडी के रूप में उपलब्ध कराने का भी फैसला किया गया ताकि उपभोक्ताओं पर दरों का बोझ न बढ़े।

घरेलू कोयले का बढ़ने के बावजूद आयातित की खरीद

इसी बीच खुलासा हुआ कि देश में घरेलू कोयले का उत्पादन बढ़ने के बावजूद बिजलीघरों के आयातित कोयले की खरीद की जा रही है। बीते साल के मुकाबले इस साल जून में घरेलू कोयले के उत्पादन में 28.9 फीसदी का इजाफा हुआ है। इसका खुलासा कोयला सचिव डॉ. अनिल कुमार जैन की ओर से कैबिनेट सचिव राजीव गाबा को भेजे गए पत्र से हुआ है। कोयला सचिव की ओर से कैबिनेट सचिव को भेजे गए पत्र में जानकारी दी गई कि जून 2022 में कोल इंडिया द्वारा 51.56 मिलियन टन कोयला उत्पादन किया गया है, जबकि जून 2021 में यह उत्पादन केवल 40.01 मिलियन टन था यानी बीते साल के मुकाबले इस साल जून में 28.9 प्रतिशत ज्यादा कोयले का उत्पादन किया गया।

यही नहीं, कोल इंडिया द्वारा पावर सेक्टर को जून 2021 के मुकाबले जून 2022 में 26.5 प्रतिशत ज्यादा कोयला आपूर्ति की गई। दिलचस्प बात यह है कि राज्य सरकार की ओर से दो महीने के लिए आयातित कोयले की खरीद की हरी झंडी दिए जाने के बाद प्रदेश के बिजलीघरों को आवंटित कोटे के अनुसार पर्याप्त घरेलू कोयले की आपूर्ति भी शुरू कर दी गई।

केंद्र ने आयातित कोयले की खरीद का फैसला राज्यों पर छोड़ा

अगस्त के पहले सप्ताह में केंद्र सरकार ने बिजलीघरों के लिए आयातित कोयले की खरीद का मामला राज्यों पर छोड़ दिया। केंद्रीय विद्युत मंत्रालय ने पूर्व में जारी अपने आदेश में संशोधन करते हुए आयातित कोयले की खरीद की अनिवार्यता समाप्त कर दी। पूर्व में केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय की ओर से जारी आदेश पर यूपी समेत कई राज्यों ने आयातित कोयले की खरीद के लिए हामी भर दी। अब ऊर्जा मंत्रालय ने अपने पुराने आदेश में संशोधन करते हुए नया आदेश जारी किया है कि राज्य चाहें तो घरेलू कोयले में मिश्रण के लिए आयातित कोयला खरीदें या न खरीदें।

राज्य सरकार ने वापस ली सहमति

केंद्र सरकार की ओर से आयातित कोयले की खरीद की अनिवार्यता समाप्त किए जाने के बाद अब राज्य सरकार ने कदम पीछे खींच लिए हैं। चूंकि राज्य सरकार ने बाकायदा कैबिनेट की मंजूरी के बाद दो महीने के लिए केंद्र को आयातित कोयला खरीदने की सहमति भेजी थी इसलिए अब औपचारिक रूप से अपर मुख्य सचिव ऊर्जा ने केंद्रीय विद्युत सचिव को पत्र भेजकर कहा है कि अगस्त और सितंबर के लिए आयातित कोयला खरीदने की दी गई सहमति को फिलहाल निरस्त माना जाए।

Next Story