उत्तर प्रदेश

यूपी : घोसी उपचुनाव में वन अगेंस्ट वन फॉर्मूला का ट्रायल

Manish Sahu
29 Aug 2023 5:01 PM GMT
यूपी : घोसी उपचुनाव में वन अगेंस्ट वन फॉर्मूला का ट्रायल
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उत्तरप्रदेश: यूपी में मऊ की घोसी सीट पर हो रहा उपचुनाव एक तरह से वन अगेंस्ट वन फॉर्मूला का ट्रायल भी है। 2024 के लोकसभा चुनाव में विपक्षी दलों के इंडिया गठबंधन ने इसी रणनीति पर मैदान में उतरने और भाजपी नेतृत्व वाले एनडीए को मात देने की रणनीति बनाई है। घोसी में सपा प्रत्याशी को इंडिया गठबंधन में शामिल दलों का समर्थन मिल चुका है। ऐसे में यहां पर सीधी लड़ाई सपा-भाजपा में हैं। यह चुनाव एक तरह से विपक्षी दलों के गठबंधन इंडिया की पहली परीक्षा भी है। मंगलवार को घोसी में प्रचार करने पहुंचे सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने कहा भी है कि यहां का रिजल्ट पूरे देश में संदेश देगा। उनका इशारा साफ था कि यहां मिली जीत को पूरे देश में भुनाने और लोकसभा चुनाव से पहले विपक्षी दलों की बुस्टिंग के लिए काम आएगा।
घोसी में 5 सितंबर को मतदान होगा और मतगणना आठ सितंबर को होगी। भाजपा और सपा के बीच शुरू हुई यह लड़ाई अब एनडीए और इंडिया गठबंधन की लड़ाई बन गई है। अगले लोकसभा चुनाव से पहले एनडीए के खिलाफ इंडिया गठबंधन की यह पहली लड़ाई भी बन गई है। यहां वैसे तो कई प्रत्याशी हैं लेकिन मुकाबला सपा के सुधाकर सिंह और भाजपा के दारा सिंह चौहान के बीच सिमट चुका है। सपा को कांग्रेस, आप, रालोद, सीपीआई, सीपीआई-एम, सीपीआई (एमएल), अपना दल (के) और जनता दल (यूनाइटेड) के साथ ही सुभासपा तोड़कर स्वाभिमान सुहेलदेव पार्टी बनाने वाले महेंद्र राजभर का समर्थन मिल चुका है।
बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए के साथ इस बार ओपी राजभर की सुभासपा, निषाद पार्टी और अपना दल (एस) है। बसपा ने न तो अपना उम्मीदवार खड़ा किया और न ही किसी को समर्थन दिया है। ऐसे में उसका वोट किधर जाएगा यह रिजल्ट महत्वपूर्ण हो गया है।
दोनों पक्षों ने यहां पूरी ताकत झोंक दी है। सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने मंगलवार को चुनाव प्रचार के साथ ही शक्ति प्रदर्शन किया। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ दो सितंबर को मैदान में उतरने की संभावना है। रालोद, जद (यू) और अन्य सहयोगियों ने ने पहले ही सपा उम्मीदवार के लिए प्रचार शुरू कर दिया है। रालोद के राष्ट्रीय प्रवक्ता अनिल दुबे ने कहा कि हमारे प्रदेश अध्यक्ष रामाशीष राय घोसी में रालोद अभियान का नेतृत्व कर रहे हैं। बीजेपी के सभी सहयोगी दल भी प्रचार में लगे हैं।
भाजपा अपने उम्मीदवार दारा सिंह चौहान को लेकर थोड़ी सतर्क भी है। उनके खिलाफ कुछ गुस्सा भी है। दारा सिंह चौहान 2022 में योगी मंत्रिमंडल से इस्तीफा देकर सपा में शामिल हो गए थे। सपा ने घोसी से टिकट दिया औऱ वह विधायक भी बने। भाजपा में दोबारा शामिल होने से पहले उन्होंने पिछले महीने घोसी विधानसभा की सदस्यता और सपा छोड़ दी थी। इसके कारण उपचुनाव की आवश्यकता पड़ी। सपा नेता उपचुनाव कराने के लिए भाजपा और दारा सिंह चौहान को दोषी बता रहे हैं।
सपा का कहना है कि एक विधायक का किसी अन्य पार्टी में शामिल होने के लिए इस्तीफा देना तो ठीक है, लेकिन वही नेता उपचुनाव में उतरे और अब मतदाताओं से उस पार्टी के लिए वोट मांगे जिसका वह पूरे समय विरोध कर रहा था तो कुछ ठीक नहीं लगता है। सपा का कहना है कि यदि चुनाव स्वतंत्र और निष्पक्ष हुए तो सपा उम्मीदवार आसानी से जीत हासिल कर लेंगे।
इतना ही नहीं, सपा और सहयोगी दल दारा सिंह चौहान को घोसी के लिए बाहरी और सुधाकर सिंह को मूल निवासी बता रहे हैं। इसे जनता के सामने बाहरी बनाम मूल निवासी की लड़ाई के रूप में पेश कर रहे हैं। एसएसपी के राष्ट्रीय महासचिव मनोज राजभर ने कहा कि दारा सिंह चौहान बाहरी व्यक्ति हैं जबकि सुधाकर सिंह मूल निवासी हैं।
दारा सिंह चौहान ने 2017 में भाजपा उम्मीदवार के रूप में मधुबन सीट जीती, लेकिन 2022 में सपा उम्मीदवार के रूप में घोसी विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा। वहीं सुधाकर सिंह लगातार इस सीट से चुनाव लड़ते रहे हैं। वह 1996 में नत्थूपुर से पहली बार विधायक बने थे। बाद में यह निर्वाचन क्षेत्र घोसी में विलीन हो गया और 2012 में सुधाकर सिंह ने घोसी विधानसभा सीट जीती। वह 2017 में फिर से सपा से घोसी से उम्मीदवार थे लेकिन भाजपा के फागू चौहान से हार गए थे।
फागू चौहान के राज्यपाल बनने पर 2019 में सुधाकर सिंह ने सपा उम्मीदवार के रूप में उपचुनाव लड़ा और भाजपा के विजय राजभर से हार गए। जब सपा ने यह सीट दारा सिंह चौहान को दे दी तो सुधाकर सिंह ने सपा मुखिया अखिलेश यादव के फैसले को मानते हुए चुनाव नहीं लड़ा। इसलिए ही सुधाकर सिंह को न केवल इस सीट का मूल निवासी माना जाता है, बल्कि दारा सिंह चौहान की तुलना में एक वफादार भी माना जाता है। दारा सिंह चौहान ने बसपा से भाजपा, फिर सपा और फिर भाजपा में आए हैं।
किसी का गढ़ नहीं
यह सीट किसी पार्टी का गढ़ नहीं रही। केवल सीपीआई ने 1957 और 1967 के बीच लगातार तीन बार इसे जीता और जब से 1990 के दशक में राज्य में क्षेत्रीय राजनीति तेज हुई, तब से बीजेपी ने इसे चार बार, बीएसपी ने दो बार और एसपी/जनता दल ने तीन बार जीता।
घोसी के 4.4 लाख मतदाताओं में सबसे ज्यादा मुस्लिम फिर दलित हैं। मुस्लिम की संख्या लगभग 90,000 है। दलित लगभग 60,000 हैं। इसके अलावा राजभर भी करीब 60,000, चौहान 40,000 और यादव 40,000 यादव हैं। लगभग 77,000 उच्च जाति के लोग हैं। इनमें भूमिहार 45,000 राजपूत 16,000 और ब्राह्मण 6,000 हैं। सपा प्रत्याशी सुधाकर सिंह राजपूत हैं। ऐसे में दारा सिंह चौहान के खिलाफ राजपूत+पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) की सोशल इंजीनियरिंग बनाने का एक प्रयास हो रहा है।
लगभग 90,000 वोटों के साथ मुस्लिम घोसी में सबसे बड़ा मतदाता समूह हैं। बसपा चुनाव नहीं लड़ रही है और कांग्रेस सपा उम्मीदवार का समर्थन कर रही है, इसलिए सपा को मुस्लिम समर्थन मिलने की पूरी संभावना है। इसके बाद भी सपा ने मुकाबले को हल्के में न लेते हुए मुख्तार अंसारी के परिवार को चुनाव प्रचार में उतार दिया है। मुख्तार अंसारी के भतीजे और गाजीपुर की मोहम्मदाबाद सीट से सपा विधायक
घोसी के लगभग 60,000 दलित वोटों पर सपा-भाजपा दोनों की नजर है। इसे बसपा के मैदान में नहीं होने के कारण महत्वपूर्ण माना जा रहा है। देखना यह है कि दलित किस ओर झुकते हैं। 2022 में दलित वोट सपा और भाजपा के बीच बंट गए थे और बसपा उम्मीदवार वसीम इकबाल को मुस्लिम या दलित समर्थन नहीं मिल सका और तीसरे स्थान पर रहे। भाजपा और सपा दोनों ने अपने दलित नेताओं को भी मैदान में उतारा है।
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