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ब्रेकिंग न्यूज़: बर्मिंघम कॉमनवेल्थ गेम्स में एथलीट अन्नू रानी से भाला फेंक प्रतियोगिता में देश को गोल्ड की उम्मीद है। चोटिल होने की वजह से नीरज चोपड़ा प्रतियोगिता में हिस्सा नहीं ले रहे हैं ऐसे में पदक का पूरा दारोमदार मेरठ की बेटी अन्नू रानी पर है। अन्नू रानी का अपने खेत की चकरोड़ से बर्मिंघम तक पहुंचने का सफर बेहद दिलचस्प रहा है। भाला फेंक प्रतिस्पर्धा की खिलाड़ी अन्नू ने केरल में आयोजित 25वें नेशनल फेडरेशन कप सीनियर एथलेटिक्स प्रतियोगिता में 61.15 मीटर के साथ स्वर्ण पदक पर कब्जा जमाकर एशियन गेम्स व कॉमनवेल्थ गेम्स के लिए भी जगह पक्की कर ली थी। सरधना के बहादरपुर गांव निवासी अन्नू रानी ने गांव की चकरोड़ से अभ्यास कर अंतरराष्ट्रीय स्तर तक परचम लहराया है। 2022 टोक्यो ओलंपिक में स्वास्थ्य खराब होने के कारण अन्नू पदक जीतने से चूक गईं थीं। कॉमनवेल्थ गेम्स इंग्लैंड के बर्मिंघम में हो रहे हैं। एशियन गेम्स चीन के हैंगजाऊ में 10 सितंबर से 25 सितंबर तक होंगे। राष्ट्रीय एथलेटिक्स प्रतियोगता में उनका 61.15 मीटर रहा, लेकिन उनका सर्वश्रेष्ठ 63.24 मीटर थ्रो रह चुका है। पिता अमरपाल सिंह व भाई उपेंद्र सिंह ने कहा उन्हें अन्नू से पदक की पूरी उम्मीद है
गन्ने को भाला बनाकर किया भाला फेंक का अभ्यास जैवलिन क्वीन के नाम से पहचानी जाने वाली अन्नू के संघर्ष की कहानी किसी फिल्म से कम नहीं है। गांवों की पगडंडियों पर खेलते और गन्ने को भाला बनाकर प्रैक्टिस करने वाली अन्नू एक दिन विदेश में होने वाली प्रतिस्पर्धाओं में देश का प्रतिनिधित्व करेंगी, यह शायद ही किसी ने सोचा होगा, लेकिन अपने संघर्ष और कड़ी मेहनत के दम पर उन्होंने ये कर दिखाया। अब वह जीत के इरादे से मैदान पर उतरेंगीं। अन्नू रानी तीन बहन व दो भाइयों में सबसे छोटी हैं। उनके सबसे बड़े भाई उपेंद्र कुमार भी 5,000 मीटर के धावक थे और विश्वविद्यालय स्तर की प्रतियोगिताओं में हिस्सा भी ले चुके हैं। बड़े भाई के साथ अन्नू रानी ने भी खेल में रुचि दिखाई और सुबह चार बजे उठकर गांव में ही रास्तों पर दौड़ने जाया करतीं। कई बार पिता ने अन्नू खेल में दिलचस्पी नहीं दिखाई तो अन्नू चोरी से अभ्यास करतीं। अन्नू यहां किसी ग्राउंड में नहीं, बल्कि कच्चे संकरे रास्ते जिसे ग्रामीण भाषा में चकरोड़ कहा जाता है, उस पर दौड़तीं। इसी चकरोड़ पर गन्ने को भाला बनाकर वह पहले जोर से फेंकती। उन्होंने यह प्रयास कई महीनों तक जारी रखे। अन्नू की खेल में रुचि बढ़ी, तो भाई उपेंद्र कुमार ने उन्हें गुरुकुल प्रभात आश्रम का रास्ता दिखाया।
घर से करीब 20 किलोमीटर दूर होने के कारण अन्नू जैवलिन थ्रो का अभ्यास करने के लिए सप्ताह में तीन दिन गुरुकुल प्रभात आश्रम के मैदान में जाती थीं। अन्नू के परिवार की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि दो खिलाड़ियों पर होने वाले खर्चे को वहन कर सकें, इसे देखकर भाई उपेंद्र ने त्याग किया और बहन को आगे बढ़ाने में जुट गए। उपेंद्र बताते हैं कि अन्नू के पास जूते नहीं थे, चंदे से इकट्ठा की गई रकम से उसके लिए जूते खरीदे। अन्नू ने अपना अभ्यास जारी रखा और जेवलिन थ्रो में बेहतरीन प्रदर्शन किया। अपने ही रिकॉर्ड तोड़कर वह नेशनल चैंपियन बन गईं। इसके बाद अन्नू ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। आज वह ओलंपिक में हिस्सा ले रही हैं। देश के साथ-साथ मेरठवासियों भी उनकी जीत की कामना कर रहे हैं।
अन्नू की उपलब्धियां: 2021 - टोक्यो ओलंपिक में प्रतिभाग। 2019 - वर्ल्ड चैंपियनशिप में फाइनल में जगह बनाने वाली पहली भारतीय महिला का रिकॉर्ड। 2019 - एशियन चैंपियनशिप में रजत पदक। 2017 - एशियन चैंपियनशिप में कांस्य पदक। 2016 - साउथ एशियन गेम्स में रजत पदक। 2014 - एशियन गेम्स में कांस्य पदक। मैं उसी चकरोड पर अभ्यास करती हूं, जहां पर अन्नू दीदी किया करती थीं। उनसे प्रेरणा लेकर ही इस खेल में आगे बढ़ रही हूं। परिवार और गांव वाले अब मुझे पूरा सपोर्ट करते हैं। मुझे पूरी उम्मीद है कि दीदी पदक जरूर लेकर आएंगी। - आरजू, राष्ट्रीय खिलाड़ी