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शाहजहांपुर जिले की मृतप्राय नदियों को पुनर्जीवित कर उनमें पानी का अविरल प्रवाह बनाए रखने की संभावनाएं तलाशने आईआईटी कानपुर से वैज्ञानिकों की दो सदस्यीय टीम बुधवार को जिले में पहुंची। दो दिवसीय दौरे के दौरान टीम ने गर्रा, कठिना और सोत नदी के उन ठिकानों का सर्वेक्षण किया जहां पानी का प्रवाह थम रहा है। सर्वे में पाया कि कई जगह गांवों के लोग नदी के हिस्से की जमीन पर कब्जा कर वहां खेती कर रहे हैं।
प्रदेश सरकार ने नमामि गंगे परियोजना के तहत प्रदेश की 61 ऐसी नदियां चिह्नित की हैं, जिनका अस्तित्व पारिस्थितिकी और मानव निर्मित कारणों से खतरे में पड़ गया है। इन नदियों को सदानीरा बनाने के लिए शासन के निर्देश पर कानपुर आईआईटी के वरिष्ठ प्रोफेसर विनोद तारिक ने वैज्ञानिक अध्ययन दल की कई टीमें बनाकर उन्हें प्रदेश के विभिन्न जिलों की नदियों का सर्वे करने की जिम्मेदारी दी है। नदियों के सर्वे की जिम्मेदारी आईआईटी के परियोजना वैज्ञानिक शशिकांत पटेल और उनके सहायक वैज्ञानिक श्याम कुमार को सौंपी है।
दोनों वैज्ञानिकों ने सीडीओ श्याम बहादुर सिंह से शिष्टाचार भेंट कर कृषि, सिंचाई समेत अन्य विभागों से जिले में नदियों, नहरों, नलकूपों की स्थिति के साथ जिले में वर्षा के आंकड़े, फसली सीजन वार बुआई कृषि क्षेत्रफल, प्रमुख फसलों की औसत उत्पादकता आदि के आंकड़े जुटाए। बाद में संबंधित विभागों के अधिकारियों, कर्मचारियों के साथ वैज्ञानिक दल ने नदियों का निरीक्षण किया।
सर्वे के बाद टीम के मुखिया एवं परियोजना वैज्ञानिक शशिकांत पटेल ने ने बताया कि सोत और कठिना नदी में कई जगह कब्जा कर खेती करने से नदी पर अतिक्रमण पाया गया। उन्होंने बताया कि इसी तरह गर्रा और सोत नदियों में भूगर्भ जल की कमी के अलावा कचरा बहाए जाने से नदी का पारिस्थितिकी संतुलन बिगड़ रहा है।
जिले की तीन नदियां देखी हैं और सभी की हालत कई जगह दयनीय है। कहीं नदी की जमीन पाटकर खेती की जा रही है तो कुछ स्थानों पर कचरा डालकर नदियों में पानी के प्राकृतिक बहाव में रुकावट डाली गई है। अब हमारी टीम पीलीभीत में गोमती समेत वहां की अन्य नदियों का निरीक्षण करेगी। इसी तरह बरेली, रामपुर और बदायूं में भी सर्वे करना है। सर्वे की इसी रिपोर्ट के आधार पर नमामि गंगे प्रोजेक्ट के तहत नदियों के हित में जरूरी कार्य प्रस्तावित किए जाएंगे।
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