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आगरा न्यूज़: आटिज्म का कारण केवल वंशानुगत, खानपान में गड़बड़ी ही नहीं है. यह मोबाइल टावरों से वातावरण में बढ़ती इलेक्ट्रोमैग्नेटिंग तरंगें भी हैं. विश्व आटिज्म डे पर आध्यांत फाउंडेशन की कार्यशाला में यह जानकारी फाउंडेशन की निदेशक डा. रेनू तिवारी ने दी.
पीड़ित बच्चों के अभिभावकों की शाहगंज में काउंसलिंग की गयी. डा. तिवारी ने बताया कि आटिज्म से पीड़ित बच्चे मंदबुद्धि नहीं होते.
सेंट जोंस कालेज में मनोविज्ञान विभाग की डा. प्रियंका मैसी ने बताया कि खानपान के जरिए शरीर में लेड की अधिकता से भी यह दिक्कत हो सकती है. हर 100 मे से दो बच्चे इससे पीड़ित हैं. यह पूरी तरह ठीक नहीं हो सकता लेकिन थेरेपी से ऐसे बच्चे सामान्य जीवन जी सकते हैं. कार्यशाला में चतुरा देवी, रंजीत सामा, पंकज तिवारी, जेएस इंदौलिया, सतेंद्र तिवारी, संजय दुबे, धीरज मौजूद थे.
ऑटिज्म बच्चों की संख्या पिछले दो साल में चार गुना हो गयी है. पहले ओपीडी में लगभग 2 से 3 बच्चे रोज आते थे. लेकिन अब इनकी संख्या 8 से 10 हो गयी है. इस समय 100 से अधिक बच्चे हैं. इसमें आक्यूप्रेशर थैरेपी सबसे अहम हिस्सा है.
डा. नेताल सिंह,आक्यूप्रेशर थैरेपिस्ट
स्पीच थेरेपी काफी नहीं
आईओपी और जीनियस लेन ने पल्स मेडीसिटी सिकंदरा पर कार्यशाला लगाई. एसएनएमसी में डा. नीरज यादव ने बताया कि स्पीच थेरेपी बहुत कारगर नहीं है. डा. आरएन शर्मा, डा. अनिल अग्रवाल, डा. अरुण जैन, डा. दिनेश राठौर ने भी जानकारी दी.
● बच्चे को नाम से पुकारने पर भी पलटकर न देखना
● दूसरे बच्चों के साथ घुलना-मिलना नहीं, अकेला रहना
● उत्तेजित होने पर हाथ हिलाना, कूदना, स्पनिंग जैसा करना
● पंजे पर चलना, जिद्दी और गुस्सैल होना, देर से बोलना
● शोर सुनते ही डर के मारे कानों पर हाथ रखकर बंद करना
● किसी चीज की ओर इशारे की बजाए दूसरे का हाथ ले जाना
● खिलौनों से खेलने की बजाए उन्हें लाइन में लगाते रहना
● खानपान की चीजों को सूंघना, खिलौनों को मुंह में डालना