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भारत में उच्च न्यायपालिका में जजों की नियुक्ति के लिए सुप्रीम कोर्ट का कॉलेजियम सिस्टम पिछले करीब 24 वर्षों से प्रभावी है। बीच में राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग कानून के तहत इस व्यवस्था को बदलने की भी केंद्र सरकार की ओर से कोशिश की गई थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे अपनी स्वतंत्रता में दखल माना और उस कानून को ही रद्द कर दिया। यानि पिछले करीब ढाई दशकों से कॉलेजियम सिस्टम के माध्यम से ही देश में जजों की नियुक्तियां हो रही है, जिसके प्रस्ताव को कानून मंत्रालय के पास भेजा जाता है और आमतौर पर उसी पर ही राष्ट्रपति की मंजूरी मिलती है।
सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश या सीजेआई और चार वरिष्ठतम जजों का वह समूह जो देश की सर्वोच्च अदालत में जजों की नियुक्तियों पर फैसला लेता है और केंद्र सरकार के पास उनके नामों का प्रस्ताव भेजता है, कॉलेजियम कहलाता है। लेकिन, कॉलेजियम के चार वरिष्ठतम अवर न्यायाधीशों में यदि किसी के अगले चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया बनने की संभावना नहीं है, तो इसमें छठे सदस्य के तौर पर सुप्रीम कोर्ट के वे जज भी शामिल किए जाते हैं, जिनके भविष्य में मौजूदा सीजेआई के उत्तराधिकारी बनने की संभावना है। सुप्रीम कोर्ट के जजों के तौर हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस या अन्य जजों को पदोन्नति देकर या किसी प्रसिद्ध और अनुभवी वकील/कानून विशेषज्ञों को सीधी नियुक्त किए जाने की व्यवस्था है, जिसपर मुख्य मंथन सुप्रीम कोर्ट का कॉलेजियम ही करता है।
देश के प्रत्येक हाई कोर्ट में भी कॉलेजियम की व्यवस्था होती है। इसकी अगुवाई संबंधित हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस करते हैं। हाई कोर्ट कॉलेजियम में उस हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस के अलावा दो वरिष्ठतम जज भी शामिल रहते हैं। हाईकोर्ट का कॉलेजियम जजों की नियुक्ति के मामले में सुप्रीम कोर्ट के पास सिर्फ अपनी सिफारिशें भेजता है और आखिरी फैसला भारत के प्रधान न्यायाधीश की अगुवाई वाला कॉलेजियम लेता है, जिसमें उनके अलावा सुप्रीम कोर्ट के दो वरिष्ठ जज होते हैं। यह कॉलेजियम नियुक्त किए जाने वाले जजों के नाम केंद्र सरकार के माध्यम से राष्ट्रपति तक भेजता है। सुप्रीम कोर्ट के तीनों वरिष्ठतम जजों वाला यही कॉलेजियम देशभर के हाई कोर्ट के जजों के ट्रांसफर का भी फैसला करता है।