उत्तर प्रदेश

सपा-भाजपा में अदालत के फैसले पर शुरू हुई जुबानी जंग

Admin Delhi 1
27 Dec 2022 10:21 AM GMT
सपा-भाजपा में अदालत के फैसले पर शुरू हुई जुबानी जंग
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लखनऊ: इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने यूपी के निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण को लेकर निर्णय दे दिया है। हाईकोर्ट ने ओबीसी आरक्षण को रद्द करते हुए फौरन चुनाव कराने का आदेश दिया है। कोर्ट ने सरकार की दलीलों को नहीं माना। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि ट्रिपल टेस्ट के बगैर ओबीसी को कोई आरक्षण न दिया जाए। ऐसे में बगैर ओबीसी को आरक्षण दिए स्थानीय निकाय चुनाव कराए जाएं।

कोर्ट ने राज्य सरकार को ट्रिपल टेस्ट के लिए आयोग बनाए जाने का आदेश दिया। कोर्ट ने चुनाव के संबंध में सरकार द्वारा जारी गत 5 दिसंबर के अनंतिम ड्राफ्ट आदेश को भी निरस्त कर दिया। न्यायमूर्ति देवेन्द्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति सौरभ लवानिया की खंडपीठ ने मंगलवार को यह निर्णय ओबीसी आरक्षण को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनाया।

कोर्ट के फैसले पर उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने कहा कि नगरीय निकाय चुनाव के संबंध में उच्च न्यायालय इलाहाबाद के आदेश का विस्तृत अध्ययन कर विधि विशेषज्ञों से परामर्श करने के बाद सरकार के स्तर पर अंतिम निर्णय लिया जाएगा, परंतु पिछड़े वर्ग के अधिकारों को लेकर कोई समझौता नहीं किया जाएगा।

प्रोफेसर रामगोपाल ने ट्वीट कर सरकार पर उठाए सवाल, बोले- ओबीसी मंत्रियों की जबान पर लगे ताले कोर्ट के निर्णय को लेकर सपा नेता रामगोपाल यादव ने सरकार पर कोर्ट में ठीक से पैरवी न करने के आरोप लगाए हैं। उन्होंने ट्वीट कर कहा कि निकाय चुनावों में ओबीसी का आरक्षण खतम करने का फ़ैसला दुर्भाग्यपूर्ण है।

यह उत्तर प्रदेश सरकार की साजिश है। जानबूझकर तथ्य न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत नहीं किए गए। उन्होंने कहा कि ऐसा करके सरकार ने यूपी की 60 फीसदी आबादी को आरक्षण से वंचित किया। इस फैसले पर भाजपा के ओबीसी मंत्रियों की जबान पर ताले लग गए हैं। उन्होंने कहा कि उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य की स्थिति बंधुआ मजदूर जैसी है।

कैबिनेट मंत्री बोले- आरक्षण के बिना निकाय चुनाव उचित नहीं

अपना दल (एस) के कार्यकारी अध्यक्ष और कैबिनेट मंत्री आशीष पटेल ने कहा कि ओबीसी आरक्षण के बिना निकाय चुनाव किसी भी दृष्टि से उचित नहीं हैं। हम इस संदर्भ में लखनऊ उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए फैसले का अध्ययन कर रहे हैं। जरूरत पड़ी तो अपना दल (एस) ओबीसी के हक के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएगा।

कोर्ट में सुनवाई चलते रहने के कारण राज्य निर्वाचन आयोग के अधिसूचना जारी करने पर रोक लगा दी गई थी। मामले में याची पक्ष ने कहा था कि निकाय चुनावों में ओबीसी आरक्षण एक प्रकार का राजनीतिक आरक्षण है। इसका सामाजिक, आर्थिक अथवा शैक्षिक पिछड़ेपन से कोई लेना देना नहीं है। ऐसे में ओबीसी आरक्षण तय किए जाने से पहले सुप्रीम कोर्ट द्वारा दी गई व्यवस्था के तहत डेडिकेटेड कमेटी द्वारा ट्रिपल टेस्ट कराना अनिवार्य है।

जिस पर राज्य सरकार ने दाखिल किए गए अपने जवाबी हलफनामे में कहा था कि स्थानीय निकाय चुनाव मामले में 2017 में हुए अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के सर्वे को आरक्षण का आधार माना जाए। सरकार ने कहा है कि इसी सर्वे को ट्रिपल टेस्ट माना जाए। सरकार ने ये भी कहा था कि ट्रांसजेंडर्स को चुनाव में आरक्षण नहीं दिया जा सकता। सुनवाई में हाईकोर्ट ने सरकार से पूछा था कि किन प्रावधानों के तहत निकायों में प्रशासकों की नियुक्ति की गई है? इस पर सरकार ने कहा कि 5 दिसंबर 2011 के हाईकोर्ट के फैसले के तहत इसका प्रावधान है।

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