- Home
- /
- राज्य
- /
- उत्तर प्रदेश
- /
- आखिर कहां गए नगर निगम...
x
लखनऊ। लाखों की आबादी को खुद में समेटे लखनऊ मेट्रोपॉलिटन महानगर के होनहार नगर निगम का दावा है कि शहर में 369 स्मार्ट शौचालय मौजूद हैं, लेकिन बाबू भवन से निशातगंज पहुंच जाइये या अटल चौक से परिवर्तन चौक चौराहे तक जÞरा गिनकर बताइये कि लखनऊ के इन वीवीआईपी इलाकों में कुल कितने स्मार्ट शौचालय आप ने आज तक देखे हैं। मुख्यमंत्री आवास से लेकर 1090 चौराहे तक की पूरी सड़क पर कहीं कोई शौचालय नजÞर आया हो तो कृपया नगर आयुक्त को जरूर बतायें। उत्तर प्रदेश विद्युत परिषद मुख्यालय यानि कि शक्तिभवन और उसके बगल में मौजूद जीएसटी भवन जैसे प्रमुख सरकारी दफ्तरों में आने-जाने वाली हजारों नागरिकों की भीड़ के लिए केवल सड़क के दोनों ओर मौजूद नालिया ही नगर निगम के द्वारा सुलभ प्रसाधन केन्द्र के रूप में नजÞर आती हैं,इसके अलावा इस पूरी सड़क पर कहीं कोई सरकारी शौचालय आज तक देखा नहीं गया। कमोबेश यही हालत मीराबाई मार्ग के सरकारी गेस्ट हाउस से होकर राणा प्रताप मार्ग से होती हुई पूरी जॉपलिंग रोड को पार करने वाली सड़क की है जिस पर रोजाना गुजरने वाले नागरिकों के लिए किसी तरह की शौचालय सुविधा मौजूद नहीं है। वहीं जब सबसे पहले इस मुद्दे पर नगर निगम जोन एक के जोनल अधिकारी के सीयूजी नंबर पर कॉल किया गया तो हमेशा की तरह इस बार भी उनका कॉल नहीं उठा, ऐसे में यह बात समझ से परे है कि आखिर नागरिकों से वो कैसे फीडबैक मिल पायेगा।
अब आप चाहे कैसरबाग के ऐतिहासिक चौराहे पर खड़े हो या नजीराबाद की भीड़भाड़ भरी सड़क पर या नाका हिंडोला से होकर गुरू गोविंद सिंह मार्ग होते हुए हुसैनगंज क्षेत्र में महाराणा प्रताप की मूर्ति तक पहुंच जाए आपको सड़क से गुजरने वाला कोई राहगीर यह नहीं बता सकता कि इस क्षेत्र में नगर निगम द्वारा संचालित होने वाले 369 स्मार्ट शौचालयों में से दो-चार भी किसी ने देखा हो।
एक समय था और वो भी महजÞ तीस साल पहले जब लखनऊ नगर निगम कोई निगम न होकर सिर्फ लखनऊ नगर महापालिका हुआ करता था और तब शायद ही लखनऊ का ऐसा कोई चौराहा या सड़क रही हो जिस पर कदम-कदम पर पीने के पानी का नल और सार्वजानिक शौचालयों की सरकारी व्यवस्था मौजूद न रही हो लेकिन एक तरफ लखनऊ महानगर की आबादी बढ़ती गयी और उसके साथ ही लखनऊ महानगर के मुख्य मार्गों से लेकर चौराहों तक के सरकारी शौचालय गायब होते चले गये बचीखुची कसर मौजूदा सरकार के समय ढोल पीटकर चलाये जा रहे स्वच्छता अभियान में अपने शहर को नम्बर-1 बनाने की बचकानी सरकारी होड़बंदी ने पूरी कर दी।
शौचालयों की सफाई तो नहीं हुई अलबत्ता पूरे शहर के तमाम कोने-अतरे में खुले सौंकड़ो पुराने शौचालय जÞरूर जड़ से साफ हो गये। अब लखनऊ के सभ्य नागरिकों को विश्व शौचालय पर नुक्कड़ नाटक करके खुले में शौच न करने और राजधानी की दीवारों को सुलभ केन्द्र के रूप में इस्तेमाल न करने की सीख दी जा रही है। अगर नगर निगम ने आबादी के घनत्व या सड़कों की संख्या के हिसाब से ही कम-से कम हर मुख्य सम्पर्क मार्ग पर एक अदद शौचालय की व्यवस्था दी होती तो आज नुक्कड़ नाटक करके राजधानी को स्वच्छ रखने की कोशिशों का नाटक न करना पड़ता।
हजरतगंज के अशोक मार्ग पर आयकर मुख्यालय वाले फुटपाथ पर महज चार साल पहले तमाम धूमधाम से बनाये गये स्मार्ट शौचालय को देखकर नगर निगम में चल रही अफलातूनी कारगुजारी का पता चलता है। बीते साल तक तमाम विज्ञापन कम्पनियों का आकर्षण बना यह नगर निगम बस स्टाप सह-सुलभ संसाधन केन्द्र अब केलव बस स्टाप बनकर रह गया है। मौके पर पहुंचे तरूणमित्र संवाददाता को पता चला कि महिलाओं और पुरूषों के लिए बनाये गये शौचालयों पर इंटरलॉक लगा हुआ है। बगल में मौजूद ठेले वाले ने बताया कि साहब ये बंद ही रहता है कभी खुलता नहीं। शौचालय के बाहर माई क्लीन सिटी का इस्तेहार बता रहा है कि इस क्षेत्र से गुजरने वालों के लिए नगर निगम कितनी चिंता कर रहा है। बहरहाल आयकर विभाग के सामने मौजूद नवचेतना केन्द्र कि दीवारे शाम को 7 बजे लेकर देर रात तक आने-जाने वालों के लिए सुलभ केन्द्र के रूप में मौजूद हैं।
राजधानी की सुलभ शौचालयों की व्यवस्था के बारे में हम अभी कुछ नहीं बता सकते। बाद में आपको शहर में बने शौचालयों का डाटा उपलब्ध करा दिया जायेगा। हां फिलहाल इतना बता देते हंै कि शनिवार को विश्व शौचालय दिवस पर इस व्यवस्था में सुधार करने के लिए मुहिम शुरूकी गई है।
Admin4
Next Story