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उत्तर प्रदेश
उत्तर-प्रदेश: गुरुओं के आशीर्वाद के सहारे शख्स से बन गए शख्सियत
Kajal Dubey
13 July 2022 4:46 PM GMT
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'गुरु बिना ज्ञान नहीं, ज्ञान बिना आत्मा नहीं, ध्यान, ज्ञान, धैर्य और कर्म सब गुरु की ही देन है'। यह मंत्र जिसने दिया और जो धैर्यता के साथ ग्रहण किया, वही सफलता की कहानी लिखता है। आज गुरु पूर्णिमा पर कुछ ऐसे ही शख्स अपने गुरुओं के बारे में बता रहे हैं, जो उनके आशीर्वाद से शख्सियत बन चुके हैं। आप भी जानिए... इनकी जुबानी, गुरुओं की कहानी।
पहली प्रिंसिपल स्टेंसलॉस की यादें भी जेहन में : प्रो. मंसूर
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के कुलपति प्रो. तारिक मंसूर का कहना है कहा कि उनके लिए गुरु पूर्णिमा केवल एक दिन का नहीं है, बल्कि रोज है। आज भी उनकी पहली प्रिंसिपल स्टेंसलॉस की यादें जेहन में हैं। जोकि अवर लेडी ऑफ फातिमा स्कूल की संस्थापकों में शामिल और पहली प्रधानाचार्य सिस्टर स्टेंसलॉस हैं। इन्होंने हमेशा हर बच्चे को बेहतर इंसान बनाने का प्रयास किया। उनके शिष्य सर्वोच्च पदों से सेवानिवृत्त हो चुके हैं और कुछ अब भी सर्वोच्च पदों पर आसीन हैं। उनमें ममता और अपनत्व था। छात्र को छात्र नहीं बल्कि अपना बच्चा माना। इनके बाद कई शिक्षकों का अतुलनीय योगदान उनके जीवन में रहा, जिसे भुला नहीं सकते।
गुरुजनों के आशीर्वाद से कुलपति के पद पर हूं : प्रो. चंद्रशेखर
राजा महेंद्र प्रताप सिंह राज्य विश्वविद्यालय अलीगढ़ के कुलपति प्रो. चंद्रेशखर ने कहा कि गुरु पूर्णिमा पर गुरुजनों को शत - शत प्रणाम करते हैं। वह जिस कुलपति पद पर हैं, उसमें गुरुजनों का आशीर्वाद शामिल है। उन्होंने कहा कि बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में एलएलएम के दौरान प्रो. बीसी निर्मल ने डिजर्टेशन बनवाने में काफी मदद की थी। इसी तरह पंडित दीनदयाल उपाध्याय विश्वविद्यालय के विधि विभाग के चेयरमैन व डीन प्रो. आरएन चौधरी ने शोध में अपना आशीर्वाद बनाए रखा। अगर पंडित मदन मोहन मालवीय न होते तो बीएचयू की स्थापना नहीं होती और मैं भी यहां नहीं होता। इसलिए उनके जीवन में मालवीय जी का भी योगदान है।
गढ़े मान बढ़ाने वाले शिष्य
डीएस डिग्री कॉलेज से सेवानिवृत्त डॉ. रक्षपाल सिंह ने बताया कि उनके शिष्यों ने उनका खूब मान बढ़ाया है। 40 साल के अध्यापन सेवा में अनगिनत शिष्यों ने शैक्षिक, प्रशासनिक, राजनैतिक व सामाजिक क्षेत्रों में अपनी योग्यता से प्रभावशाली प्रदर्शन करने का काम किया है। पूर्व मंत्री और बरौली के विधायक ठा. जयवीर सिंह, उनके बीएससी, एमएससी के शिष्य रहे। रंजन प्रताप सिंह आईपीएस, योगेश कुमार आईपीएस उनके छात्र रहे हैं, जो दिल्ली व यूपी में सेवारत हैं। इनके अलावा शिष्य प्रो. डॉ. एके सिंह प्राचार्य पीजी कॉलेज राजस्थान विश्वविद्यालय, प्रो. मनोज शर्मा लखनऊ विश्वविद्यालय, प्रो. वीपी सिंह दिल्ली विश्वविद्यालय व अन्य कई विद्यार्थी देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों में शिक्षा प्रदान कर रहे हैं।
सही रास्ता बताने वाले गुरु हमेशा वंदनीय
-समाज को सही दिशा और रास्ता बताने वाले गुरु हमेशा वंदनीय हैं। मैंने बचपन की शिक्षा और उच्च शिक्षा के बाद प्रशासनिक सेवा में आने पर योगेश्वरानंद डॉ.मंगलनाथ महाराज से गुरुदीक्षा ली है। उन्होंने मुझ जैसे कई हजार शिष्यों को अध्यात्म साधना की शिक्षा - दीक्षा देकर उपकृत किया है। अनेक स्थानों पर उन्होंने अध्यात्म केंद्रों की स्थापना की है। ऐसे गुरु से शिक्षा व दिक्षा लेकर मैं खुद को भाग्यशाली समझता हूं। सभी से अनुरोध है कि हमेशा सही रास्ता दिखाने वाले और समाज को कुछ करने का मकसद समझाने वाले ही गुरु का दर्जा पाने के योग्य हैं। किसी को टीवी, सिनेमा के जरिये गुरु मान लेना उचित नहीं । -गौरव दयाल, कमिशभनर
अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाले गुरु
-जिसने भी जीवन में जो सिखाया, वही गुरु है। गुरु की भूमिका को समाज से कभी नकारा नहीं जा सकता। अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाला हर रास्ता और उस रास्ते को बताने वाला गुरु कहलाता है। बिहार प्रांत में बचपन की स्कूलिंग से लेकर उच्च शिक्षा तक कई ऐसे गुरु मिले, जिन्होंने बहुत कुछ सिखाया। परिवार से संस्कार मिले। पुलिस सेवा में आने के बाद भी बहुत कुछ सिखाने वाले कई गुरु मिले। आज उन्हीं गुरुजनों की बदौलत समाज को बेहतर सेवा देने का प्रयास कर रहा हूं। लोगों से यही कहना चाहता हूं कि जो भी सीखें अच्छा सीखें और हमेशा दूसरों की मदद हो सके, ऐसा सीखें।-दीपक कुमार, डीआईजी
बेवसीरीज के पात्र को रॉल मॉडल बनाना गलत संस्कार
-आजकल के जमाने में बेवसीरीज में दिखाए जाने वाले प्रभावशाली आपराधिक व्यक्तित्व को युवा अपना रॉल मॉडल बना रहे हैं। ये बेहद गलत संस्कार हैं। हमें हमेशा ऐसा रॉल मॉडल चुनना चाहिए, जिसके जरिये हम समाज के लिए सकारात्मक योगदान दे सकें। मैं उत्तराखंड पौढ़ी के शिक्षक परिवार से आता हूं। पिता उमेश चंद्र नैथानी शिक्षक, मां कुसुम नैथानी राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त शिक्षिका, चाचा सुनील नैथानी आर्मी शिक्षा विंग में कर्नल, चाची सारिका शिक्षिका और दादा भी शिक्षक थे। मां से ही जीवन में अनुशासन व सही रॉल माडल चुनना सीखा। आज उसी पर आगे बढ़ते हुए शहर, प्रदेश व देश की सेवा करने का प्रयास कर रहा हूं। - कलानिधि नैथानी, एसएसपी
जीवन में सफल होने के लिए एक गुरु का होना जरुरी है। मेरे जीवन में भी पढ़ाई के दौरान प्राथमिक विद्यालय के हेड मास्टर मैयादीन की भूमिका वैसी ही है। पढ़ाई के दौरान उनका कठोर अनुशासन, शिक्षा के प्रति जुनून आज भी यादों में है। कोई छात्र शैतानी करता और वे उसे छड़ी से पीट भी देते थे तो कुछ ही देर बाद वे रोने लग जाते थे। स्कूल नाले के पार था। बारिश के दिनों में स्कूल आने में परेशानी होती थी, ऐसे में कंधे पर बिठाकर उन्हें पहले स्कूल लाना और छुट्टी के बाद वापस घर तक छोड़ना होता था। कमजोर बच्चों की अलग से कक्षा चलाकर उन्हें होशियार बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ते थे। देर से घर जाना और समय से नियमित स्कूल आना उनकी दिनचर्या में शामिल रहता था। भले ही वे आज दुनिया में नहीं है, लेकिन उनकी सीख, दिया गया ज्ञान और मार्गदर्शन जीवन में उपयोगी साबित हो रहा है। हेड मास्टर मैयादीन हमेशा आदर्श बने रहेंगे।
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