उत्तर प्रदेश

उत्तर-प्रदेश: चुनाव में हार के बाद पार्टी की सभी इकाई भंग, अब नई सपा बनाएंगे अखिलेश यादव, जानें क्‍या है मामला

Kajal Dubey
4 July 2022 9:51 AM GMT
उत्तर-प्रदेश: चुनाव में हार के बाद पार्टी की सभी इकाई भंग, अब नई सपा बनाएंगे अखिलेश यादव, जानें क्‍या है मामला
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उत्तर प्रदेश के असेंबली और विधान परिषद चुनाव में मिली शिकस्त के बाद सपा प्रमुख अखिलेश यादव का हौसला कभी टूटा नहीं दिखा। लेकिन ऐसा लगता है कि आजमगढञ और रामपुर लोकसभा उप चुनाव में मिली हार ने उन्हें हिलाकर रख दिया है। अपने मजबूत गढ़ में सपा का हारना चुनावी विश्लेषकों को भी हैरान कर रहा है। माना जा रहा था कि अखिलेश कोई बड़ा फैसला ले सकते हैं। रविवार को यूपी अध्यक्ष के अलावा बाकी सभी इकाइयां भंग कर अखिलेश ने संकेत दिया कि वो हार को गंभीरता से ले रहे हैं। अब कुछ नया करने का वक्त है। नहीं तो पार्टी का कैडर ही पूरी तरह से बिखर सकता है।
अखिलेश ने यूपी प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम पटेल को छोड़कर अन्य सभी इकाइयों को भंग कर दिया है। सपा के सभी प्रकोष्ठों के राष्ट्रीय अध्यक्ष, प्रदेश अध्यक्ष, जिला अध्यक्ष समेत राष्ट्रीय, राज्य और जिला कार्यकारिणी को भंग किया गया है। इसे राजनीतिक रूप से काफी अहम माना जा रहा है। हालांकि मौजूदा संगठन में अखिलेश की पसंद के नेता ही काबिज थे। 2017 में समाजवादी पार्टी से शिवपाल यादव के निकलने और मुलायम सिंह के नेपथ्य में जाने के बाद अखिलेश ने अपने लोगों को संगठन में मनमाफिक जगहों पर तैनात किया।
यूपी के पूर्व सीएम हमेशा से मानते रहे कि ये सारे नेता पार्टी के प्रति वफादार होने के साथ जुझारू प्रवृत्ति के हैं। लेकिन लोकसभा उपचुनावों के परिणाम से लगा कि पार्टी का बेस वर्कर हताश हो रहा है। इसमें कहीं न कहीं उन नेताओं का दोष है जो संगठन में काबिज हैं। माना जा रहा है कि ये कवायद असंतुष्ट कार्यकर्ताओं को संतुष्ट करने के लिए है। उन्हें लगना चाहिए कि नेतृत्व उन्हें लेकर संजीदा है।
जानकार कहते हैं कि यूपी चुनाव 2022 के रिजल्ट को अखिलेश यादव संतोषजनक मान रहे थे, क्योंकि 2017 की तुलना में सपा का प्रदर्शन बेहतर रहा था। मुलायम कुनबे में हुए तमाम सियासी ड्रामे के बाद भी तब 47 सीटों पर ही जीत मिल सकी थी। जबकि 2022 में पार्टी को 111 सीटों पर जीत मिली। हालांकि पार्टी के भीतर आवाजें लगातार उठ रही थीं। लेकिन अखिलेश इन्हें दरकिनार करते रहे। लेकिन रामपुर और आजमगढ़ के परिणाम ने उन्हें सोचने पर मजबूर कर दिया और अचानक कमेटियों को भंग करने का फैसला लिया गया।
आजमगढ़ में 2019 लोकसभा चुनाव में अखिलेश को मिली जीत काफी बड़ी थी। वो ढाई लाख वोटों से निरहुआ को पटखनी देने में कामयाब रहे। बावजूद इसके कि बीजेपी पुलवामा के बाद पैदा हुई लहर पर सवार थी। उपचुनाव में सपा की जीत के आसार प्रबल थे। आजम को भी मनाने की भरसक कोशिश की गई। लेकिन दोनों ही सीटें हाथ से निकल गईं। चुनाव में अखिलेश कहीं पर भी नहीं घूमते दिखे। उनका मानना था कि सपा का वर्कर जुझारू है और वो कमाल दिखाएगा। लेकिन अब हालात काफी अलग हैं। विश्लेषक मानते हैं कि अखिलेश भी मान रहे हैं कि कुछ अलग नहीं किया तो मुलायम की खड़ी की गई पार्टी हाशिए पर चली जाएगी।
फिलहाल वर्कर को संजीवनी देनी जरूरी है। सपा के लोग वैसे भी मुश्किल हालात में संघर्ष करने वाले माने जाते रहे हैं। तभी हार के बाद भी पार्टी ने कई बार सत्ता में वापसी की। माना जा रहा है कि अखिलेश ऐसे नेताओं को मुख्यधारा में लाएंगे जो मजबूत तेवरों वाले हैं। अभी सपा को धरातल पर अपनी मजबूती दिखानी होगी। संगठन में काबिज मौजूदा नेताओं के सहारे पार्टी मजबूत होती तो फिर लगातार हार क्यों झेलनी पड़तीं? लेकिन उन्हें ये भी पता है कि अनुभव के साथ जोश को मौका देना भी जरूरी है। लिहाजा नई रणनीति में हर मजबूत हाथ को मजबूत टीम दिए जाने की योजना है, जो महंगाई व बेरोजगारी और सांप्रदायिक वैमनस्य के मसले पर मजबूत आंदोलन खड़ा कर सके। उन्हें पता है कि लड़ेंगे तभी जीत सकते हैं।
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