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उत्तर प्रदेश
आजम खान और शिवपाल यादव की मुलाकात क्या बढ़ाएगी अखिलेश यादव की टेंशन?
jantaserishta.com
22 April 2022 7:53 AM GMT
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नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी का कुनबा क्या एक बार फिर से बिखरेगा, क्योंकि चुनाव के बाद से भी सपा में शह-मात का खेल जारी है. सीतापुर जेल में दो साल से बंद सपा विधायक आजम खान ने अपने समर्थकों के जरिए महज एक इशारा दिया कि सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव से नाराज है तो बस उनसे मिलने के लिए सियासी दलों के नेताओं का तांता लग गया. इससे सूबे की सियासत में एक नए समीकरण बनने के संकेत भी मिल रहे हैं.
राष्ट्रीय लोकदल के राष्ट्रीय अध्यक्ष जयंत चौधरी ने रामपुर जाकर आजम परिवार से मुलाकात किया तो अब शिवपाल यादव शुक्रवार को सीतापुर जेल में आजम खान से मिले. दलित नेता चंद्रशेखर आजाद भी आजम खान से मिलने के लिए सीतापुर जेल जाने के लिए तैयार बैठे हैं. वहीं, असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM ने तो आजम खान को अपनी पार्टी में शामिल होने का न्योता भी भेज दिया है. साथ ही ओवैसी ने तो जेल में ही आजम खान से मुलाकात का समय मांगा है. ऐसे में साफ है संकेत है कि सूबे की सियासत में कुछ तो खिचड़ी जरूर पक रही है.
दरअसल, सपा के कद्दावर नेता आजम खान पिछले दो सालों से सीतापुर की जेल में बंद हैं और उन पर करीब 80 मुकदमें दर्ज हैं. आजम खान इतने लंबे समय तक तो आपातकाल के दौर में भी जेल में बंद नहीं रहे हैं. इन दो सालों में सपा प्रमुख अखिलेश यादव महज एक बार ही आजम खान से मिलने सीतापुर जेल गए हैं, लेकिन उनकी रिहाई के लिए अभी तक किसी तरह का कोई बड़ा आंदोलन नहीं खड़ा कर सके. ऐसे में अब आजम खान खेमे से अखिलेश यादव के खिलाफ बगावती सुर उठने लगे हैं तो उनके समर्थन में सपा के कई मुस्लिम नेता इस्तीफा दे चुके हैं.
आजम खान के मीडिया प्रभारी फसाहत अली खां के शानू के कहा था कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सही कहा था कि अखिलेश यादव ही नहीं चाहते कि आजम खान जेल से बाहर आएं. उन्होंने कहा कि आजम खान दो साल से ज्यादा समय से जेल में हैं, लेकिन सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव केवल एक बार ही जेल में उनसे मिलने गए. मुसलमानों ने सपा को एकतरफा वोट किया है, लेकिन पार्टी में मुस्लिमों को ही महत्व नहीं दिया जा रहा है. मुसलमानों का उत्पीड़न हो रहा है, अखिलेश यादव चुप है.
आजम खान मीडिया प्रभारी के बयान के बाद से ही आजम समर्थक अखिलेश के खिलाफ बगावती तेवर में हैं, खून से खत लिख रहे हैं और सपा के खिलाफ मुस्लिमों की अनदेखी का बयान जारी कर रहे हैं. एक के बाद एक सपा का मुस्लिम नेता पार्टी से इस्तीफा दे रहे हैं. इसके बाद से ही आजम खान और उनके परिवार से नेताओं ने मुलाकात का सिलसिला भी शूरू कर दिया है, क्योंकि माना जा रहा है कि आजम खान जल्द ही जेल से बाहर निकलने वाले हैं. आजम खान के खिलाफ दर्ज कई मामले में जमानत मिल चुकी है और बस एक केस ही बचा है.
आजम खान के जेल से बाहर आने से पहले ही सियासी तानाबना बुना जाने लगा है. ऐसे में सबसे पहले रालोद प्रमुख जयंत चौधरी ने रामपुर जाकर आजम खान के विधायक बेटे अब्दुल्ला आजम से मिले और फिर उनकी पत्नी तंजीम फातिमा से भी मुलाकात की. जयंत चौधरी ने इस दौरान आजम खान के साथ अपने पारिवारिक संबंध बताया. उन्होंने कहा कि आजम खान का परिवार काफी कुछ परेशानियों का सामना कर रहा है. ऐसे में मेरी जिम्मेदारी थी कि जब में रामपुर आया था तो उनसे मिलूं. जयंत ने आजम खान के परिवार से अपना बहुत पुराना रिश्ता बताया और कहा कि उनके पिता चौधरी अजीत सिंह उनके बहुत अच्छे दोस्त थे.
वहीं, अखिलेश यादव के खिलाफ बड़ा मोर्चा खोल चुके जसंवतनगर सीट से सपा विधायक शिवपाल यादव अपने समर्थकों के साथ शुक्रवार को सीतापुर जेल पहुंचे हैं, जहां आजम खान से मुलाकात किया. शिवपाल यादव ने आजम खान के स्वास्थ्य को लेकर गुरुवार को ही गहरी चिंता जताई थी और कहा था कि बीजेपी सरकार में उनका उत्पीड़न हो रहा है और उन पर झूठे केस लादे जा रहे हैं.
भीम आर्मी के अध्यक्ष चंद्रशेखर बुधवार को आजम खान से सीतापुर जेल में मुलाकात करने वाले थे, लेकिन आजम खान की तबीयत ठीक नहीं होने की वजह से उन्हें इसे टालना पड़ा. चंद्रशेखर अब अगले सप्ताह सीतापुर जेल जाकर आजम खान से भेंट करेंगे. दूसरी तरफ असदुद्दीन ओवैसी भी आजम खान से जेल में मिलने के समय मांगा है और उनको लेकर तीन पन्ने का पत्र लिखा है. इतना ही नहीं ओवैसी ने आजम खान को AIMIM में शामिल होने का ऑफर भी दे रखा है.
बता दें कि उत्तर प्रदेश में इन दिनों आजम खान के समर्थक अखिलेश यादव के खिलाफ मुहिम छेड़ रखी है. ऐसे में आजम खान समाजवादी पार्टी के भीतर अखिलेश विरोध का केंद्र बनते जा रहे हैं और शिवपाल यादव उसे और भी हवा देने में जुटे हैं. ऐसे में असदुद्दीन ओवैसी से लेकर जयंत चौधरी और शिवपाल यादव तक उन्हें साधने की कवायद में जुट गए हैं, जिसके लिए अब खुलकर आजम खान के साथ खड़े दिखाए दे रहे हैं.
आजम खान पिछले दो सालों से सीतापुर की जेल में बंद है, लेकिन इस दौरान उनके समर्थक नेताओं के अलावा कोई भी नेता जेल में मिलने नहीं पहुंचा. सपा प्रमुख अखिलेश यादव भी एक बार शुरू में ही अपने कद्दावर मुस्लिम नेता से जेल में मिलने पहुंचे थे, लेकिन इस बार चुनाव नतीजे आने के बाद आजम खान खेमे से नाराजगी के बात सामने आने के बाद से ही नेताओं ने उनके साथ भाईचारा बढ़ाना शुरू कर दिया है.
आजम खान ने पहले 2009 में अमर सिंह को लेकर जब सपा छोड़ी थी तब उन्होंने न कोई अपनी पार्टी बनाई थी न ही किसी दल में गए, लेकिन इस बार बगावत की यह चिंगारी तमाम सपा नेताओं को उकसा रही है और अब मुद्दा सपा द्वारा आजम का साथ छोड़ने, मुस्लिमों की बात न करने तक पहुंच गई है. ऐसे में आजम खान से जिस तरह से विपक्षी दलों के नेताओं के मिलने का सिलसिला शुरू हुआ है, उसके जरिए सियासी बिसात पिछती दिख रही है.
आरएलडी प्रमुख जयंत चौधरी ने सपा प्रमुख अखिलेश यादव के साथ मिलकर यूपी विधानसभा चुनाव लड़े थे, लेकिन कुछ खास नहीं कर सके. आरएलडी महज 8 सीटें ही जीत सकी थी. इसके बाद भी सपा के साथ आरएलडी का गठबंधन बना हुआ है, लेकिन अब आजम खान से मिलने के बाद अखिलेश यादव ने जिस तरह से कहा कि जयंत आजाद हैं कही भी जाने के लिए. इससे जाहिर होता है कि चार साल से चला आ रहा सपा-रालोद का गठबंधन में दरार पड़ गई है तो शिवपाल यादव अपना नाता अखिलेश से तोड़ चुके हैं.
यूपी विधानसभा चुनाव में चंद्रशेखर और अखिलेश यादव में सीटों के बंटवारे को लेकर सहमति नहीं बन सकी थी, जिसके चलते आजाद समाज पार्टी अकेले ही चुनाव लड़ी. चंद्रशेखर ने अखिलेश को दलित विरोधी बताया था. चुनाव नतीजे आने के बाद से भी जयंत की चंद्रशेखर आजाद के बीच दोस्ती बढ़ती दिख रही है. चंद्रशेखर के साथ जयंत ने राजस्थान का दौरा कर जितेंद्र मेघवाल के लिए न्याय की मांग उठाई थी और अब यूपी में आजम खान के साथ दोनों ही नेता अपनी नजदीकियां बढ़ा रहे हैं.
पश्चिमी यूपी में यादव वोटर कुछ खास नहीं है, यहां पर जाट-मुस्लिम-दलित ही निर्णायक वोटर है. जयंत चौधरी को सपा के साथ जाने से मुस्लिम वोट तो मिले, लेकिन दलित वोट नहीं मिल सके. दलित वोट सपा गठबंधन के बीजेपी के साथ चला गया था. ऐसे में जयंत चौधरी पश्चिमी यूपी में अपने सियासी समीकरण को दुरुस्त करने में लगे हैं, जिसके चलते चंद्रशेखर से लेकर आजम खान के साथ खड़े दिखाए दे रहे हैं.
2022 विधानसभा के चुनाव में मुस्लिम वोटरों ने इस बार सपा को जिताने के लिए पूरी ताकत लगा दी थी. मुस्लिम वोटरों की सपा के प्रति एकजुटता का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि यूपी में किसी दूसरे दलों से उतरे कई कद्दावर मुस्लिम चेहरों को जीतना तो दूर अपने ही समाज के वोट तक के लिए तरस गए थे. सीएसडीएस के आंकड़ों को माने तो सूबे में 87 फीसदी मुस्लिम समाज ने सपा को वोट दिया है.
यूपी चुनाव नतीजों के बाद सपा के भीतर के कई फैसलों के बाद अब मुस्लिम नेताओं का एक तबका पार्टी पर खुले तौर पर मुसलमानों को हाशिए पर रखने का आरोप लगा रहा है. ऐसे में मुस्लिमों की बढ़ती सपा से नाराजगी के बीच आजम खान जेल से बाहर आने के बाद किसी तरह का कोई सियासी कदम सपा से अलग उठाते हैं तो नई सियासी समीकरण बन सकते हैं. ऐसे में अखिलेश के खिलाफ एक माहौल मुस्लिम वर्ग में बना हुआ है, जिसके चलते सारी सियासी बिसात बिछाई जा रही है.
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